जिन्दगी कितनी ही जाने इक कहानी हो गयीं
ताज बदले तो कई बातें पुरानी हो गयीं
इक नए सूरज के उगते ही छितिज़ पर यूं लगा
चारसू जैसे फिजाये ही सुहानी हो गयीं
अब कलम कागज की उनको है जरूरत ही कहाँ
जिन को लिखना था वो सब बातें जुवानी हो गयीं
कृष्ण के भीतर कही कुछ बात निश्चित खास थी
यूं नहीं सब गोपियाँ उसकी दीवानी हो गयीं
उजड़े ये घर, टूटी सडकें गन्दगी चरों तरफ
मुल्क की पहचान क्या ये ही निशानी हो गयीं
देखकर इस धूप को आँगन में पहली बार यूं
कोपलें मेरे चमन की जाफरानी हो गयीं
ये हकीकत की जमी उम्मीद से ज्यादा थीं सख्त
हौसलों से ख्वाहिशे पर आसमानी हो गयीं
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान गोंडा उत्तर प्रदेश
मोबाइल नो ९८३९१६७८०१
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