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हम तो बस आपकी राह चलते रहे
ये ख़बर ही न थी आप छलते रहे
बादलों से निकल चाँद ने ये कहा
भीड़ में तारों की हम तो जलते रहे
हिम पिघलती हिमालय पे ज्यों धूप में
यूँ हसीं प्यार पाकर पिघलते रहे
चांदनी भाती , आशिक हूँ मैं चाँद का
सच कहूं तो दिए मुझको खलते रहे
जुल्फ की छांव में उनके जानो पे सर
याद करके वो मंजर मचलते रहे
जिस घड़ी एक दूजे में हम थे मगन
जाने क्यूँ रुख पे आँसू फिसलते रहे
जिस तरह आसमां से है सूरज ढले
हुस्न भी हुस्न वालों के ढलते रहे
हमसफ़र है हसीं इसलिए दोस्तों
रह में "आशू" मगन हो के चलते रहे
डॉ आशुतोष मिश्र आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान गोंडा उत्तर प्रदेश 9839167801