Thursday, 22 March 2012

(BP 57) तेरी आँखों में ज़माने ने जमाना देखा

तेरी आँखों में ज़माने ने जमाना देखा
रिंद भी देखे,मय देखी, मयखाना देखा 

होश में खुद रही,रिन्दों को बेहोश किया 
ए साकी मैंने तेरे हांथों में पैमाना देखा


तूने रिन्दों के दिलों से हटा दिए हर गम 
पर तेरी आंखों में मैंने इक फ़साना देखा 


आरजू थी की , हाल तेरा  सुनूं मैं तुझसे 
पर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा 


चेहरा मासूम तेरा आज भी बच्चों  की तरह
दिल में पर कोई जवाँ हमने दीवाना देखा 


"आशु" मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है कहाँ
हमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा 




डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल, 9839167801


A2/7
2122 21222122 212
तेरी आँखों में ज़माने ने जमाना देखा है
 रिन्द मय मयखाना मंजर इक सुहाना देखा है
रिन्द देखे मय भी देखी और मयखाना  देखा
रिंद भी देखे,मय देखीमयखाना देखा 
होश में खुद और लूटा होश सारे रिन्दों का 
इस तरह साकी तेरा पीना पिलाना देखा है  
होश में खुद रही,रिन्दों को बेहोश किया
 ए साकी मैंने तेरे हांथों में पैमाना देखा 
तूने रिंदों के दिलों से गम् हटाये सारे पर
 तूने रिन्दों के दिलों से हटा दिए हर गम
 मैंने आँखों मे तेरी कौई फ़साना देखा है
पर तेरी आंखों में मैंने इक फ़साना देखा 
 जुस्तजू दिल की थी मेरी हाल मैं तेरा सुनूँ
जुस्तजू दिल की थी तेरा हाल खुद तुझसे सुनूँ
आरजू थी की हाल तेरा  सुनूं मैं तुझसे 
पर आह भरते हुएनजरों में बहाना देखा 
तेरे ओंठों पे मगर मैने  बहाना देखा है पर
तेरे ओंठो पे मैंने बस बहाना देखा है 
तेरा चेहरा आज भी मासूम बच्चों की तरह 
तेरे चेहरे पे है  मासूमी है बच्चे जैसी
 चेहरे पे रहती है मासूमी तेरे बच्चों सी चेहरा है
मासूम तेरा माना बच्चों की तरह दिल में
पर कोई जवाँ हमने दिवाना देखा है  
ये तो रब जाने कि मंजिल है कहाँ
इन रिन्दों की  "आशु" मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है
 कहाँ हमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा 
आशु ने साकी के पहलू में ठिकाना देखा है 

15 comments:

  1. आरजू थी की , हाल तेरा सुनूं मैं तुझसे
    पर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा ...वाह

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  2. bahut umda ghazal.आरजू थी की , हाल तेरा सुनूं मैं तुझसे
    पर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा....ye ashaar to bahut hi achcha laga.

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  3. वाह ॥बहुत खूबसूरत गजल

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  4. वाह ...बहुत खूब

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  5. रात को पी सुबह को तौबा ,कर ली ,

    रिंद के रिंद रहे हाथ से ,जन्नत न गई .

    बहुत अच्छी ग़ज़ल है ज़नाब .

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  6. बढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने!

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  7. सराहनीय प्रस्तुति |
    बहुत बहुत बधाई ||

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  8. तेरी आँखों में ज़माने ने जमाना देखा
    रिंद भी देखे,मय देखी, मयखाना देखा


    आहा ! यहां तो खूबसूरत गज़लकार मौजूद है ...
    क्या बात है ...
    वाह वाह !
    :)

    खूबसूरत ग़ज़ल है
    मुबारकबाद !

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    1. Rajendra jee....hausla afjayee ke liye hardik dhnyawad,,,aapko bhee nav sambat kee dher sari subhkamnaon ke sath

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  9. आशु मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है कहाँ
    हमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा

    बहुत खूब।
    हर शेर दाद के काबिल।

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  10. बहुत ही बढ़िया ...
    बेहतरीन गजल....

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    1. "आशु" मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है कहाँ
      हमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा
      पीना हराम है ,न पिलाना हराम है ,
      पीने के बाद होश में रहना हराम .
      अच्छी ग़ज़ल है ज़नाब .

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  11. खूबसूरत ग़ज़ल ... बधाई स्वीकारें.

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