Tuesday, 22 October 2013

(BP15) बड़ी बातें मियां छोड़ों

बड़ी बातें मियां छोड़ों 

हमारा दिल न यूं तोड़ों

न हिन्दू है न वो मुस्लिम

वो हिंदी है उसे जोड़ो 

छलकती हैं जहाँ आँखें

मुझे रिन्दों वहां छोड़ों 

लगें दिलकश जो  शाखों पे 

हसीं गुल वो नहीं तोड़ों 

मिलेगी वक़्त पर कुर्सी 

नहीं सर बेबजह फोड़ो 


लुटी कलियाँ चमन की हैं 

दरिंदों को नहीं छोड़ों 

बचा कुर्सी वतन बेंचा 

शरारत ये जरा छोड़ों 

जहर है अब हवाओं में 

हवा का आज रुख मोड़ों 

डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान, गोंडा उ प्र 

13 comments:

  1. बहुत बढ़िया रचना |

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  2. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  3. dhnywaad raajeev jee ..meri rachna ko shamil karne ke liye

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  4. क्या बात है...उम्दा कहा है... वाह!

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  5. बहुत खूब डाक्टर साहब |

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  6. जहर है अब हवाओं में
    हवा का आज रुख मोड़ों

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  7. उम्दा पोस्ट

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  8. लुटी कलियाँ चमन की हैं

    दरिंदों को नहीं छोड़ों

    छोटी बहर की बड़ी ,खूबसूरत गजल है अर्थ गर्भित अपने परिवेश का सार और व्यंग्य विडंबना लिए .

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    1. आदरणीय भाई साब हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया ...सादर

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  9. समाज का सच कहती सामयिक रचना।

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    1. प्रवीण जी हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ..सादर

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  10. शुभदीपावली,गोवर्धन पूजन एवं यम व्दितीया श्री चित्रगुप्त जी की पूजन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें स्वीकार करें

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  11. बचा कुर्सी वतन बेंचा

    शरारत ये जरा छोड़ों

    जहर है अब हवाओं में

    हवा का आज रुख मोड़ों

    Very impressive !

    .

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