Monday, 24 May 2021

AM 35 कोरोना से संवाद

 

लॉक डाउन बारंबार टल रहा था
अपना कलेजा भी कफ़स के पंछी सरीखा जल रहा था
दिन भर चिड़ियों सा चुगना दाना
उनके परों सा पैरों को हिलाना
कभी उठ के बैठना कभी बैठ के उठना
सूनी आँखों से धरती अम्बर को तकना
कुत्ते इंसानों के जैसे सड़क पर खड़े थे
हम ज़ू के प्राणियों सा कमरे में पड़े थे।
आज फिर जैसे ही लॉक डाउन बढ़ने की खबर आयी
मेरी बेचैनी ने मेरी नींद फिर उड़ाई
बदलकर करवटों पर करवटें महज आधी रात थी विताई
तभी ऐसा लगा किसी ने दर की कुंडी खटखटायी
मन अनजाने खौफ से भर रहा था
पैर एक कदम बढ़ने से डर रहा था।
लॉक डाउन में किसी का आना
यूँ कुंडियां खटखटाना
जान साँसत में ला रहा था।
बी पी बढ़ा रहा था
मैं डरते डरते आगे बढ़ रहा था
पहुंचकर दर के पास मैं धीरे से बोला कौन?
लेकिन छाया रहा सघन मौन।
मैंने फिर हिम्मत जुटाई  और बोला
इतनी रात में कुंडी खटखटायी: कौन हो भाई?
प्रत्त्युत्तर में हल्की भूतिया सी आवाज आयी
इतना मत डर मैं कोरोना हूँ भाई
कोरोना! उड़ी बाबा
ये शब्द मेरे होश उड़ा रहा था
मुझे साक्षात् यमराज अपने भैंसे के साथ नजर आ रहा था।
मैंने दरवाजे पर एक और कुंडी चढ़ाई
कातर निगाहें चारों तरफ घुमाईं
हिम्मत जुताई और बात आगे बढ़ाई
आधी रात मेरे घर पे  आने का मकसद बताईये
क्यों ये कहर ढा रहे है
आदमी से दुश्मन की तरह पेश आ रहे है
तभी दरवाज़े को चीरती तेज आवाज आयी
कोरोना दुश्मन की तरह पेश आ रहा है
कभी सोचा आदमी क्या गुल खिला रहा है
जल थल पे तबाही मचा रहा है
सारे जीवों का जीवन दुश्वार किये जा रहा है
अपनी तरक्की का इतना गुमान
भूल गया प्रकृति का ही विधान
मैं प्रकृति दूत हूँ
करूंगा हर समस्या का समाधान
यह है मेरा विश्व विजय का अभियान
मेरे रस्ते मे जो आएगा मारा जाएगा
तू मुझे बेहद भाया
बंद होकर घर में मेरे सजदे में सर झुकाया
कभी मेरे रास्ते में नहीं आया
तू कवि है और नेट भी चलाता है
मेरे क़दमों से तेज अपने संदेश फैलाता है
अब तू मेरा सन्देश फैलायेगा
मैंने दबी आवाज में कहा
सन्देश तो बताईये
सन्देश बस यही है मेरा सन्देश
जब तक दिल से दिल न मिलें
हाथ न मिलाओ
अपने डॉक्टरों और बैज्ञानिको से कहो
ज्यादा होशियारी मत दिखाओ
सबको सोशल डिस्टेंन्सिंग का फार्मूला सिखाओ
मनुज से कहो न करे इतना गुमान
काम वही करे करे जो प्रकृति का कल्याण
प्रकृति के हर अंग का करें सम्मान
अगर लड़ने का ले संकल्प डॉक्टर बदलेंगे दवाओं के रूप
तो मैं भी बदल लूंगा अपना स्वरुप
अभी मैंने तय कर रखी है निज सीमाएं
बात मुझ तक है संभल जायेगी
मेरे नाती पोतों तक पहुंची तो बढ़ जायेगी
और सुन इन सयानों को समझा दे
जो मेरा खौफ नहीं खा रहे हैं
सड़को पर क्रिकेट खेल रहे है
पार्क में पिकनिक मना रहे है
कोई मंदिर मस्जिद इन्हें बचा नहीं पाएंगे
प्रकृति के मामले में
राम रहमान बीच में नहीं आएंगे
जिसने खुद बनायी हो नियति
वो नियति के प्रकोप में टांग नहीं  अड़ायेंगे
मेरे आगे समर्पण ही मुक्ति का  कारक होगा
अरे ! पगले प्रकृति इंसान सी पागल नहीं हो जायेगी
जो अपनी ही सर्वोत्तम कृति को मिटाएगी
एक सन्देश देकर मैं खुद व् खुद चला जाऊंगा
हाँ! मैं एक सबक जरूर सिखाऊंगा
मुझे मालूम है आदमी समझदार है
बात उसे भली-भांति समझ आयेगी
और अब भी यदि आदमी की मक्कारी नहीं जाएगी
तो और बड़ी कार्यवाही की जायेगी
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
9839167801

1 comment:

लिखिए अपनी भाषा में