Saturday, 16 March 2013

(BP36) बलात्कारियों में वोटबैंक


  बलात्कारियों में वोटबैंक नजर आ रहा है
खादी ओढ़े शैतानो का जत्था चिल्ला रहा है
 कहते बलात्कार शब्द  शब्दकोष से हटाओ
   बलात्कार को सहर्ष सहमतिकार  बनाओ
    उम्र अठारह की बोझिल सोलह करवाओ
      गर बलात्कार हो भी जाए झुठलाओ
    सहमती से सहमती  का प्रमाण लाओ
   या फिर दवाब देकर सहमती लिखवाओ
  पुलिस के सर से फाइलों का बोझ हटाओ
  सरकार की उपलब्धि का परचम फहराओ
   पश्चिम का नंगापन पूरब में भी लाओ
 विकासशील  ही न रहो बिकसित हो जाओ
   पूर्वजों की कोई सीख अमल में न लाओ
पशु  से आदमी बने थे फिर पशु बन जाओ
कहते मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी
इससे होगी सिर्फ बर्बादी बर्बादी बर्बादी बर्बादी
डॉ आशुतोष मिश्र आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी,बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश ९८३९१६७८०१

13 comments:

  1. ज्वलत मुद्दा है षोडशी की यौन सहमती प्राप्त करना करवाना भारत सरकार के सामने .

    ReplyDelete
  2. आपका क्या कहना है इस बारे में जबकि २१ साल की उम्र में पूर्ण कायिक (दैहिक )विकास संपन्न होता है एक नव युवती का .क्या हम भारत को अविवाहित मातृत्व का आश्रय स्थल बनाना चाहते हैं ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. दुनिया हमारी रह पर चलने की सोच रही है और हम पागल पन दिखने में लगे हैं ..जा देश को तो सच में ही राम रखवारो है ..मुझे कुच्छ नहीं कहना मैं तो इसे सुनकर बहुत आहट हूँ .हम बंश परम्परा के पोषक हैं ..हम भूखे रहकर औलाद की खुशाली की कामना करने वाले लोग हैं ..बच्चों को समझ नहीं है अच्छे बुरे की लेकिन हम कैसे ये जहर पी लें

      Delete
  3. पागल हो गई है सरकार-
    बहन बेटियों से फुर्सत पा गया है GOM

    ReplyDelete
  4. पाए सत्ता कवच अब, कुंडल पाए स्वर्ण |
    घर घर में कुन्ती हुई, बच्चा आया कर्ण |
    बच्चा आया कर्ण , जलालत नहीं होयगी-
    आया है अधिनियम, नहीं अब मातु खोयगी |
    दुर्योधन का मित्र, दुशासन ख़ुशी मनाये |
    हैं प्रसन्न धृतराष्ट्र, कलेजा ठंढक पाए |

    ReplyDelete
  5. सार्थक प्रस्तुति आशुतोष जी .....
    साभार.....

    ReplyDelete
  6. समझ विकसित हो समाज की, वही आवश्यक है अभी।

    ReplyDelete
  7. भावनात्मक प्रस्तुति ..

    ReplyDelete
  8. सार्थक लेखन आशुतोष जी

    ReplyDelete
  9. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    ReplyDelete

लिखिए अपनी भाषा में