चीरकर रहजनो के पाँव
मुस्कुराती थी;
बरगद की एक सूखी ठूंठ
हमेशा ही...
एक दिन ऐसे ही चीरकर भोले शंकर के पाँव
जब कुटिल मुस्कान से मुस्कुराई
तो भोले की अर्धांगिनी पार्वती तिलमिलाईं
जब तक दिल की पीड़ा श्राप बन पाती
भोले बाबा ने ठूंठ को महिमामंडित कर डाला
खूब फूलो फलो;
हजारों पक्षियों का बसेरा हो तुम पर
बरदान दे डाला....
पार्वती के होंठों पर खिसियाहट आयी
दुष्ट को वरदान ; बात समझ नहीं आयी
भोले बाबा ने हंस कर बात घुमाई
तो देवी ने भी हर बात भुलाई
बाबा का आशीष पाकर
ठूंठ इतराया
बनकर विशाल बट बृक्ष
झूम झूमकर लहराया
बर्षों बाद जब लौटी पार्वती भोले संग
तो फिर चिढ गयी;
देख बौराए बट के मदमाती उमंग
देख बौराए बट के मदमाती उमंग
भोले के तन से बहता लहू फिर याद आया
चेहरा फिर तिलमिलाया
लेकिन जब तक दिल की पीड़ा ने होंठों को हिलाया
एक जबरदस्त तूफ़ान आया
बट ने ठहाका लगाया
पर दूजे पल ही
जड़ से उखड़कर जमीन पर आया
बट के इस हश्र पर पार्वती ने फिर सवाल उठाया
तो भोले ने प्यार से समझाया
ठूंठ सबको रोज लहूलुहान बनाता
आँधियों तूफान को हंसकर सह जाता
उसका अत्याचार बढ़ता जाता
पर उसका बाल भी बांका न हो पाता
इसलिए जब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
उसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है
मेरे श्रध्येय गुरु प्रोफेसर जे जी अस्थाना द्वारा मुझे सुनाई गयी नीति की कहानी का काव्य रूपांतरण
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मसी
बभनान , गोंडा , उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
जब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
ReplyDeleteउसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है
bahut khoob.
जब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
ReplyDeleteउसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है
सुन्दर प्रतीक ... संवेदनशील रचना ...
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति है,आशुतोष जी.
ReplyDeleteप्रेरणादाई और विचारोत्तेजक.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
लगता है मेरा ब्लॉग फालो करना बंद कर दिया है आपने.
भ्रष्टाचार तो बरगद बन गया है, कोई तो गिराओ।
ReplyDelete्वाह ये तो बहुत ही प्रेरणादायी रचना है……………सुन्दर संदेश दे रही है।
ReplyDeleteजब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
ReplyDeleteउसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकार करें ||
प्रिय मिश्र जी बहुत ही सुन्दर उपदेश है ये सटीक और सत्य है इसीलिए आज भ्रष्टाचारी बढे चढ़े लोग को देख एक बार तो सब भ्रमित और चकित हो jaate हैं लेकिन उन्हें अंजाम भी याद रखना चाहिए ..बधाई
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
ठूंठ सबको रोज लहूलुहान बनाता
आँधियों तूफान को हंसकर सह जाता
उसका अत्याचार बढ़ता जाता
पर उसका बाल भी बांका न हो पाता
इसलिए जब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
उसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है
सुन्दर प्रतीक ... संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteजब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
ReplyDeleteउसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है......
बहु सुन्दर नीति कथा..सार्थक रचना.....आभार...
Updesh deti katha yukt bahut sundar rachna. Aabhar.
ReplyDeleteबहुत गहरी और सार्थक बात कही है आपने इस रचना के माध्यम से...मेरी बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बेहद सार्थक बात सुन्दर अंदाज में.
ReplyDeletebahut hi badhiya.
ReplyDeleteबहुत गहरी और सटीक बात कही है आपने इस रचना के माध्यम से... प्रेरणादायक सुन्दर नीति कथा...
ReplyDeleteअफसोस,कि बरगद बनते-बनते काफी नुकसान हो चुका होता है और बरगद भी एक हो तो संतोष करें!
ReplyDeleteसुन्दर काव्य रूपांतरण!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, लाजवाब, सार्थक, संवेदनशील एवं प्रेरणादायक रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteमुझे भी फिल्म देखने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है पर अमिताभ बच्चन का हर एक फिल्म मैं सिर्फ़ एक बार नहीं कई बार देखती हूँ क्यूंकि उनके जैसा अभिनेता कोई नहीं हो सकता! हाल ही में मैंने आरक्षण देखा और बेमिसाल एक्टिंग किया है इस उम्र में भी अमिताभ बच्चन का मुकाबला कोई नहीं कर सकता!
जब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
ReplyDeleteउसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है... bilkul sahi kaha
बहुत बढ़िया नीति कथा को सुन्दर रूप में ढला है आपने
ReplyDeletebahut sunder piroya hai aapne guru ji ke neeti ko
ReplyDeleteआपकी कविता उम्मीद जगती है क़ि एक दिन भ्रष्टाचार का बरगद भी धराशाई होगा.
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और संदेशपूर्ण काव्य रूपांतरण,बधाई!
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteलेकिन आँधी-तूफान का इंतजार है
ठूंठ सबको रोज लहूलुहान बनाता
ReplyDeleteआँधियों तूफान को हंसकर सह जाता
उसका अत्याचार बढ़ता जाता
पर उसका बाल भी बांका न हो पाता
इसलिए जब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
उसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है
kash ki aisa har ahankaaree ke sath ho pata....
khair der-saber to yahi gati honi hai...!!
behtareen....!!
बहुत ही अच्छी कविता है। बस एक संदेह ने जन्म लिया है कि क्या बरगद जैसा वृक्ष जिसकी विभिन्न जड़े जमीन पर गड़ी होती हैं, आंधी के झोंकों से गिर सकती हैं? बरगद समूह का प्रतीक है, इसलिए किसी एकल पेड़ का उदाहरण लिया होता तो रचना में जान आ जाती। हो सकता हैं मैं गलत हूँ।
ReplyDeleteइसलिए जब भी पापी को जड़ से मिटाना होता है
ReplyDeleteउसे बरगद जैसे ही बढ़ाना होता है
...बहुत प्रेरक और सुन्दर अभिव्यक्ति...
prernadayak rachna............
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