कभी कभी लगता है
बहुत पागल हो गया हूँ मैं
जो बदलना चाहता हूँ
जो बदलना चाहता हूँ
जंग लगी व्यबस्थाओं को
उन लोगों के सहारे
जो रच बस गए हैं इसमें
जो रच बस गए हैं इसमें
बन गए हैं अभिन्न अंग इनके
कभी कभी लगता है
बहुत पागल हूँ मैं
जब टकराने लगता हूँ
बदलाव की कोई उम्मीद;
अपने जेहन में संजोये
भली -भांति जानते हुए भी कि
सदियों दर सदियों
रूढ़ी पोषित
हिमालय से ऊंची
और समुद्र की गहरे से गहरी जड़ों वाली
परम्पराओं को हटाना तो दूर
संभव नहीं
हिला पाना भी।
कभी कभी लगता है
बहुत पागल हो गया हूँ मैं
बहुत पागल हो गया हूँ मैं
जब चीरने लगता हूँ
बंजर जमीन का सीना
बोने लगता हूँ
बीज आम, अमरुद के
बीज आम, अमरुद के
यही सोचकर शायद धरती मुस्कुराये
फूलों को हँसता देखकर
और शायद इसलिए भी
की बढ़ जाये आक्सीजन आणुओं की संख्या
इस जहरीले बायुमंडल में
दौड़ सके आक्सिहीमोग्लोबिन धमनियों में
चूम सकें माएं संततियों के गुलाबी गाल
कर सके अहशास,
अपने पूर्णत्व का जिंदगी भर
किन्तु कभी कभी लगता है
बहुत पागल हूँ मैं
जब जलाने लगता हूँ दिए
अमाबस की रातों में
गहन तम से लड़ने के लिए बहां
जहाँ चमगादरी संस्कृति में
पले बढे चूहे
पी जाते हैं दीयों का तेल
और इंसानों के शरीफ बच्चे
खेलते हैं दीयों से खेल
कभी कभी लगता है
बहुत पागल हूँ म
जब करने लगता हूँ संगठित
लोगों को
बस्ती में घुमते सूअरों;
यत्र तत्र बिखरी गंदगी;
कीचड में नहाई सडकें;
मच्छर प्रजनन केंद्र बने पानी के पोखरों
और
हवा में तैरते धूल कणों के बिरोध में
पर कभी कभी जब लगता है
बहुत पागल हो गया हूँ मैं
तभी- तभी लगता है
पागल ही सही
मैं लड़ता रहूँगा जंग लगी व्यबस्थाओं से
टकराता रहूँगा रुढ़िवादी परम्पराओं से
चीरता रहूँगा धरती का सीना
बोता रहूँगा आम और अमरुद के बीज
जलाता रहूँगा दिए अमावास की रातों में
और संगठित भी करता रहूँगा लोगों को
और शायद इसके लिए
पागलपन के एहसास की नहीं
बल्कि जरुरत है पागल होने की
क्योंकि युद्ध के मैदान में
आत्म समर्पण से
कई गुना श्रेयस्कर है
संघर्ष करते हुए गले लगा लेना
मौत को
डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा,उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०-9839167801
गहन भावनाओं से ओतप्रोत एक मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteहर लफ्ज़ में गहराई ... वाह !! क्या बात है ..
ReplyDeleteek behtreen rachna man me dabi chingari jo kalam ke madhyam se sfutit hui.bahut achche vichar.badhaai.
ReplyDeleteबदलाव की कामना करने वाले पागल ही कहलाते हैं इस दुनिया में.
ReplyDeleteयथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक रचना....
सुन्दर सन्देश देती रचना
ReplyDeleteमेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है!!
ReplyDeleteब्लॉग की 100 वीं पोस्ट पेश करते हुए मुझे खुशी और हर्ष हो रहा है!
मैं लड़ता रहूँगा जंग लगी व्यबस्थाओं से
ReplyDeleteटकराता रहूँगा रुढ़िवादी परम्पराओं से
चीरता रहूँगा धरती का सीना
बोता रहूँगा आम और अमरुद के बीज
जलाता रहूँगा दिए अमावास की रातों में
और संगठित भी करता रहूँगा लोगों को
और शायद इसके लिए
पागलपन के एहसास की नहीं
बल्कि जरुरत है पागल होने की... bina pagalpan ki had tak gaye kuch pana asambhaw hai
bahut sateek aur saarthak , panktiyon men aakrosh saaf jhalakata hai. ye tevar jarooree hain.
ReplyDeleteमैं लड़ता रहूँगा जंग लगी व्यबस्थाओं से
ReplyDeleteटकराता रहूँगा रुढ़िवादी परम्पराओं से
चीरता रहूँगा धरती का सीना ...
एक कोशिश क्या नहीं कर सकती ....बहुत बढ़िया
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब प्रस्तुती! शानदार रचना!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मैं लड़ता रहूँगा जंग लगी व्यबस्थाओं से
ReplyDeleteटकराता रहूँगा रुढ़िवादी परम्पराओं से
चीरता रहूँगा धरती का सीना
बोता रहूँगा आम और अमरुद के बीज
बेहद खूबसूरत कविता.
यही पागलपन तो जगत में जीवन्तता बनाये रखता है।
ReplyDeleteआप जैसे लोगों की देश को अभी जरुरत भी है ........सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteवाह लाजवाब प्रस्तुती !! क्या बात है !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
Ham aapke sath hai..sundar rachana
ReplyDeleteये संघर्ष तो जारी रखना ही होगा ... बहुत प्रभावी रचना है ...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
ReplyDeleteऐसा पागलपन तो सभी में होना चाहिए।
ReplyDeleteaaj kal pagalpan ka hi javana aa gaya hai sir ji bahut achi marmsparshi kavita
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
ye pagalpan hi jaruri hai aaj.
ReplyDeleteWaah! is paagalpalpan pr tp padhe likhe kurbaan. Bahut hi saargarbhit. Badhaai ho ..An article of quality, today need for such immolation..deed, activities.
ReplyDeleteachhi lagi rachna aapki aabhar ...........
ReplyDeleteपागल ही सही
ReplyDeleteमैं लड़ता रहूँगा जंग लगी व्यबस्थाओं से
सुंदर अभिव्यक्ति ..