ये रात काली काली...ये रात काली काली
तारों की फौज लेकर चंदा मचल रहा है
अम्बर पे चल रहा है
मस्ती भरे समा है दिल मेरा जल रहा है
आईये हुजूर.....आईये हुज़ूर
मुद्दत हुई है बिछड़े इक बार फिर मिले हम
महफ़िल सजा के कोई दिल खोल के हँसे हम
पल -पल ने ज़िन्दगी के नूतन गढी कहानी
कुछ तुमसे हमको सुननी कुछ है तुम्हे सुनानी
अम्बर पे रवि के जैसे यौवन ये ढल रहा है
आईये हुजूर आईये हुज़ूर
बचपन की मीठी यादें यादोँ के वो ख़ज़ाने
ख्वाबों में साथ जिनके गुजरे कई जमाने
एक बार फिर हकीकत आओ इन्हें बनाएं
बगिया में चल के फिर से कुछ आम हम चुराएं
अब गिल्ली डंडे पर भी दो हाथ आजमाएं
हाथों में रस्सी लेकर लटटू कोई नचायें
मुट्ठी में रेत जैसे जीवन फिसल रहा है
आईये हुजूर। आईये हुजूर
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी बभनान
वाह सुन्दर यादों का समा!!
ReplyDeleteतहे दिल आभार आपका। सादर
Deleteक्या बात 👌👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteअच्छा लगा पढ़कर आप को ।
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