दो कोशिकाओं का युग्मन
फिर सतत बिखंडन
बिखेर रहा है
तमाम ज्ञात अज्ञात पीढ़ियों का अहशास
जिस्म के कतरे-कतरे में..
जीवन की आधार कोशिकाएं
बिखर रही हैं एक जिस्म से कई जिस्मों में
बृहत् से बृहत्तर कर रही हैं
जीवन के असीमित होने की चाह को..
कुछ कोशिकाओं का मिटना
सिर्फ आंशिक संकुचन है
बिस्तीर्ण जीवन का
किसी तन का चिर निद्रा लीन होना
कभी भी मौत नहीं हो सकता...
लाखों करोणों जिस्मों में चलती सांसें
उत्सव मना रही हैं उसी एक जीवन का...
लेकिन सतत अहशास के बाद भी
भुला बैठे हैं हम
अज्ञात क्या !
ज्ञात कोशिकाओं का अह्शान भी
कर्ज नहीं चुकाया जा सकता है
युग्मन में शरीक कोशिकाओं और
ज्ञात अज्ञात पीढ़ियों के अह्शाश का
कोशिकाओं के पुन्ज स्वरूप
किसी अंग के दान से भी......
पर कितने क्रितग्घन हो गए हैं हम
आत्मा की आवाज सुनना तो हम
सदियों पहिले छोड़ चुके थे
अब जिस्म की आवाज भी नहीं सुनते ........
डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा,उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteवैज्ञानिकता का दर्शन कविता के माध्यम से, अद्भुत नया प्रयोग।
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteसादर --
बधाई |
आत्मा की आवाज सुनना तो हम
सदियों पहिले छोड़ चुके थे
अब जिस्म की आवाज भी नहीं सुनते ...
पर कितने क्रितग्घन हो गए हैं हम
ReplyDeleteआत्मा की आवाज सुनना तो हम
सदियों पहिले छोड़ चुके थे
अब जिस्म की आवाज भी नहीं सुनते ........
The change is indeed disheartening..
.
"आत्मा की आवाज सुनना तो हम
ReplyDeleteसदियों पहिले छोड़ चुके थे
अब जिस्म की आवाज भी नहीं सुनते ........"
बहुत सुंदर सटीक और सार्थक
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब और सार्थक रचना लिखा है आपने ! आपकी लेखनी को सलाम!
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण से रची सशक्त सार्थक रचना...
ReplyDeleteअद्भुत अभिव्यक्ति...
सादर...
अंगदान के प्रति जागरूक करती अच्छी रचना
ReplyDeleteआत्मा की आवाज सुनना तो हम
ReplyDeleteसदियों पहिले छोड़ चुके थे
अब जिस्म की आवाज भी नहीं सुनते ........bilkul sach , kadwa sach
अनुपम अभिव्यक्ति
ReplyDelete"आत्मा की आवाज सुनना तो हम
ReplyDeleteसदियों पहिले छोड़ चुके थे
अब जिस्म की आवाज भी नहीं सुनते ........"
सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति...
सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की बधाइयाँ
सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत विज्ञान बोध से युक्त दार्शनिक प्रस्तुति कृपया (एहसान ,एहसास और कृतिघ्न लिख लें शुद्ध रूप ,विखंडन लिखें ,बिखंदन नहीं ).जीवन का कोख में आना एक आध्यात्मिक घटना भी है सिर्फ सेक्स सेल्स का परस्पर मिलन मनाना नहीं है .और जीवन का जाना संरक्षण है ऊर्जा का .ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया !
ReplyDeleteबहुत सुंदर सटीक और सार्थक
ReplyDeleteवैज्ञानिकता के साथ कविता। पसन्द आई।
ReplyDeleteकिसी तन का चिर निद्रा लीन होना
ReplyDeleteकभी भी मौत नहीं हो सकता...
सच है...!
वैज्ञानिक तथ्य का दार्शनिक विवेचन!