Friday, 18 March 2016

(BP5) मैंने चाह कर भी जुवान नहीं खोली






रोजाना

फेस बुक पर,
कभी कनिष्ठों, कभी वरिष्ठों
कभी मित्रों तो कभी सहपाठियों की
कोट पेंट पहने टाई लगाए
कभी हाथों में प्रशस्ति पत्र
कभी गले में लड़ी ढेर सारी मालाओं वाली
कोई तस्वीर जब दिल को भाती
तो बरबस तस्वीर पर होने वाली प्रतिक्रिया पर भी नजर जाती
किसी को नयी तकनीक लाने पर
किसी को नयी दवा बनाने पे
किसी को पौधों का रहस्य बताने पे
किसी को सस्ती दवा सुलभ कराने पे
उनके शोधों की बात सामने आती
ये बात पहले तो शोध की चाह जगाती गयी
फिर दिल में अपने पाँव जमाती गयी
तो हमने भी शोध की ठानी
लेकिन...लेकिन .. शोध का बिषय ढूँढने में ही
पसीनाबहने लगा..... खोपड़ी खपने लगी 
ये प्यासी आँखें रात रात भर जगने लगीं
दोस्तों के सम्मान से शोध का सोया भूत जागा 
प्रशस्ति पत्र और मालाओं की तरफ ये बैरागी मन भागा
हमने चिंतन से बिषयों की सूची बना ली
फिर सिलसिले वार कई खोजें कर डालीं
सबसे पहले सड़क के एक हिस्से पर ध्यान लगाया
उसमे डामर गिट्टी और मिट्टी का पता लगाया
फिर इस टुकड़े की कीमत से बिस्तृत सड़क का खर्च बनाया
करोडो की सड़क को लाखों का पाया
इस खोज पर मैंने खुद अपनी पीठ थपथपाई
मिश्र जी ने दी खुद मिश्र जी को बधाई
फिर शिक्षा बिभाग की तरफ नजर दौडाई
मिडडे मील पर आँख गडाई
लेकिन इस बार शोध से मैं खुद चकराया
अपने शोध पेपर का निष्कर्ष नहीं दे पाया
एक बात तो आजतक मेरी समझ में नहीं आयी
दूध जब स्कूल में खउला तो मलाई
प्रधानाचार्यके घर कैसे निकल आयी
बस यूं ही हमने शोध का सफ़र आगे बढ़ाया
हमारा प्रयास हमें थरथराते पुल तक ले आया
बरबस हमें राम का सिन्धु सेतु याद आया
तो हमने भी जामवंत जी को मन में धारा
अपने सवालों के जवाब के लिए उन्हें पुकारा
प्रभो आपने पानी पे जो पत्थर तैराया था
उस परसिर्फ राम का नाम लिखवाया था
पुल ने पूरी वानर सेना को पार लगाया था
पुल न कांपा था थरथराया था
प्रभो जो पुल हमारे नेता अफसर और इंजीनियर बनाते हैं
एक आदमी के चलने पे ही घबराते हैं
भूकंप का नाम सुनकर ही थरथराते हैं
प्रभो! इस रहस्य से पर्दा उठाईये
हमारी शोध को आगे बढाईये
जामवंत जी वोले
बेटा इसका कारण हम तुम्हे समझाते हैं
बेटा आजकल पुलों में सरिया गिट्टी सीमेंट मिलने से कहीं पहले
नेता अफसर और मंत्री आपस में अच्छे से मिल जाते हैं
बेटा जब सीमेंट गिट्टी सरिया की जगह 
नेता अफसर और इन्जीनिएर आपस में मिल जायेंगे
तो बेचारे पुल कैसे नहीं थरथरायेंगे 
और जहा शिलान्यास के पत्थर पर
राम के बदले होगा नेता का नाम
वो तो डूबेगा ही उसे कैसे बचायेंगे
इस जवाब के साथ मैं नयी दिशा में मुड़ गया
एक नए बिषय से जुड़ गया
सोचने लगा
स्लाटर हाउस रोज बढ़ते ही जा रहे हैं
गाय भैंसों के साथ बछिया बछड़े भी कटते जा रहे हैं
तो कैसे उफन रही है दूध की नदी
कैसे मिठाइयों से दुकाने पडी हैं पटी
इस सवाल ने मुझे जब तक उलझाया
तब तक एक पुराना मंजर स्मृति में आया
सब कुछ समझ में आ रहा था
पानी में निरमा यूरिया तेल और दूध पाउडर मिलाकर
एक आदमी भट्टी पर क्यूँ खौला रहा था
और जिस रबड़ी बाले दूध के लिए
बच्चे बूढ़े सभी लाइन लगा रहे थे
उसकी खुरचन को भी सूंघकर
गली के कुत्ते क्यूँ मुह बना रहे थे
आज कल हम खाने और पचाने के
आंकड़े जुटा रहे हैं
एलोपैथ वाले अपना दंभ भर रहे हैं
आयर्वेद वाले आपनी उपलब्धि कह रहे हैं
जो भी हो परिणाम चौंकाने वाले आ रहे हैं
जिस उम्र में लोग एक रोटी हजम नहीं कर पा रहे हैं
देश के नेता डामर यूरिया चारा सब कुछ पचा रहे हैं
मैं ये आंकड़े जुटा ही पाया था
तभी मेरा एक दोस्त जो जापान से आया था
नाश्ते की टेबल पे ही बतियाने लगा
जापान की उपलब्धियां गिनाने लगा
जापान में हम समंदर में शहर बसा रहे हैं
तैरते हुए पुल बना रहे हैं
हवा में बुलेट ट्रेन दौडा रहे हैं
हमारे कलपुर्जों की है दुनिया में चर्चा
महंगे सामान पर आता है कम खर्चा
देते देते अपने देश दी दुहाई
उसके ओंठों पर मुस्कान तैर आयी
बोला मिश्र जी व्यर्थ में समय न गंवाओ
कहाँ मेक इन इंडिया के चक्कर में पड़े हो जापान आओ
अब तोआप भी जरूर मानेगे श्रीमान
कहाँ भारत कहाँ जापान
जैसे ही उसने अपने भाषण की आख़री लाइन बोली
हमने भी अपनी जुवान खोली 
मित्रसच तो ये है
हम शोध में जापान से भी एक सदी आगे जा रहे हैं
जापान वाले समंदर में शहर बसा रहे हैं
ट्रेन हवा में उड़ा रहे हैं
लेकिन हमारे इंजीनिअर और नेता 
कागज पे ही शहर पुल बाँध सब कुछ बना रहे हैं
यह सुनकर जापानी मित्र मुस्कुराया
लेकिन मैं रहस्य समझ न पाया
फिर सोचा अपनी उपलब्धियां किसी को नहीं बतायेंगे
सीधे शोध पत्र प्रकाशित करवाएंगे
प्रशस्ति पत्रों के ढेर लगायेंगे
मालाओं से लद कर ही ढेरों फोटो खिंचवायेंगे
फूलों से लदी तस्वीर फेस बुक पर लगायेंगे
तमामों बधाई संदेश आयेंगे
लेकिन सोची समझी हमारी प्लानिंग लीक हो गयी
फिर तो हमारी पोजीशन बहुत वीक हो गयी
शोध का होते ही खुलासा
फ़ोन पे सुनने लगे रोजाना अशिष्ट भाषा
प्रशस्ति पत्र और मालाओं का सपना
चाहकर भी न हो सका अपना
फेसबुक पर फूलों से लदी खडी तस्वीर की जगह 
फूलों से लदी पडी तस्वीर नजर आने लगी
अब नेताओं के जासूसी कुत्ते
सूंघसूंघ कर हमारा पता लगा रहे है
और हम इस शहर उस शहर
इस गाँव उस गाँव में छुपकर
अपनी जान बचा रहे हैं 
सुनकर मेरी दुर्दशा की कहानी 
फिर आ गया मेरा मित्र जापानी
आते ही बोला बड़ी बात करते थे
हिन्दुस्तान को जापान से आगे रखते थे
अपनी उपलब्धियों के परचम लहरा रहे थे
घोटालों को शोध बता रहे थे
कागज़ पे शोधों को आगे मत बढाईये
मालाओं से लड़ने की ख्वाइश दिल से हटाईये 
समंदर में गोता लगाकर सैंकड़ों पत्थर मत दिखाईये
काम का सिर्फ एक मोती ही ले आईये 
सिर्फ कागज़ की कश्ती ही मत चलाईये 
कागज़ के जहाजो से बच्चों सा मत बह्लायिये
अब सन्दर्भों का हवाला देकर शोध होने लगे हैं
सन्दर्भ भी सन्दर्भों में खोने लगे हैं
क्या फर्क पड़ता है गर शोधों की जगह सिर्फ शोध हो पाए
शोध भी वो जो अंजाम तक जाए
प्राणी मात्र के काम आये
दुआ है कि आप जापान से आगे बढ़ जाईये
लेकिन अपने शोध पत्रों के नीचे मत दब जाईये
वरना जब को शोधार्थी शोध को आगे बढ़ाएगा 
फंसने पर आप को फ़ोन लगायेया
तब आप अपने आपको व्यस्त दिखाएँगे
या फ़ोन स्विच आफ करे सो जायेंगे 
शोधार्थी भी जब रोते रोते रो जाएगा
तो फिर सन्दर्भ का हवाला देकर भीड़ में खो जाएगा
शोध पत्रों के पहाड़ की ऊचाई तो बढ़ जायेगी 
पर ये ऊंचाई किसी के काम नहीं आयेगी
शोध की पहली सीधी है परिकल्पना 
लेकिन इस सीढ़ी पे ही सपने मत सजायिये
अगले सीधी की तरफ कदम बढ़ाइए
बिषय पे पकड़ का फायदा मत उठाईये
शोध के नाम पर मकड जाल मत बनाईये
इस बार जब उसने बक्तव्य की अंतिम पंक्तियाँ बोलीं
मैंने चाह कर भी अपनी जुवान नहीं खोली

डॉआशुतोष मिश्र


आचार्यनरेन्द्र देव कालेज आफ फार्मेसी बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश


9839167801










3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " एक 'डरावनी' कहानी - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बढ़िया प्रस्तुति

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  3. सार्थक - धमाकेदार प्रस्तुति

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