पिछले एक वर्ष से कोरोना के इस महाभयंकर दानव के क्रूर पंजो में छटपटाकर दम तोड़ते हुए न जाने कितने शुभचिंतक, परिजन, मित्र ,युवा साथी, असमय हमें छोड़कर चले गए। उनकी इस असमय विदाई हो जाना
सत्ता के गलियारों की अदूरदर्शिता तो है ही साथ में हम सबकी लापरवाही
को भी कटघरे में खड़ा करता है। आज दिल हताश है , निराश है अपनों का ध्यान रह रहकर उद्देलित कर रहा है। ईश्वर उन पवित्र आत्माओं को चिर शान्ति प्रदान करे। मेरी उन सभी को विनम्र श्रद्धांजलि
कितने अपनों को खो दिया हमने
लम्हा लम्हा यूं रो जिया हमने
ये हकीकत नहीं रहे तुम अब
घूंट कड़वा भी ये पिया हमने
उनको सत्ता की चाह थी ,वो मिली
खामियाजा भुगत लिया हमनें
जख्मों से रिस रहा लहू अब तक
इक दफा पर न उफ किया हमने
शूल जिनसे लहू लुहान वदन
उनसे ही ज़ख्म हर सिया हमनें
आशू मस्ती में डूब कर खुद ही
अपना दामन जला लिया हमनें
डॉ आशुतोष मिश्रा
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी बभनान
हृदय स्पर्शी ।
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