पंडित जी कथा सुना रहे थे
आतातायी कंस की गाथा बता रहे थे
कैसे नारद के मुख से कृष्ण का उल्लेख आया
कैसे इस सत्य ने कंस की नींद को उड़ाया
बहिन के आठवें बच्चे से भयभीत कंस
महाभिमानी दर्प में चूर कंस
कैसे अनीति की हद पार कर गया
अपनी बहिन-बहनोई को कारावास में कैद कर गया
कैसे एक कान्हा के लिए
हिला दिया जमी का कोना- कोना
षड़यंत्र पर षड़यंत्र कर डाले
प्रयोग कर डाला;
भयानक राक्षस राक्षसनियों का खौफनाक तंत्र
सारा जोर लगाया
पर कान्हा को नहीं मिटा पाया
फिर समय के साथ कान्हा ने कंस को खाक में मिलाया
ये कथा सुनकर मैं सोच में पड़ गया
मेरे दिमाग में ये सवाल बार बार आ रहा है
क्या इतिहास खुद को दुहरा रहा है ?
क्या रामलीला मैदान मथुरा बन जायेगा ?
क्या फिर कोई चमत्कार हो जायेगा ?
कान्हा के रूप में जन- पारावार है
कंस की तरह सरकार ने हर हथकंडा अपनाया
अपना खुफिया तंत्र चप्पे चप्पे में बिछाया
हथकड़ी सांकल का भय दिखाया
कारावास का रास्ता भी अपनाया
हो सकता है पूत्नाएं भी भेजी हों
हो सकता है षड़यंत्र का कोई जाल बिछाया हो
रामलीला मैदान रावन से और
कृष्ण जन्मास्टमी कंस से मुक्ति की याद दिला रहे हैं
भ्रस्ताचार उन्मूलन महायज्ञ में हमारी आस्था बढ़ा रहे हैं
पर सरकार भी हमारी है
अन्ना भी हमारे हैं
मंत्री संत्री सब हमें प्यारे हैं
सभी भारत माता के दुलारे हैं
सैनिक के भेष में भारती का कोई बेटा
खाकी बर्दी में खड़ा माँ का कोई लाडला
क्या अपने निहत्थे भाईओं पे गोली चलाएगा ?
गर एक बेटा दूसरे की खिलाफत में हो जाएगा
दुनिया को हँसने का मौका मिल जायेगा
आपस में मिल जायें
एक दूजे को गले लगायें
भ्रस्टाचार को जड़ से मिटाना है
लेकिन भाई भाई को नहीं टकराना है
अपने दिलों से कंस और रावण को मिटा दें
उनके पुतलों को मिलकर जला लें
कृष्ण जनम पर कसम खाएं
जन लोकपाल क्या ऐसा वो हर कानून बनाएं
जिससे आदमी-आदमी की खाई पट जाये
आदमी-आदमी से मिल जाए
हमारे दिल में चोर नहीं है
; तो हम क्यों घबराएं
जन लोकपाल बनता है तो बन जाए
जनता आज ही सड़कों पे नहीं आयी है
पैसठ बर्षों में हमने जो गुल खिलाये हैं
वो धीरे धीरे पूरी जनता को सड़कों पे ले आये हैं
आओ मिलकर कानून के नए दीप जलाएं
जनता का खोया बिश्वास लौटाएं
पैसठ बर्षों का वनवाश भोग रहे लोग
और जो कुर्सी पे बैठे, रहे हैं सत्ता- सुख भोग
दिलों में बैठे कंस-रावन बध करके सड़कों से घर जाए
ख़ुशी से दीवाली और कृष्ण जन्मास्टमी मनाएं
डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
बहुत सुंदर आव्हान लिए रचना ...समसामयिक भाव को समाहित किये ......
ReplyDeleteआओ मिलकर कानून के नए दीप जलाएं
ReplyDeleteजनता का खोया बिश्वास लौटाएं
sunder soch badhai..
अत्यंत सार्थक और बहुत सी सामयिक और वह भी अकाट्य तर्कों के साथ. वाह मान गए आपकी लेखनी को. अन्ना को जन्माष्टमी से जोड़कर आपने आपने आम इंसान के लिए एक बहुत ही बड़ा उपकार किया है. तर्कों की भाषा, संवैधानिक दाव-पेंच सब नहीं जानते लेकिन अन्तः स्फूर्ति जगाने वाले धर्म तत्त्व को आन भारतीय जनता है, वह इसे गाँठ बाँध लेगा और आजादी किदूसरी लाद्दाई में कूद पड़ेगा. काश यह नेट घर-घर होता, पढने के लिए अनिवार्य होता. फिर भी....मै तो यही कहूँ गा सरकार सोचे और डरे उस दिन से जब..
ReplyDeleteइसमें सन्देश मात्र उतना ही नहीं,
लिखा है जितना, तख्तियों-बैनरों पर.
केवल उतना ही नहीं, जितना ...
लिखा चिकने हाथ के खुरदुरे छालों ने.
जितना लिखा, पाँव में फटी बिवाइयों ने.
असली सन्देश तो वह है जिसे,
दिल - दिमाग पर, मजबूर आंसुओं ने,
लिखा है अपने खून से, दर्द की कलम से,
गहरे- घावों, रिश्ते - जख्मों की लिपि में.
क्या होगा उस दिन?
जिसदिन हो जायेगी उग्र, यह जुलूस?
जिस दिन टूटेगा उनके सब्र का तटबंध.
कौन रोक पायेगा, उस ज्वाला को, ज्वार को?
उस दिन को सोचो! फिर से उसदिन को सोचो !!
जब फूटेगी ज्वालामुखी, जब...
जब निकलेगा गर्म पिघला लावा, और राख.
मचेगी एक भयानक चित्कार.., हाहाकार..,
एकबार फिर उसदिन को सोचो! फी से सोचो!!
यूँ तो लोहा होता बहुत कठोर और बेहद मजबूत,
लेकिन वह भी पिघलता है कैसे? यह भी सोचो !!
आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteजन्माष्टमी की ढेर सारी बधाइयाँ
ReplyDelete''पैसठ बर्षों में हमने जो गुल खिलाये हैं
ReplyDeleteवो धीरे धीरे पूरी जनता को सड़कों पे ले आये हैं''
---सत्य बचन, धन्य बचन, सुंदर बचन ...........
देश का भविष्य सुखद है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक विचार हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
The beautiful creation is on a very positive note. Great !
ReplyDeleteवाह! आशुतोष जी वाह!
ReplyDeleteआपका लेखन प्रेरणादायी और सुखद है.
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार.
आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
भक्ति व शिवलिंग पर अपने सुविचार प्रस्तुत करके
अनुग्रहित कीजियेगा.
बहुत सुंदर और प्रेरक कविता।
ReplyDeleteऐसे ही शब्दों और भावों की आज आवश्यकता है।
Bahut-2 hi sunder w phawpoorn poem.
ReplyDeletebadhai ho sir ji.
fursat me ap bhi aye.
Apke blogg ka anusharan kar raha hun.
ReplyDeleteAbhar..
सार्थक और सशक्त कविता . बहुत-बहुत बधाई और आभार.
ReplyDeletebhakti aur shakti se paripurnya kavita sir ji...
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