Thursday, 24 November 2011

(A2/31) यूं छलका जाम आँखों से हमें कहते संभल जाओ

जुवां से बात की हमने नजर से खूब समझाया 
वो भोले हैं या हैं शातिर समझ में कुछ नहीं आया 

बड़े दिलकश से लगते हैं ये खंजर दिल में चुभते हैं
बहा न खून जब तक यूं न दिल को भी करार आया

हमारे घर से उनका घर ; कदम भर फासला ही है
बिछा कंटक यूं राहों में हमें हरदम ही तड़पाया 

यूं छलका जाम आँखों से हमें कहते संभल जाओ

भरी मीना दिखा तुमने हमें है रोज बहलाया

गुलाबी सुर्ख लव तेरे लूं अब मैं चूम ख्वाइश है
दबा खुद होंठ होंठों से है तुमने हमको तरसाया

खबर न कौन सी रुत है खबर न कौन सा मौसम
घटा, बारिश, हवा, मंजर सभी ने हमको झुलसाया

A2/31
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जुवां से बात की हमने नजर से खूब समझाया
वो भोले हैं या हैं शातिर समझ में कुछ नहीं आया
बड़े दिलकश से लगते हैं ये खंजर दिल में चुभते हैं
लहू जब दिल से बह निकला तभी दिल को करार आया 
मेरे घर से कदम भर दूर यूं तो उस का घर है पर 
सदा पर कांटे रह पर ही बिछा उसने है तड़पाया 
यूं छलका जाम आँखों से मुझे  कहते संभल जाओ
भरी मीना दिखा उसने मुझे बस रोज बहलाया 
गुलाबी सुर्ख तेरे लव लूं अब मैं चूम ख्वाइश है
दबा खुद होंठ होंठों से है बड़ा तुमने है तरसाया 
न तन की सुधि रही मुझको न मन को चैन मिल पाया


घटा वारिश हवा मौसम सभी ने हमको झुलसाया  

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र दो कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो ९८३९१६७८०१

18 comments:

  1. यूं छलका जाम आँखों से हमें कहते संभल जाओ
    भरी मीना दिखा तुमने हमें है रोज बहलाया
    waah

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  2. तुझको दी है सदा बंदगी की तरह
    मैंने चाहा तुझे अपनी जिन्दगी की तरह |anu

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  3. वाह ...शानदार और लाजबाब

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  4. खूबसूरत प्रस्तुति.

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  5. क्या बात है डॉ. आशुतोष जी.
    कमाल की प्रस्तुति है आपकी.
    खूबसूरत, शानदार और लाजबाब.

    मेरे ब्लॉग पर आपके दर्शन नही हुए हैं जी.
    अब इतनी बेरुखी क्यूँ?

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  6. बड़े गहरे भाव व्यक्त किये हैं।

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  8. डॉक्टर साहब अभी आपकी तबियत कैसी है? में भगवान से प्रार्थना करती हूँ ताकि आप जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाये! आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी और हौसला अफ़जाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    हमारे घर से उनका घर ; कदम भर फासला ही है
    बिछा कंटक यूं राहों में हमें हरदम ही तड़पाया
    यूं छलका जाम आँखों से हमें कहते संभल जाओ
    भरी मीना दिखा तुमने हमें है रोज बहलाया ...
    दिल को छू गई ये पंक्तियाँ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!

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  9. सदा बंदगी की तरह..बढ़िया लिखा है .

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  10. आशा है अब आप स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होंगें.
    मेरे ब्लॉग पर आप आये इसके लिए बहुत बहुत आभार,डॉ.साहिब.

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  12. कई सारी रचनाओ के बाद आपकी ये ग़ज़ल आयी है. और क्या खूब आयी है. बहुत ही शानदार ग़ज़ल है.

    खबर न कौन सी रुत है खबर न कौन सा मौसम
    घटा, बारिश, हवा, मंजर सभी ने हमको झुलसाया

    बहुत ही बढ़िया रचना.बधाई.

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  13. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  14. बहुत बढ़िया भावयुक्त रचना...
    सादर

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