Sunday, 30 January 2022

❤️ (K1/74)AM 37 अब वो बुलबुल गीत कोई खुल के गाती है कहाँ

 2122 2122 2122 212

अब वो बुलबुल गीत कोई खुल के गाती है कहाँ,

कैद जैसी दुनिया उसको रास आती है कहाँ।


रोशनी ने भ्रम दिया जब तीरगी सच कह गई

साये का भ्रम तीरगी हमको कराती है कहाँ?


एक मुफ़लिस है वो पर तुम देख कर उसकी हयात

सोचना मत ये की वो सपने सजाती है कहाँ?


बिजलियों से दोस्ती कर आप मत हों बेखबर

बिजलियाँ आदत से अपनी बाज आती हैं कहाँ?


मयकदा है इस तरफ क्यूँ आप जाते उस तरफ

सोचिये चलने से पहले राह जाती है कहाँ?


गर कभी रोटी बची न माँ कहाँ शिकवा करे

वो कभी अपने लिए कुछ भी बचाती है कहाँ?


वो झुकाती है उठाती पलकें बेशक रोज ही

पर झुकी पलके उठा कर फिर झुकाती है कहाँ?


लिक्खा आशू नाम तेरा दिल प उसके है मगर

है कहाँ लिक्खा वो पगली पर मिटाती है कहाँ?


डॉ आशुतोष मिश्र

स्वरचित !($^29012922!($^

आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बभनान

गोंडा उत्तरप्रदेश 9839167801AM 37

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