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ये तुम्हारी पलकें हैं
या हैं पिटारी जादू की
ये उठें
तो जाने कितने झुक गए
ये झुकें तो जाने कितने लुट गए
ये झुकी हैं या उठी हैं खैर है
जब उठीं हैं झुक के कितने उठ गये
या हैं पिटारी जादू की
ये उठें तो जाने कितने झुक गए
ये झुकें तो जाने कितने लुट गए
ये झुकी हैं या उठी हैं खैर है
जब उठीं हैं झुक के कितने उठ गये
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
kamaal hai...
ReplyDeleteबहुत ही खास .....
ReplyDeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
50 फोल्लोवेर्स की बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeletewah.....ati sundar
ReplyDeleteआपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने ! लाजवाब प्रस्तुती!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति महोदय ||
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करें ||
बहुत खूब........
ReplyDeletebhaut bhaut sunder... ye apki rachna ya jaadu hai...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत क्या बात है
ReplyDelete'जब उठी हैं झुक के कितने उठ गए '
ReplyDelete............वाह मिश्रा जी, क्या कहना !
word - searching or searching is word ,or both are searching one together . brilliant description. thank you ji .
ReplyDeletevaah vaah gajab ka sher.bahut achcha.
ReplyDeleteआंखों पर बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteभावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग
http://ghazalyatra.blogspot.com/
पर visit कर मेरी नई गज़ल पढ़ने की अनुकम्पा करें.
आपका स्वागत है !
सुन्दर लेखन की बधाई....
ReplyDeleteसमय मिलने पर आरंभन आयें
http://aarambhan.blogspot.com
बहुत खूब लिखा है| मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
ReplyDeleteआशा
bahut khoob palkon ke uthne aur jhukne pr kamal likha hai
ReplyDeleterachana
kuch hi sbdo me itani badi bat
ReplyDeletebahut achi