Monday, 1 August 2011

(A2/1) ये तुम्हारी पलकें हैं या हैं पिटारी जादू की



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ये तुम्हारी पलकें हैं
या हैं पिटारी जादू की
ये उठें  तो जाने कितने झुक गए
ये झुकें तो जाने कितने लुट गए
ये झुकी हैं या उठी हैं खैर है
जब उठीं हैं झुक के कितने उठ गये


ये तुम्हारी पलकें हैं
या हैं पिटारी जादू की
ये उठें  तो जाने कितने झुक गए
ये झुकें तो जाने कितने लुट गए
ये झुकी हैं या उठी हैं खैर है
जब उठीं हैं झुक के कितने उठ गये

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801 

21 comments:

  1. बहुत ही खास .....

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  2. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  3. 50 फोल्लोवेर्स की बहुत बहुत बधाई

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  4. बेहतरीन पंक्तियाँ।

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  5. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! लाजवाब प्रस्तुती!

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति महोदय ||

    बधाई स्वीकार करें ||

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  7. bhaut bhaut sunder... ye apki rachna ya jaadu hai...

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  8. बहुत खूबसूरत क्या बात है

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  9. 'जब उठी हैं झुक के कितने उठ गए '
    ............वाह मिश्रा जी, क्या कहना !

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  10. word - searching or searching is word ,or both are searching one together . brilliant description. thank you ji .

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  11. vaah vaah gajab ka sher.bahut achcha.

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  12. आंखों पर बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

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  13. भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.


    कृपया मेरे ब्लॉग
    http://ghazalyatra.blogspot.com/
    पर visit कर मेरी नई गज़ल पढ़ने की अनुकम्पा करें.
    आपका स्वागत है !

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  14. सुन्दर लेखन की बधाई....
    समय मिलने पर आरंभन आयें
    http://aarambhan.blogspot.com

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  15. बहुत खूब लिखा है| मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
    आशा

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  16. bahut khoob palkon ke uthne aur jhukne pr kamal likha hai
    rachana

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  17. kuch hi sbdo me itani badi bat
    bahut achi

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