देश की जानी मानी पुलिस आफिसर
अन्ना के रंग ढंग में ढल गयी
देशभक्ति के उन्माद में डूबी थी
भड़ास अभिनय बनकर निकल गयी
एक अभिनेता था कब से व्यथित
ख़ामोशी की बर्फ जाने कब पिघल गयी
देश भक्ति के उन्माद में तमाम बातें
फटे दिल से लावा बन निकल गयीं
बात खादी ओढ़ने वालों को खल गयी
खली क्या खादी सुलग गयी जल गयी
संसद में जबरदस्त बहस चल गयी
लेकिन ........................
जब सोते बच्चे को कार कुचल गयी
जब नकली दवा नौनिहालों को निगल गयी
जब दरिंदगी अबला की जिन्दगी बदल गयी
जब गुमशुदा के लिए माँ की उम्र ढल गयी
जब घोटालों की नाली नदी में बदल गयी
जब मासूम कली बिना खिले ही फल गयी
जब हिमालय की बर्फ धीरे धीरे गल गयी
जब पतित पावनी गंगा मैया उथल गयी
तब भी क्या खादी वालों को खल गयी?
तब भी क्या खादी सुलगी, क्या जल गयी
तब तो हर समस्या स्वतः सुलझ गयी
शोषिता की तस्वीर कैमरे से निकल गयी
खबर हेड लाइन और लाइन में बदल गयी
हर चैनल पर कई-कई बार चल गयी
ना जाने कितनी बार रूह झुलसी है
ना जाने कितनी बार बात खल गयी
जुवान को मैंने फिसलने से रोक रखा है
पर चोट दिल पे थी तो कलम मचल गयी
डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा,उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
मन के भाव कब तक मर्यादा सहेंगे, कभी बह जाते हैं।
ReplyDeleteसच्चाई तो कड़वी होती ही है ....... गणेश चतुर्थी की बधाई
ReplyDeleteएक कडवा सच प्रस्तुत किया है…………शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमिश्रा जी, बहुत सटीक व्यंग है। मैं आपके ब्लॉग से जुड़ गया हूँ।
ReplyDeleteghazab dr.saheb. kitne jwalant mudde per kitni sateek tippadi.woh bhi itne udaharno k saath .waah.badhai..
ReplyDeleteसच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...
ReplyDeletesacchayi kahti rachna....
ReplyDeletebahut hi badhiya.....sabke dil bat apne kaha di
ReplyDelete'चोट दिल पे थी तो कलम मचल गयी'
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मिश्रा जी !
क्षुब्ध मन की बातें कब तक दबी रहेंगी ?
यथार्थ पर प्रभावी व्यंग जो करुणा के शीर्ष तक पहुँचाता है
great sir..... hats off to u.....
ReplyDeletebahut hi sundar, sacchai yahi hai aur yahi iss desh ki vidambana hai.
“ये जज्बे जलते हुये, बन कर खड़े सवाल
ReplyDeleteसबको अपनी ही पडी, बना रहे सब माल”
सादर नमन इस जज्बे को...
बहुत खूब लिखा है डा. साहब।
ReplyDeleteखादी वालों को सैलेक्टिव चीजें\सैलेक्टिव लोग खलते हैं।
सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है आपने! बेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना!
ReplyDeleteAah ! Kaisi sacchai kah dali aapne.. bahut hi jabardast dhang se aapne apne dil ki bhadaas nikli hai Mishra Ji.. Aapki lekhni ko salaam karta hun....
ReplyDeletesir aap ek achche kavi hai, isliye CHOT DIL PE THI TO KALAM MACHAL GAYI...........lekin aam janta ki bhi chot jo dil me thi vo juba pe aagayi..................tabhi to sare desh me naara gooja
ReplyDelete...........MAI BHI ANNA TU BHI ANNA
AB TO SAARA DESH HAI ANNA
ओह!
ReplyDeleteVah mishr ji kya khoob likha hai
ReplyDeleteना जाने कितनी बार बात खल गयी
जुवान को मैंने फिसलने से रोक रखा पर चोट दिल पे थी तो कलम मचल गयी
badhi .
mere naye post pr apka swagat hai.