Tuesday, 18 October 2011

(A1/44) क्या करूँ मैं ?

क्या करूँ मैं ?

जिंदगी में
सीधे सच्चे पथों पे
चलते चलते
जब मिल जाता है
कभी-कभी कोई ऐसा
जो , जमा देता है ,
दो भरपूर तमाचे
दोनों गालों  पे
या
कर जाता है बरसात
गलियों की,
चलते -फिरते , रुकते बैठते
और कभी कभी
जब पार हो जाती हैं
ईशा, गाँधी और कृष्ण की सीमाएं
तब हमेशा ही,
सामने  आ जाता है
समतल और उबड़- खाबड़
दो पथों में बंटता,
दोराहा.....
और , सोचने लगता है
बरबस ही मन
क्या करूँ.?
क्या करूँ मैं?
सहसा तभी
मिल जाता है उत्तर..
की छोड़ा जा सकता है उसे..
व्यक्तिगत सीमाओं के अतिक्रमण तक
किन्तु जब ,
अतिक्रमित होने लगे
मातृभूमि की सीमा
उजड़ने लगे वन
नष्ट होने लगें
जीवा-जाती -प्रजाति
सजल हो जाएँ
माँ के नयन
तब श्रेयस्कर है
मिटा देना उसे
देश द्रोही को छोड़ देना
पाप है, महापाप है






school लाइफ poem  










.


डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०.9839167801



17 comments:

  1. परित्राणाय साधूनाम...

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति,बधाई!

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  3. अच्छी प्रस्तुति ... विचारणीय

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  4. अति सुन्दर ,आभार.

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  5. मानसिक द्वन्द का उत्तर तलाशती रचना!
    बढ़िया निष्कर्ष है!

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  6. अच्छी विचारणीय प्रस्तुति ...

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  7. बहुत सुन्दर और विचारणीय अभिव्यक्ति..

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  8. आशुतोषजी,आपकी पोस्ट पर पहली आया,इस सुंदर प्रस्तुति,\क्या करू मै\के लिए बधाई....

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  9. विचारणीय और सार्थक अभिव्यक्ति ...

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  10. Very nice..
    Revolutionary creation..
    Regards...

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  11. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  12. सुंदर रचना .... !
    हार्दिक शुभकामनायें !

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  13. देश द्रोही को छोड़ देना
    पाप है, महापाप है

    राष्ट्र प्रेम दर्शाती सुंदर कविता .....

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  14. bahut hi badhiya rachna... badhai...

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  15. सुन्दर प्रस्तुति...

    आपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
    MADHUR VAANI
    MITRA-MADHUR
    BINDAAS_BAATEN

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