क्या करूँ मैं ?
जिंदगी में
जिंदगी में
सीधे सच्चे पथों पे
चलते चलते
जब मिल जाता है
कभी-कभी कोई ऐसा
जो , जमा देता है ,
दो भरपूर तमाचे
दोनों गालों पे
या
कर जाता है बरसात
या
कर जाता है बरसात
गलियों की,
चलते -फिरते , रुकते बैठते
और कभी कभी
जब पार हो जाती हैं
ईशा, गाँधी और कृष्ण की सीमाएं
तब हमेशा ही,
सामने आ जाता है
समतल और उबड़- खाबड़
दो पथों में बंटता,
दोराहा.....
और , सोचने लगता है
बरबस ही मन
क्या करूँ.?
क्या करूँ मैं?
सहसा तभी
मिल जाता है उत्तर..
की छोड़ा जा सकता है उसे..
व्यक्तिगत सीमाओं के अतिक्रमण तक
किन्तु जब ,
अतिक्रमित होने लगे
मातृभूमि की सीमा
उजड़ने लगे वन
नष्ट होने लगें
जीवा-जाती -प्रजाति
सजल हो जाएँ
माँ के नयन
तब श्रेयस्कर है
मिटा देना उसे
देश द्रोही को छोड़ देना
पाप है, महापाप है
school लाइफ poem
school लाइफ poem
.
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०.9839167801
परित्राणाय साधूनाम...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,बधाई!
ReplyDeleteBeautifully
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ... विचारणीय
ReplyDeleteशान्ति या अशान्ति…
ReplyDeleteअति सुन्दर ,आभार.
ReplyDeleteमानसिक द्वन्द का उत्तर तलाशती रचना!
ReplyDeleteबढ़िया निष्कर्ष है!
अच्छी विचारणीय प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और विचारणीय अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteआशुतोषजी,आपकी पोस्ट पर पहली आया,इस सुंदर प्रस्तुति,\क्या करू मै\के लिए बधाई....
ReplyDeleteविचारणीय और सार्थक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteVery nice..
ReplyDeleteRevolutionary creation..
Regards...
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सुंदर रचना .... !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
देश द्रोही को छोड़ देना
ReplyDeleteपाप है, महापाप है
राष्ट्र प्रेम दर्शाती सुंदर कविता .....
bahut hi badhiya rachna... badhai...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
BINDAAS_BAATEN