वाह क्या सौगात दी है
मांगते हरदम रहे हो
प्यार भी, सद्भाव भी
पूरा समर्पण भी,
हम बहाते रहे अपना खून अब तक
शान पर,झूठी, तुम्हारी आन पर....
पलकें अपनी मूँद के चलते रहे
दिया तुमने क्या हमें
सोचा कभी?
रोटियों को हम तरसते,
अश्क आँखों से बरसते
पाँव कीचड में सने हैं
टूटा दिल हैं अनमने हैं
झोपड़े; अपने महल थे
जैसे थे; अच्छे भले थे
क्या हुआ, तुमको खले क्यों
मंजिलों पे मंजिलें ,तुमने खड़ी की
झोपड़ों पे पाँव रखकर
क्या हुआ? ए कार वालों
क्यूँ दिया उसको कुचल
कर झोपड़ों से बेदखल
क्या बिगाड़ा था , भला मासूम ने
लूट ली इज्जत भरे बाज़ार में....
आसुओं का बाँध
नफरत, द्वेष, दरिया दर्द का
ये ढेर लाशों के
वाह! क्या सौगात दी हैं
कॉलेज जीवन की एक कृति
डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
मांगते हरदम रहे हो
प्यार भी, सद्भाव भी
पूरा समर्पण भी,
हम बहाते रहे अपना खून अब तक
शान पर,झूठी, तुम्हारी आन पर....
पलकें अपनी मूँद के चलते रहे
लगी कितनी ठोकरें
गिरते रहे..दिया तुमने क्या हमें
सोचा कभी?
रोटियों को हम तरसते,
अश्क आँखों से बरसते
पाँव कीचड में सने हैं
टूटा दिल हैं अनमने हैं
झोपड़े; अपने महल थे
जैसे थे; अच्छे भले थे
क्या हुआ, तुमको खले क्यों
मंजिलों पे मंजिलें ,तुमने खड़ी की
झोपड़ों पे पाँव रखकर
क्या हुआ? ए कार वालों
क्यूँ दिया उसको कुचल
कर झोपड़ों से बेदखल
क्या बिगाड़ा था , भला मासूम ने
लूट ली इज्जत भरे बाज़ार में....
आसुओं का बाँध
नफरत, द्वेष, दरिया दर्द का
ये ढेर लाशों के
वाह! क्या सौगात दी हैं
कॉलेज जीवन की एक कृति
डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
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वाह क्या सौगात दी है
मांगते हरदम रहे हो
प्यार भी, सद्भाव भी
पूरा समर्पण भी,हम बहाते रहे अपना खून अब तक
शान पर,झूठी, तुम्हारी आन पर....पलकें अपनी मूँद के चलते रहे
मांगते हरदम रहे हो
प्यार भी, सद्भाव भी
पूरा समर्पण भी,हम बहाते रहे अपना खून अब तक
शान पर,झूठी, तुम्हारी आन पर....पलकें अपनी मूँद के चलते रहे
लगी कितनी ठोकरें
गिरते रहे..दिया तुमने क्या हमें
सोचा कभी?रोटियों को हम तरसते,अश्क आँखों से बरसते
पाँव कीचड में सने हैं
टूटा दिल हैं अनमने हैं
झोपड़े; अपने महल थे
जैसे थे; अच्छे भले थे
क्या हुआ, तुमको खले क्यों मंजिलों पे मंजिलें ,तुमने खड़ी की
झोपड़ों पे पाँव रखकर
क्या हुआ? ए कार वालों
क्यूँ दिया उसको कुचल
किया झोपड़ों से बेदखल
क्या बिगाड़ा था , भला मासूम ने
लूट ली इज्जत भरे बाज़ार में....आसुओं का बाँध
नफरत, द्वेष, दरिया दर्द का
ये ढेर लाशों के
वाह! क्या सौगात दी हैं
सोचा कभी?रोटियों को हम तरसते,अश्क आँखों से बरसते
पाँव कीचड में सने हैं
टूटा दिल हैं अनमने हैं
झोपड़े; अपने महल थे
जैसे थे; अच्छे भले थे
क्या हुआ, तुमको खले क्यों मंजिलों पे मंजिलें ,तुमने खड़ी की
झोपड़ों पे पाँव रखकर
क्या हुआ? ए कार वालों
क्यूँ दिया उसको कुचल
किया झोपड़ों से बेदखल
क्या बिगाड़ा था , भला मासूम ने
लूट ली इज्जत भरे बाज़ार में....आसुओं का बाँध
नफरत, द्वेष, दरिया दर्द का
ये ढेर लाशों के
वाह! क्या सौगात दी हैं
आह!!!!!
ReplyDeleteबेहद मार्मिक...
सादर.
ओह ! क्या सौगात ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteमार्मिक रचना।
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteयह तो बहुत उत्कृष्ट रचना है भाई जी ।
ReplyDeleteशुभकामनाएं ।।
ढेर सारी समस्याओं का यह कोलाज विचारोत्तेजक है।
ReplyDeleteमहल और झोपड़े...
ReplyDeleteजिंदगी के दो पहलू।
मौलिकता एवं सहजता को मिटाकर सब आँखों का भ्रम जैसी क्या सौगातें !
ReplyDeleteमार्मिक !
सारगर्भित रचना बहुत कुछ कहती हुई अपने उद्दश्यों में सफल.... प्रभावशाली सृजन .... साधुवाद डॉ.साहब
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना
ReplyDeletevery touching creation..People are hardly bothering about moral values these days.
ReplyDeleteमार्मिक .. भावपूर्ण
ReplyDeleteवाह बहुत खूब .....संवेदना पूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन जनवादी रचना .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteकैंसर रोगसमूह से हिफाज़त करता है स्तन पान .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_01.html
सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeletea very nice creation
ReplyDeleteReally impressive sir...............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
बेहद मार्मिक चित्रण है इस रचना में ...
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