जिस घडी उससे जुदा होने की घडी आयी
दरिया- अश्कों का बहा, याद भी बड़ी आयी
सीढ़ियों पे ही मुझे रोका था कुछ कहने को
होंठ हिल पाए ना थे अश्कों की झड़ी आयी
आँखों- आँखों में आँखों ने सगाई कर ली
दर-ए -दिल पाती जाने कबसे है पड़ी आयी
दो बदन, एक जिस्म- एक जां, ना हो पाए
दरम्याँ धर्म-ओ-रिवाजों की हथकड़ी आयी
हमने सोचा था की अरमानो के बम फूटेंगे
हाय री किस्मत , मेरे हाथों ये लड़ी आयी
आशु तनहा ही मैकदे में मय कशी करते
जिंदगी में है उनके जबसे फुलझड़ी आयी
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान , गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
A2/13
2122 1122 1212 22,,112
जिस घडी उससे जुदा होने की घडी आयी
दरिया- अश्कों का बहा, याद भी बड़ी आयी
सीढ़ियों पे ही मुझे रोका इक दफा उसने
होंठ हिल पाए ना थे अश्कों की झड़ी आयी
आँखों आँखों में ही आँखों ने की सगाई जब
आँखों- आँखों में ही आँखों ने सगाई कर ली
दर-ए -दिल पाती जाने कबसे है पड़ी आयी
दो बदन चाह के भी एक जां न हो पाये
दो बदन, एक जिस्म- एक जां, ना हो पाए
दरम्याँ धर्म-ओ-रिवाजों की हथकड़ी आयी
हमने सोचा था की अरमा के ही बम फूटेंगे
हाय किस्मत मेरी हाथों में ये लड़ी आयी
आशु तनहा ही करें मयकशी यूं सारी शब्
लगता जीवन में कोई उसके फुलझडी आयी
आशू तनहा ही मैकदे में मय कशी करते
जिंदगी में है उनके जबसे फुलझड़ी आयी
जोरदार ।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ।
बधाई ।।
जितनी आस, उतनी प्यास,
ReplyDeleteढुलक ढुलक बहता विश्वास।
Sunder Panktiyan
ReplyDeleteवाह !!!!! बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पंक्तिया .आशु जी,...
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
माशा अल्लाह...बेहतरीन नज़्म..
ReplyDeleteवाह! वाह! वाह क्या बात है जी!
ReplyDeleteदो बदन, एक जिस्म- एक जां, ना हो पाए
ReplyDeleteदरम्याँ धर्म-ओ-रिवाजों की हथकड़ी आयी
बहुत बढ़िया ग़ज़ल .
सीढ़ियों पे ही मुझे रोका था कुछ कहने को
ReplyDeleteहोंठ हिल पाए ना थे अश्कों की झड़ी आयी
बहुत खूब।
बढि़या ग़ज़ल।
waah bahut khub
ReplyDeleteसीढ़ियों पे ही मुझे रोका था कुछ कहने को
ReplyDeleteहोंठ हिल पाए ना थे अश्कों की झड़ी आयी
lajabab sher ....badhai mishr ji
सुन्दर ,सुन्दर..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
आशु तनहा ही मैकदे में मय कशी करते
ReplyDeleteजिंदगी में है उनके जबसे फुलझड़ी आयी
बढ़िया.. शानदार ग़ज़ल.