Saturday, 19 May 2012

(OB 109) जिंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है (BP 48)


ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है
तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है 

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना 
कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है

गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा 
दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है

वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए
सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है

काम करना ही हमारा है इबादत रब की
इस इबादत में छिपा  ज़िंदगी का  राज भी है

कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए
सामने राजा ने जिनके दिया रख ताज भी है 

काम करता जो बुरे लोग हैं नफरत करते
काम गर अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है   

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी , बभनान गोइड, उत्तरप्रदेश 271313
9839167801
www.ashutoshmishrasagar.blospot.in

15 comments:

  1. सूखे पत्तों सी बिखरती है जिंदगी जब भी
    यूं समझना की कोपलों का ये आगाज भी है
    सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
    शुभकामनायें ...!!

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  2. सूखे पत्तों सी बिखरती है जिंदगी जब भी
    यूं समझना की कोपलों का ये आगाज भी है


    गीत कोई भी गुनगुना लो जब भी हो तनहा
    धड़कन-ए-दिल, साँसों का हंसी साज भी है

    वाह ...बहुत खूबसूरत गजल

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  3. बहुत ही बेहतरीन गजल है...
    हर शेर सुन्दर है...

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  4. उस खुदा ने बनाया है यहाँ मुकद्दर सबका
    सबका अपना है हुनर, अपना अंदाज भी है

    वाह ,,,, बहुत सुंदर गजल ,,,अच्छी प्रस्तुति

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  5. उस खुदा ने बनाया है यहाँ मुकद्दर सबका
    सबका अपना है हुनर, अपना अंदाज भी है
    .......बहुत खूब !!!

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  6. उस खुदा ने बनाया है यहाँ मुकद्दर सबका
    सबका अपना है हुनर, अपना अंदाज भी है
    काम करना ही हमारा है बस इबादत रब की
    हाथ मालिक का मेरे सर पे हंसी ताज भी है


    मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने....
    बेहतरीन ग़ज़ल ....

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  7. काम करना ही हमारा है बस इबादत रब की
    हाथ मालिक का मेरे सर पे हंसी ताज भी है

    बहुत खूबसूरत...
    सादर।

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  8. सूखे पत्तों सी बिखरती है जिंदगी जब भी
    यूं समझना की कोपलों का ये आगाज भी है

    बहुत खूब ... अंत और आरम्भ का दर्शन

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  9. सूखे पत्तों सी बिखरती है जिंदगी जब भी
    यूं समझना की कोपलों का ये आगाज भी है

    बहुत सकारात्मक स्वरों की एक अंतर धारा पूरी रचना में वेगवती हो बहती है .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    सोमवार, 21 मई 2012
    यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  10. काम करना ही हमारा है बस इबादत रब की
    हाथ मालिक का मेरे सर पे हंसी ताज भी है


    लाजवाब । मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद

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  11. वाह...बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...

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  12. इस जमाने की बेहिसाब सी नफरत पर ना जा
    ष्आशुष् कुछ लोग हैं जिनको तुझपे नाज भी है

    अच्छी ग़ज़ल, समय की नब्ज को टटोलती हुई।

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  13. सूखे पत्तों सी बिखरती है जिंदगी जब भी
    यूं समझना की कोपलों का ये आगाज भी है

    बहुत ही खूबसूरत ।

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