Monday, 2 May 2011

only for DOPS alumni

               Only for Dr HSGVV Sagar Alumni
                ntwritten on the occasion of swarn jayanti samaharoh of the departme
यही उस समंदर का अजनबी किनारा है 
जहाँ पर मिले थे हम कभी अजनबी 
यहीं पर वो लहरें हैं यहीं पर वो गीत हैं 
यहीं पर धडकता दिल है यही पर वो मीत हैं  
यही उस समंदर का अजनबी किनारा है 
जहाँ पर मिले थे हम कभी अजनबी 

यहाँ पर सभी को मिली अपनी मंजिल 
किसी को गमे महफ़िल  किसी को हसीन दिल 
कोई नाजनीनो को बस देख पाया 
किसी ने गुलों  संग घरोंदा बसाया 
यही उस समंदर का अजनबी किनारा है 
जहाँ पर मिले थे हम कभी अजनबी 
यहाँ  धडकनों की सदा अब भी आये 
कोई कांच मंदिर उठकर तो जाए 
यहाँ रान गिरी जंगल वो पानी की झील है 
यहाँ पर परेट मंदिर ,  मोटल कैटी है 
यहाँ सागर झील है यहाँ वीला डैम है 
जो कुछ भी मैंने कहा सब उसके फैन हैं 
राहत  मिली है राहत गढ़ में 
जमी से भी कितना ऊपर यूं चढ़के 
यहाँ की हवाओं में मुहब्बत के नगमें 
यहाँ की फिजाओं में बिखरे हैं सपने 
यही उस समंदर  का अजनबी किनारा है 
जहाँ पर मिले थे हम कभी अजनबी 


My unveil emotion

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