ईना......... मीना......... डीका
भारत में क्रिकेट अब धर्मवत् हो गया है उसका कोई भी मैच मनोरंजन का पर्याय हो सकता है लेकिन विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान मुल्क के बीच जब-2 यह खेल हो तब ऐसा प्रतीत होता है कि मानो खेल नहीं कोई युद्ध चल रहा हो। भावनात्मक रूप से जुड़े कितने ही लोग इस हार-जीत को जीवन की हार-जीत मान बैठते हैं और फिर विश्व कप का मैच हो तो क्या कहने! लगता है किसी धर्म यु,द्ध का ही ऐलान हो। मोहाली के मैदान में परिणामस्वरूप दोनों ही मुल्क के कुछ लोगों ने अपनी जान गँवा दी। मैं अजीबोगरीब मनोस्थिति में अपने घर के बाहर बैठा कुछ सोच रहा था और टी.वी. पर बड़े ही जोर-शोर से मुम्बई मंे खेले जाने वाले फाइनल मैच की चर्चा बड़े ही जोर से कानों में गूँज रही थी। इस मुल्क के लोगों के दिल तब तक दु्रतिगति से धड़कते रहेंगे जब तक माही सेना के कमाण्डर माही के हाथों में चमचमाता विश्व कप नहीं होगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा? किस तरह की मनोस्थिति होगी? इन्हीं ख्यालों में उलझा हुआ मैं सड़क पर घूम रहे- किसी भी खेल एवं देश के तथाकथित राजनेताओं के ओछी राजनीति के तनाव से मुक्त,- अश्व और श्वान प्रजाति के सदस्य निश्छल प्रेम प्रक्रिया में संलग्न उन्मुक्त विचरण कर रहे थे। उनकी निश्छलता सोचने पर विवश कर रही थी कि मानव प्रजाति को अश्व, श्वान प्रजाति का अनुसरण करना है अथवा अश्व, श्वान प्रजाति को मानव प्रजाति का। विकास की विभिन्न अवस्थाओं में जीवन यापन करने वाली विविध विश्व प्रजातियों में कितना अन्तर है। अभी मैं सोच के गहरे सागर में डुबकी लगा ही रहा था -तभी मेरे एक मित्र; जिन्हें प्यार से मैं क्रिकेट की जांेक कहता हूँ; ने मेरे ध्यान में विघ्न डालते हुए कहा- तुम यूँ ही सड़क पर सड़क देखो- पता है तुम्हें आज की ब्रेकिंग न्यूज क्या है मैंने कहा न तो मुझे मालूम है न ही इसे जानने में मेरी कोई दिलचस्पी है। पुनः संवाद स्थापित करने की मंशा से उसने कहा आज एक मॉडल फाइनल मैच में भारत की जीत होने पर मैदान अथवा डेªसिंग रूम में अपने को निर्वस्त्र कर देगी। बिना उसकी ओर मुखातिब हुए मैंने सिर्फ कह दिया कि कोई गधी होगी वह भी शायद इसलिए कि उन्मुक्तता और आधुनिकता की वर्तमान में स्थापित परिभाषा के अनुसार भारत की श्वान प्रजाति के सदस्य विकासक्रम में सबसे आगे हैं और मानव प्रजाति को उसका अनुसरण करते हुए श्वान प्रजाति से प्रतिस्पर्द्धा जीतने में अभी कई शताब्दियाँ लग सकती है। किन्तु मेरे क्रिकेट प्रेमी मित्र को यह बात खल गयी और जितनी भी असामाजिक भाषा के शब्द उसने सीखे थे; मुझ पर झड़ी लगा दी। मैं हैरान था कि क्रिकेट का अदभुत प्रेमी ईना मीना डीका का प्रेमी कैसे हो गया? मैंने तो यूँ ही सहजता से टिप्पणी कर दी क्योंकि सीता, सावित्री की वंशज- जिनके तन सूरज और चाँद भी नहीं देख सके- इस देश की शु,द्ध वंशावली की कोई बालिका नवयौवना अथवा महिला इस तरह की बेहूदगी भरी बात शायद कभी नहीं करेगी किन्तु मेरे मित्र की आँखों में व्याप्त रोष और फिर उसके शब्दो- जानते हो तुम क्या कह रहे हो; वह यदि जान ले तो तुम्हें नाकों चने चबवा दे- बड़े-2 राजनैतिक और फिल्मी हस्तियों से उसके सम्बन्ध हैं जो तुम्हारा भूसा निकाल देंगे और तुम्हारे चेहरे का भूगोल बिगाड़ देंगे- ने मुझे झकझोर दिया। शान्त तालाब में कंकड़ी मारते रहिए कोई बात नहीं; चट्टाने फंेकने लगेंगे तो बड़ी लहरों का उठना स्वाभाविक है। प्रहार पर प्रहार जब असहनीय हो गये तो मुझे भी रोष आ गया और मैंने कहा जाकर जो कहना है कह दो। जिस देश में सचिन को भगवान, क्रिकेट को धर्म माना जाता है वहाँ उसे कपड़े उतारने के लिए डेªसिंग रूम ही मिला; उतारने ही है तो जाये किसी समुद्री बीच पर उतारे या सड़क पर। आखिर मुझे समझ में नहीं आता है कि अपने आप को आधुनिक दिखाने की होड़ अथवा अश्व अथवा श्वान प्रजाति से प्रतिस्पर्धा में होली बोली टोली बुड की तमाम ईना मीना डीकाओं ने अपनी मादक अदाओं और अंदाजों के साथ अभी तक जो भी दिखाया है उसे देखकर तो कभी नहीं लगा कि विश्व के तमाम नारी प्रजाति इनसे वंचित हैं। जहाँ तक पुरुष के मोहभंग की बात है तो उसे अपनी कोख से पैदा कर अपने स्तनों से दुग्ध पान कराकर उसके गुलाबी अधरों को चूमकर माँ के रूप में नारी ने नारी के पवित्र तन के रहस्य को बचपन में उजागर कर दिया था। सुदूर जंगलों में रहने वाली ग्रामीण आदिवासी बालाओं के सुडौल वक्ष गहन केशराशि मधुमाता यौवन और उनकी कमनीयता किसी भी होली बॉली टॉली बुड की ईना मीना डीकाओं को शर्मसार करने के लिए काफी हैं। नग्नता की होड़ में जो कुछ प्रदर्शित किया गया था न तो वह रहस्यमयी था न ही जो प्रदर्शित किया जाना है वह रहस्यमयी है। मीडिया अपनी नैतिक जिम्मेदारी को दरकिनार करते हुए बेहूदगी को जिस प्रकार बार-2 चर्चित करना चाहता है; शर्मनाक है। देश के सामाजिक, घार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर इस तरह की चोट जिन्हें बर्दाश्त हो वह करे मुूझे तो यह बिल्कुल रास नहीं आता। अभी तक मैंने अश्व प्रजाति, श्वान प्रजाति जैसे साहित्यिक शब्दों का प्रयोग संकेत के लिए किया है किन्तु यदि आवश्यकता पड़ी तो इन शब्दों के देशी शब्दार्थ का प्रयोग करने में कोई गुरेज नहीं होगा।
डॉ0 आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी
बभनान-गोंण्डा (उ0प्र0)।
आदमी आदिमों में फ़र्क हुआ बेमानी,
ReplyDeleteबदन से हट रहे बनियान कहा करते हैं।।