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ईश्वर जब भी चाहता है कुछ अनोखा करना
ईश्वर जब भी चाहता है कुछ अनोखा करना
भेजना चाहता है कोई अद्भुत सन्देश
छेड़ना चाहता है सुर लहरी
खेलना चाहता है बच्चों जैसे खेल
संबारना चाहता है धरती का आँचल
दमन करना चाहता है अनीति का
मिटाना चाहता है पापियों को समूल
तब-तब
चुनता है किसी को
बनाता है अपना निमित्त
और इस सत्य को जानकार ही
सुर लहरियों से जग को बहलाकर
रनों के अम्बार लगाकर
अभिनय का झंडा फहराकर
मौन हैं लता. सचिन और अमिताभ
और
खुद को भूखा प्यासा रख;
मुस्कुराते हैं अन्ना गाँधी की तरह
न जाने कितने खुदा के बन्दे
बिना इठलाये ,बिना इतराए
कर रहे हैं पूर्ण; ईश्वर के ख्वाब , निमित्त बनकर
धरती को संवारने का संकल्प दिल में लिए .....
सम्भब्तः इसीलिए
ईश्वर ने तुम्हे चुना था
शायद तुम पूरे कर सको उसके स्वप्न
और शायद इसलिए मैंने भी
चुना है ईश्वर को
मुझे भी ख्वाइश है उसकी कृपा की...
मैं साक्षी हूँ तुम्हारी प्रतिभा के पल्लवन का
पर शायद तुम्हे अब याद नहीं है यह
जमीन पर रहते हुए ही तुम्हे लगता है
न जाने कितनी सीढियां चढ़ गए हो तुम
कल्पना करते हो की उठा के हाँथ
बांध लोगे आकाश को अपनी मुट्ठी में.....
तुम्हारे खातों के अंकों को
बड़े अंकों में..........
अब तुम्हे गुरेज है खेलने में
शायद तुम्हे भ्रमित करते हैं
कागज के वो चंद टुकड़े
जो तब्दील कर देते हैं रोजतुम्हारे खातों के अंकों को
बड़े अंकों में..........
अब तुम्हे गुरेज है खेलने में
गुल्ली डंडा और आँख मिचोली मेरे साथ
अब गंवारा नहीं है तुम्हे
एक नजर भर कर देखना भी मुझे
अब मेरी आँखें सिर्फ बहती हैं
अब नहीं होता है
सांत्वना का कोई हाथ मेरे सर पर....
पर मैं जानता हूँ
तुम मुझसे मिलोगे
जब बहोगे नदियों में
उदोगे हवाओं में
राख बनकर मेरे साथ
और जब-
मिला देंगी सागर की लहरें
अब गंवारा नहीं है तुम्हे
एक नजर भर कर देखना भी मुझे
अब मेरी आँखें सिर्फ बहती हैं
अब नहीं होता है
सांत्वना का कोई हाथ मेरे सर पर....
पर मैं जानता हूँ
तुम मुझसे मिलोगे
जब बहोगे नदियों में
उदोगे हवाओं में
राख बनकर मेरे साथ
और जब-
मिला देंगी सागर की लहरें
तुम्हे और मुझे;
तुम्हारे न चाहते हुए भी...
तब सिर्फ मैं सुन सकूँगा
तुम्हारे रुदन की आवाज
लेकिन ....
लेकिन तब नहीं होंगी;
मेरी आँखें रोने को
मेरी आँखें रोने को
तब नहीं होंगे मेरे हाथ
तुम्हे सांत्वना देने के लिए
शायद!
शायद तब तक देर हो चुकी होगी
बहुत देर ................
शायद तब तक देर हो चुकी होगी
बहुत देर ................
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
कहाँ से शुरू कर के कहाँ तक आपकी सोच जाती है ... लाजवाब ..
ReplyDeleteयुक्तिसंगत विचार श्रंखला।
ReplyDeleteखुली चेतावनी या मुखर सन्देश सबके लिए ..क्या कहूँ...उम्दा लेखन .बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
रचना में
ReplyDeleteउपयोगिता के अंश,
भरपूर हैं...
अभिवादन .
उत्कृष्ट रचना ! लेकिन यह अपेक्षा इन्हीं तीन से क्यों ? सृष्टि का संतुलन बनाये रखने के लिये परचम उठाने वाले हाथों की संख्या अनगिनत है ! उन सभीका आह्वान कीजिये और उन्हें भी प्रेरित कीजिये !
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । प्रस्तुति अच्छी लगी । मरे पोस्ट पर भी पधारें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteDr Ashutosh Mishra ji really u hv shown unveiled emotions...
ReplyDeleteरचनात्मक रचनाएँ आप की मन को छू गयी अनछुए पहलू दिखे सच में लोग बस अपने में मस्त किसी भी तरह से धनार्जन करो देश दुनिया का ख्याल ...कभी कभी झंडा छू लो ....हमारे सभी मित्रो को आप के साथ साथ विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं -सौभाग्य से कुल्लू में प्रभु श्री राम के दर्शन हुए और मन में आया आप सब के बीच भी इस शुभ कार्य को बांटा जाए .--
इसमें शरीक होने और आप की शुभ कामनाओं के लिए
आभार आप का
भ्रमर ५
खुद को भूखा प्यासा रख;
मुस्कुराते हैं अन्ना गाँधी की तरह
न जाने कितने खुदा के बन्दे
बिना इठलाये ,बिना इतराए
कर रहे हैं पूर्ण; ईश्वर के ख्वाब , निमित्त बनकर
धरती को संवारने का संकल्प दिल में लिए .....
सम्भब्तः इसीलिए
ईश्वर ने तुम्हे चुना था
gahan bhavon ki sundar evam sarthak rachna.
ReplyDeleteहर कोई प्रकृति में योगदान कर रहा है। कोई उसे दूषित करने में,तो कोई उस दूषित की सफाई में!यह हमें ही चुनना है कि जीवन का उपयोग किस रूप में करना है।
ReplyDeleteभावों की गहनतम बुनाई...
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति....
सादर बधाई...
"शायद तुम्हे भ्रमित करते हैं
ReplyDeleteकागज के वो चंद टुकड़े
जो तब्दील कर देते हैं रोज
तुम्हारे खातों के अंकों को
बड़े अंकों में.........." क्या बात है……सुंदर रचना…बहुत बहुत बधाई।
बहुत सुंदर रचना उन सब दिग्गजों का आव्हान करती हुई कि समय आ गया है कि वे भी जनता की प्रेरणा बन कर जनता के साथ खडे हों वरना बहुत देर हो जायेगी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना उन सब दिग्गजों का आव्हान करती हुई कि समय आ गया है कि वे भी जनता की प्रेरणा बन कर जनता के साथ खडे हों वरना बहुत देर हो जायेगी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना उन सब दिग्गजों का आव्हान करती हुई कि समय आ गया है कि वे भी जनता की प्रेरणा बन कर जनता के साथ खडे हों वरना बहुत देर हो जायेगी ।
ReplyDeleteमुखर सन्देश, बहुत बहुत बधाई......
ReplyDeleteधन्यवाद आशुतोष जी ! आपने मेरी प्रतिक्रिया पर असंतोष व्यक्त नहीं किया ! आपने जिस ब्लॉग 'उन्मना'को फोलो किया है वह मेरी माँ की रचनाओं का ब्लॉग है ! वे अपने समय की प्रसिद्ध कवियित्री थीं ! मेरी अपनी रचनाओं का ब्लॉग 'सुधीनामा' है ! आप उस पर भी आयेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी !
ReplyDeletehttp://sudhinama.blogspot.com
नई सोच के साथ अलग शैली में प्रस्तुत उत्तम विचार।
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती पोस्ट सकारात्मक पोस्ट .विचार प्रेरक लम्बी कविता .विचार कविता .
ReplyDeleteगहन अर्थों को समेटती भावप्रवण कविता।
ReplyDeleteDr Mishr, ...very nice creation...loving it.
ReplyDeletebahit hi sundar rachna. badhai
ReplyDeleteये लोग हमेशा खामोश रहे हैं…जबकिअ ताकत कम नहीं इनके पास…
ReplyDeleteSir,aap ke rachna hamesha prareet karti hai
ReplyDeletegd evng sir