Friday, 6 July 2012

(BP 45) आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब


आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब
कानपुर, लखनऊ क्योंकि सूखे हुए हैं साहिब
जान दे देंगे तेरी आँखों से ना निकलेंगे
मार्च से जून हुआ टूटे हुए हैं  साहिब
तेरी आँखों को कैद-ए-काला पानी जो कहते
मेरी नजरों में वो झूठे  हुए हैं साहिब
हम तेरे मेहमां चंद  रोज  यहाँ
क्यूँ खफा है क्यूँ रूठे हुए हैं साहिब ?
जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना 
शीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब






डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उ.प्र.

11 comments:

  1. जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना
    शीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब

    बहुत खूब.
    क्या बात है डॉ.साहिब

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  2. यह प्रयास बहुत ही अच्छा लगा । आशा है भविष्य में भी इस प्रकार के पोस्ट पाठकों को पढ़ने के लिए मिलते रहेंगे।

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  3. बहुत सुन्दर रचना
    :-)

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  4. बहुत खूब, क्या बात है..

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  5. बहुत खूब ...सादर

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  6. क्यूँ खफा है क्यूँ रूठे हुए हैं साहिब?आ ही गए हैं तो अब ठीक से बरस भी जाइए साहिब ! बहुत सुंदर प्रस्तुति...

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  7. वाह क्या बात है.बहुत सुन्दर रचना.
    आपके जज्बात बहुत अच्छे लगे.


    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

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  8. जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना
    शीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब
    शुक्रिया डॉ साहब आपकी उत्साहित करने वाली दस्तक का .

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  9. लाजवाब प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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