आपकी आँखों में हम डूबे हुए हैं साहिब
कानपुर, लखनऊ क्योंकि सूखे हुए हैं साहिब
जान दे देंगे तेरी आँखों से ना निकलेंगे
मार्च से जून हुआ टूटे हुए हैं साहिब
तेरी आँखों को कैद-ए-काला पानी जो कहते
मेरी नजरों में वो झूठे हुए हैं साहिब
हम तेरे मेहमां चंद रोज यहाँ
क्यूँ खफा है क्यूँ रूठे हुए हैं साहिब ?
जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना
शीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उ.प्र.
जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना
ReplyDeleteशीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब
बहुत खूब.
क्या बात है डॉ.साहिब
dhnywad bhaisaheb
Deleteयह प्रयास बहुत ही अच्छा लगा । आशा है भविष्य में भी इस प्रकार के पोस्ट पाठकों को पढ़ने के लिए मिलते रहेंगे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDelete:-)
बहुत खूब, क्या बात है..
ReplyDeleteबहुत खूब ...सादर
ReplyDeleteक्यूँ खफा है क्यूँ रूठे हुए हैं साहिब?आ ही गए हैं तो अब ठीक से बरस भी जाइए साहिब ! बहुत सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह क्या बात है.बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteआपके जज्बात बहुत अच्छे लगे.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
जब हो मंजर हसीन हमको इत्तला करना
ReplyDeleteशीशे चश्मे के मेरे फूटे हुए हैं साहिब
शुक्रिया डॉ साहब आपकी उत्साहित करने वाली दस्तक का .
बहुत बढ़िया .....
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
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