Thursday, 26 March 2020

(OB 127) इक्कीस दिन की कैद में कैसे समय बिताय

अपने अपने घरों की जेल में कैद (नजरबन्द) सभी क्रांतिकारियों का नमन। 

पंख कटे पंछी हुए ,सीमित हुयी उड़ान
सर पे अम्बर था जहाँ, छत है गगन समान

सारी दुनिया सिमट कर कमरे में है कैद
घर के बाहर है पुलिस, खड़ी हुई मुश्तैद

जिनकी  शादी  ना हुयी , उनकी मानो खैर
और हुयी जिनकी न लें, घर वाली से बैर

घर के कामो में लगें, हर विपदा लें टाल
साँप छुछूंदर गति न हो, करफ्यू या भूचाल

भागवान से लड़ नहीं, बात ये मेरी मान
भागवान के केस में, चुप रहते भगवान

प्रथम दिवस आखिर कटा, साँसों में थे प्रान
मगर रात धरती लगी, जैसे हो श्मशान

लक्ष्मण रेखा खिंच गयी,घर में रखना पाँव
आस्तीन के सांप सा, कोरोना का दाँव

राशन लेने जब गये, मन मन ही घबराय
ना जाने किस भेष में, कोरोना मिल जाय

अस्ल गधे तो छिप गए, नकली करें धमाल
चौराहे पर अब जिन्हें, पुलिश कर रही लाल

हाथ जोड़ सेवक करे, सबसे ही फरियाद
लेकिन सारी योजना , चंद करें बरबाद

हँसी ठिठोली हो चुकी,सुनो काम की बात
उल्टी गिनती है शुरू, चूके समझो मात

हिन्दू मुस्लिम सोच है, सत्य महज इंसान
कोरोना ये ज्ञान दे, हर के सबके प्रान

खड़े दूर थे पंक्ति में, हिन्द वतन के लोग
अनुशासन का पाठ भी सिखा रहा ये रोग

"आशू" हल्के में न ले, बिपदा ये गंभीर
छूट गया जो चाप से, कब लौटा वो तीर

डॉ आशुतोष मिश्र "आशू"
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी।
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
9839167801
www.ashutoshmishrasagar.blogspot.in



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