मौत की झोली
आलू, भिन्डी, गोभी के साथ
मौत की झोली घर आयी
हमने चटखारे लेकर खाई
बचे रोटी, चावल, सब्जी के छिलके
कर दिए फिर झोली के हवाले
छत से मुस्कुराते हुए नीचे गिराई
पर गिरते ही मौत की झोली मुस्कुराई
सड़क पर गिरते ही अपना जाल बिछाया
भोजन की खुश्बू को हवा में फैलाया
पास बैठी गाय को खुश्बू भा गयी
भूखी गाय पास आ गयी
झोली समेत सब चबा गयी
लेकिन बैठते ही घबरा गयी
मौत की झोली आंत में जम गयी
रोटी गाय को महँगी पड़ गयी
गाय कुछ देर खूब तडपी
फिर बेदम होकर सड़क पर लुढकी
फिर कीटाणुओं ने मृत शारीर पर छावनी बनायी
बीमारी की मिसाइलें चलाईं
बीमारी महामारी बनकर छा गयी
बस्ती के कई लोगों को खा गयी
झोली मौत की मुस्कुराती रही
आंत में बैठकर जश्न मनाती रही
आंत भी धीरे- धीरे गल गयी
जिंदगी की सौत बाहर निकल गयी
बरसात उसे खेत तक ले आयी
परत -दर- परत मिटटी चढ़ाई
जब पौधों की जडें इससे टकराईं
इसका कुछ नहीं बिगाड़ पायीं
पौधे खड़े- खड़े मुरझा गए
अकाल के दानव गाँव में आ गए
मानवता दम तोड़ने लगी
दानवता सर चढ़कर बोलने लगी
सुकून फिर भी न मिला
तो जहरीली गैसों को रिसाया
सैंकड़ों जीवों का कर गयी सफाया
अपनी विजयश्री का गीत गया
लेकिन तभी एक बिद्वान से टकरा गयी
तांडव की कथा उसे समझ में आ गयी
उसने एक अभियान छेड़ दिया
पूरे देश से इन झोलियों को इकठ्ठा किया
किन्तु ज्ञान अनुभव से फिर मात खा गया
इनके ढेर में आग लगा गया
झोली मरते- मरते कहर ढा गयी
ओजोने की परत में छेद बना गयी
तबसे; रोज अल्ट्रावायलेट किरनें
धरती पर आती हैं
धरती का तापमान बढ़ाती हैं
जिन्दगी की हर सांस
संकट में घिरती जा रही है
पर धन्य है मनु संतति
मौत की झोली में सामान ला रही है
मौत का तांडव बार-बार दोहरा रही है
कॉलेज जीवन की एक कृति
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
आलू, भिन्डी, गोभी के साथ
मौत की झोली घर आयी
हमने चटखारे लेकर खाई
बचे रोटी, चावल, सब्जी के छिलके
कर दिए फिर झोली के हवाले
छत से मुस्कुराते हुए नीचे गिराई
पर गिरते ही मौत की झोली मुस्कुराई
सड़क पर गिरते ही अपना जाल बिछाया
भोजन की खुश्बू को हवा में फैलाया
पास बैठी गाय को खुश्बू भा गयी
भूखी गाय पास आ गयी
झोली समेत सब चबा गयी
लेकिन बैठते ही घबरा गयी
मौत की झोली आंत में जम गयी
रोटी गाय को महँगी पड़ गयी
गाय कुछ देर खूब तडपी
फिर बेदम होकर सड़क पर लुढकी
फिर कीटाणुओं ने मृत शारीर पर छावनी बनायी
बीमारी की मिसाइलें चलाईं
बीमारी महामारी बनकर छा गयी
बस्ती के कई लोगों को खा गयी
झोली मौत की मुस्कुराती रही
आंत में बैठकर जश्न मनाती रही
आंत भी धीरे- धीरे गल गयी
जिंदगी की सौत बाहर निकल गयी
बरसात उसे खेत तक ले आयी
परत -दर- परत मिटटी चढ़ाई
जब पौधों की जडें इससे टकराईं
इसका कुछ नहीं बिगाड़ पायीं
पौधे खड़े- खड़े मुरझा गए
अकाल के दानव गाँव में आ गए
मानवता दम तोड़ने लगी
दानवता सर चढ़कर बोलने लगी
सुकून फिर भी न मिला
तो जहरीली गैसों को रिसाया
सैंकड़ों जीवों का कर गयी सफाया
अपनी विजयश्री का गीत गया
लेकिन तभी एक बिद्वान से टकरा गयी
तांडव की कथा उसे समझ में आ गयी
उसने एक अभियान छेड़ दिया
पूरे देश से इन झोलियों को इकठ्ठा किया
किन्तु ज्ञान अनुभव से फिर मात खा गया
इनके ढेर में आग लगा गया
झोली मरते- मरते कहर ढा गयी
ओजोने की परत में छेद बना गयी
तबसे; रोज अल्ट्रावायलेट किरनें
धरती पर आती हैं
धरती का तापमान बढ़ाती हैं
जिन्दगी की हर सांस
संकट में घिरती जा रही है
पर धन्य है मनु संतति
मौत की झोली में सामान ला रही है
मौत का तांडव बार-बार दोहरा रही है
कॉलेज जीवन की एक कृति
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
जिन्दगी की हर सांस
ReplyDeleteसंकट में घिरती जा रही है
पर धन्य है मनु संतति
मौत की झोली में सामान ला रही है
मौत का तांडव बार-बार दोहरा रही है...bahut hi badhiyaa
bahut prerna dayak rachna hai is maut ki jholi par poori tarah sakht ban hona chahiye kai jagah to log amal karne lage hain kintu abhi logon ko bahut jaagrat karne ki jaroorat hai.jab tak sabhi logon me spasht jaagrukta aur kadi kaaryavaahi nahi hogi yeh nahi rukegi.
ReplyDeleteबिना सोचे समझे प्रकृति का कितना नुकसान कर बैठते हैं हम।
ReplyDeleteइस रचना का संदेश स्पष्ट है -- हर कोई दुनिया को बदलना चाहता है, लेकिन खुद को बदलने के बारे में कोई नहीं सोचता।
ReplyDeleteसमसामयिक और सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना ..
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती हुई उम्दा रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
सुंदर रचना और सुंदर शब्द चयन । कापी कुछ सीखने को मिलता है यहां ।
ReplyDeletesarthak sandesh deti rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रेरणा दायक,शिक्षाप्रद प्रस्तुति....
ReplyDeleteमेरे विचार से इसे पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना चाहिए...
आभार आपका की इतनी अच्छी रचना से अवगत कराया...!!
धन्यवाद....
पालीथिन के दैनिक उपयोग के प्रति सचेत करती ....जीवनोपयोगी,प्रेरक रचना .....बहुत उम्दा मिश्रा जी !
ReplyDeleteपालीथिन के प्रति सचेत कराती प्रेरक बेहतरीन रोचक पोस्ट,....
ReplyDeleteमेरी नई रचना के लिए "काव्यान्जलि" मे click करे
पास बैठी गाय को खुश्बू भा गयी
ReplyDeleteभूखी गाय पास आ गयी
झोली समेत सब चबा गयी
लेकिन बैठते ही घबरा गयी
मौत की झोली आंत में जम गयी
रोटी गाय को महँगी पड़ गयी
गाय कुछ देर खूब तडपी
फिर बेदम होकर सड़क पर लुढकी
hriday ko jhakjhorne wali rachana hai . aj ki sthiti hi aisi hai .... hm apne shukh ke liye nireeh janwaron pr ghanghor apradh kr rhe hain .... bahut bahut abhar mishr ji .... aisi rachnayen samaj ko bahut kuchh de dengi .
बहुत प्यारी कविता है डॉ साहब !...badhaii !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना है. समसामयिक और सन्देश देती हुई. लाजवाब.
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती हुई शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteक्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
अत्यंत प्रभावशाली रचना ! पौलीथीन की थैलियों से होने वाले प्रदूषण एवं नुकसान का बड़ा ही सशक्त खाका खींचा है आपने ! इस सार्थक संदेश को देने वाली सामयिक रचना के लिये आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद !
ReplyDeleteआपने बाखूबी उठाया है इस समस्या को ... एक चेतावनी दी है आपने .. जागना होगा अब ...
ReplyDeletekya kahu sir sabd nahi hai
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