Thursday 20 June 2013

(BP28) आइना पर अब यूं ही रोज रुलाये हमको

जिंदगी अपनी कई रंग दिखाए हमको  
कभी तडपाये कभी सीने लगाये हमको 

बज्म में शोख निगाहों ने जो सवाल किये
उन सवालों के कोई हल तो बताये हमको 

हाथ से छीन लिया करती जो सागर बढ़कर 
आज खुद हांथों से अपने ही पिलाये हमको 

मस्त  नजरों से यूं ही देख सारे रिन्दों को 
 कतरा कतरा यूं रोज साकी जलाये हमको 

जिस तरह हटती है दीवार से तस्वीर कोई 
 दिल के मंदिर से मेरा प्यार  हटाये हमको 

शाख पर बैठा दरख्तों की जवां पंख लिए 
 उड़ना तय कोई हौसला तो दिलाये हमको 

थोडा थोडा ही सही बातें सब  समझने लगे
 रोती माँ क्यूँ सुना के लोरी सुलाए हमको 


अपने चेहरे पे बड़ा नाज था हमें " आशु "
 आइना पर अब यूं ही रोज रुलाये हमको 


डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान ,गोंडा ,उ.प्र .
मोबाइल न 9839167801

9 comments:

  1. दिल से निकल कर जिंदगी के रंगों को बयाँ करती एक भावुकता से परिपूर्ण रचना .......

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    1. धन्यवाद मञ्जूषा जी ..कृपा कर ऐसे ही हौसला बढाए रखें

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  2. यशोदा जी .मेरी रचना को स्नेह देने और नयी पुरानी हलचल के लिए चयनित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर

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  3. बहुत खूब..,उम्दा प्रस्तुति मिश्रा जी

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  4. आपकी यह रचना कल शुक्रवार (21-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  5. वाह, बहुत ही सुन्दर..

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  6. बहुत गहन और सुन्दर रचना.बहुत बहुत बधाई...

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