जिंदगी अपनी कई रंग दिखाए हमको
बज्म में शोख निगाहों ने जो सवाल किये
हाथ से छीन लिया करती जो सागर बढ़कर
मस्त नजरों से यूं ही देख सारे रिन्दों को
कतरा कतरा यूं रोज साकी जलाये हमको
जिस तरह हटती है दीवार से तस्वीर कोई
शाख पर बैठा दरख्तों की जवां पंख लिए
थोडा थोडा ही सही बातें सब समझने लगे
रोती माँ क्यूँ सुना के लोरी सुलाए हमको
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान ,गोंडा ,उ.प्र .
मोबाइल न 9839167801
कभी तडपाये कभी सीने लगाये हमको
बज्म में शोख निगाहों ने जो सवाल किये
उन सवालों के कोई हल तो बताये हमको
हाथ से छीन लिया करती जो सागर बढ़कर
आज खुद हांथों से अपने ही पिलाये हमको
मस्त नजरों से यूं ही देख सारे रिन्दों को
कतरा कतरा यूं रोज साकी जलाये हमको
जिस तरह हटती है दीवार से तस्वीर कोई
दिल के मंदिर से मेरा प्यार हटाये हमको
शाख पर बैठा दरख्तों की जवां पंख लिए
उड़ना तय कोई हौसला तो दिलाये हमको
थोडा थोडा ही सही बातें सब समझने लगे
रोती माँ क्यूँ सुना के लोरी सुलाए हमको
अपने चेहरे पे बड़ा नाज था हमें " आशु "
आइना पर अब यूं ही रोज रुलाये हमको
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान ,गोंडा ,उ.प्र .
मोबाइल न 9839167801
दिल से निकल कर जिंदगी के रंगों को बयाँ करती एक भावुकता से परिपूर्ण रचना .......
ReplyDeleteधन्यवाद मञ्जूषा जी ..कृपा कर ऐसे ही हौसला बढाए रखें
Deleteयशोदा जी .मेरी रचना को स्नेह देने और नयी पुरानी हलचल के लिए चयनित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर
ReplyDeleteबहुत खूब..,उम्दा प्रस्तुति मिश्रा जी
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल शुक्रवार (21-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण जी ..
Deleteवाह, बहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteअच्छी रचना... बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
बहुत गहन और सुन्दर रचना.बहुत बहुत बधाई...
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