Monday, 30 May 2011

(OB 20)मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है (BP 71)


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मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
प्रेमी जोड़ों का सुकूँ चैन चुरा जाता है

दिल की धड़कन को बढ़ा सीने में तूफ़ान छुपा
मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता  है

सर्द हो  रात  हो बरसात का मादक मंजर
मौसम-ए-इश्क  सदा सब को जला जाता है

दर्द  ऐसा  भी है, अहसास सुखद है जिसका
मौसम-ए-इश्क वो अहसास करा जाता  है

देख आँखों मे चमक गुल की यूँ  हैराँ मत हो
मौसम-ए-इश्क हसी नूर खिला जाता है

गैर अपनों से लगें अपने लगें गैरों से
मौसम-ए-इश्क तमाशा यूँ दिखा जाता है

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तर प्रदेश
मोबाइल न० ९८३९१६७८०१

5 comments:

  1. सर्द हो रात, हो बर्षात का हंसी आलम
    मौसम-ए-इश्क जलाता है, बस जलाता है
    सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
    मेरे ब्लॉग पर इज्जत अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया.

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  2. शानदार रचना है.

    सूनी आँखों में चमक देख यूएँ हैरान न हो
    मौसम-ए-इश्क तो पतझड़ में गुल खिलाता है
    बना दे गैर अपनों को, करे अपनों को बेगाना
    मौसम-ए-इश्क तमाशा यूं ही दिखाता है.

    मौसम-ए-इश्क का बढ़िया तसव्वूर.

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  3. सुन्दर रचना मौसमे-इश्क़ की कारस्तानियों पर।

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  4. 'मौसम-ए-इश्क तो पतझड़ में गुल खिलाता है'
    क्या बात है साब!

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