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मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
प्रेमी जोड़ों का सुकूँ चैन चुरा जाता है
दिल की धड़कन को बढ़ा सीने में तूफ़ान छुपा
मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता है
सर्द हो रात हो बरसात का मादक मंजर
मौसम-ए-इश्क सदा सब को जला जाता है
दर्द ऐसा भी है, अहसास सुखद है जिसका
मौसम-ए-इश्क वो अहसास करा जाता है
मौसम-ए-इश्क वो अहसास करा जाता है
देख आँखों मे चमक गुल की यूँ हैराँ मत हो
मौसम-ए-इश्क हसी नूर खिला जाता है
गैर अपनों से लगें अपने लगें गैरों से
मौसम-ए-इश्क तमाशा यूँ दिखा जाता है
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तर प्रदेश
मोबाइल न० ९८३९१६७८०१
सर्द हो रात, हो बर्षात का हंसी आलम
ReplyDeleteमौसम-ए-इश्क जलाता है, बस जलाता है
सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
मेरे ब्लॉग पर इज्जत अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया.
शानदार रचना है.
ReplyDeleteसूनी आँखों में चमक देख यूएँ हैरान न हो
मौसम-ए-इश्क तो पतझड़ में गुल खिलाता है
बना दे गैर अपनों को, करे अपनों को बेगाना
मौसम-ए-इश्क तमाशा यूं ही दिखाता है.
मौसम-ए-इश्क का बढ़िया तसव्वूर.
सुन्दर रचना मौसमे-इश्क़ की कारस्तानियों पर।
ReplyDelete'मौसम-ए-इश्क तो पतझड़ में गुल खिलाता है'
ReplyDeleteक्या बात है साब!
bhaut sunder
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