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जब वो बिछड़ा था कसम उसने मेरी खाई थी
कुछ दिनों तक तो उसे याद मेरी आयी थी
वो सहारा थी मेरी, मैं था सहारा उसका
वो मेरी नज़्म ग़ज़ल छंद ओ'र रुबाई थी
मुद्दतों तक यूँ भटकते हुए ख़त जो आया
साथ उसके मेरे माज़ी की महक आयी थी
जिसकी हर शै प थिरकती थी तबस्सुम लब पर
जाने क्यों आज नदी आँखों से बह आयी थी
ए हवा कह दो खड़ा आज भी उस मोड़ प हूँ
आख़िरी बार कभी वो जहाँ मुस्कायी थी
दिल का दर बन्द न हो सकता कभी उसके लिए
दिल को "आशू" जो बना कर गयी सौदाई थी
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान गोंडा उत्तर प्रदेश
मोबाइल ९८३९१६७८०१
ऐ हवा कह दो उसे मैं खड़ा हुआ हूँ वहीं
ReplyDeleteआखिरी बार जहाँ पर वो मुस्कुराई थी
अरे वाह! क्या बात है
वाह वाह.
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