आइना तुमने मुझे आज दिखाया क्यूँ है
रु-ब-रु मुझको हकीक़त से कराया क्यूँ है
अश्क के बदले लहू निकला मेरी आँखों से
उसने मेहँदी से हथेली को सजाया क्यूँ है
जब शमा ही तेरी महफिल से नदारत थी तो
तुमने परवाने को महफिल में बुलाया क्यूँ है
इक ग़लतफ़हमी सबब थी तमाम खुशियों की
इक ग़लतफ़हमी सबब थी तमाम खुशियों की
मोतियों को भी यूं अशआर बनाया क्यूँ है
मेरी तस्वीर पे तस्वीर लगा लेते कोई
मेरी तस्वीर को यूं दिल से हटाया क्यूँ है
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० ९८३९१६७८०१ Blog
आइना तुमने मुझे आज दिखाया क्यूँ है
रूबरू मुझको हकीकत से कराया क्यूँ है
अश्क के बदले लहू निकले मेरी आँखों से
उसने हाथों को हिना से यूं रचाया क्यूँ है
शम्मा ही जब तेरी महफ़िल से नदारत थी तो
तुमने परवाने को महफ़िल में बुलाया क्यूँ है
मेरी तस्वीर पे तस्वीर लगा लेते कोई
मेरी तस्वीर को दिल से यूं हटाया क्यूँ है
नन्हा इक दीप हवा से ये सवालात करे
तीरगी से ए हवा हाथ मिलाया क्यूँ है
मैं जो हूँ तो मेरी मा रोज सुने तू ताने
बोल कुछ बोल तो माँ मुझ को बचाया क्यूँ है
मांग को भरके हथेली को हिना से रचकर
सोचती थी कि पिया मेरा पराया क्यूँ है
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