आखिरी ख़त है, जतन से रखना
कह दिया हमने, हमें था कहना
दिल के जज्वात दिल में ही रखना
दिल के जज्वात दिल में ही रखना
बिजलियों का शहर है तुम बचना
ख्वाब टुटा है मेरा रंज न कर
ख्वाब टुटा है मेरा रंज न कर
फिर बना लूँगा आशियाँ अपना
बंद कर लो भले ही घर के दर
बंद कर लो भले ही घर के दर
दिल मगर अपना खुला ही रखना
सपने हर रोज टूटते हैं यहाँ
अपने दिल में तू हौसला रखना
दुनिया मुझको समझती है मुजरिम
तुम न मुनसिब सा फैसला करना
तुम न मुनसिब सा फैसला करना
अपने हर चाहने वाले को समर्पित
डॉ आशुतोष मिश्र
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा , उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
'बंद कर लो भले ही घर के दर
ReplyDeleteदिल मगर अपना खुला ही रखना'
बहुत अच्छा
एक सुझाव-
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-गा़फ़िल