Wednesday, 8 June 2011

(BP 69) मुझको रोका तेरी आँखों से क्षलकती मय ने

एक   बादा    तेरा   करना   फिर    मुकर    यूं   जाना A
कभी   अपना    बताना ,  कभी     कहना   बेगाना  AA

कुछ    सवालात    मेरे   दे    दो   तुम   जवाब   मुझे A
उम्र भर न सही   पल   भर तो ठहर     ही जाना AA

मेरी     हर   बात    पे   बस   तेरी     यही    ख़ामोशी A
मुझको   पागल    करेगी    देगी    बना      दीवाना AA

मुझको रोका तेरी   आँखों   से   क्षलकती    मय ने  A
 वरना जिस    मोड़   पे खड़ा ; वहीँ     है   मैखाना AA
  
अपनी जिद पर मैं अगर आया तो   पक्षताओगे A
पेश कर   दूंगा   भरी   भीड़,   दिल    का नजराना AA

चान्दिनी  शब् है, जमी पे उतर भी अब    आओ A
रोज   अच्क्षा   नहीं   फलक  पे   यूं   ही   इतराना  A


प्रिय    मित्र धीरज  कौशिक   को समर्पित


डॉ आशुतोष मिश्र
डायरेक्टर
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801

1 comment:

  1. चाँदनी शब् है, जमी पे उतर भी अब आओ A
    रोज अच्छा नहीं फलक पे यूं ही इतराना

    वाह!

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