Sunday, 24 July 2011

(A2/35 ) अपने बच्चों को सुनाओगे ये लोरियां भी क्या

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अपने बच्चों को सुनाओगे ये लोरियां भी क्या
अपने बच्चों को सुनाओगे ये कहानियां  भी क्या
अपने बच्चों को कैसे भला बहलाओगे यहाँ
हाल बिगड़े हुए देश के सुनाओगे भी क्या
कैसे कहोगे के बच्चों ये सूनी जागीर है
कंचन वाली धरती हो गयी बच्चों फकीर है
कैसे कहोगे ये सीने पर हाथ रखके
देखो देखो कैसी प्यारी तस्वीरें हैं बच्चों
पेड़ के तले वो लेती तस्वीर शेर की 
जंगल होते थे कभी ये जागीर शेर की
हमने अपने लिए जंगलों को काट लिया था 
पत्ता जड़ तना शाख  सब बाँट लिया था 
और सजाने के लिए ड्राइंग   रूम घर का 
हमने जंगल के राजा को भी मार दिया था
अपने बच्चों को सुनाना तुम लोरियां यही
अपने बच्चों को सुनाना तुम कहानियां यही
देखो बेटा तस्वीर मस्त मौला हाथी की
मस्त मौला हाथी की मस्त मौला साथी की
हमने इनके दांतों से अपना शृंगार  किया था
इनके दांतों के लिए ही इन्हें मार दिया था
देखो बेटा तस्वीर अब गेंडा बिशाल की 
बोली लग गयी थी कभी यहाँ इनकी खाल की 
इसके सींग ने इसे ही बर्बाद कर दिया
भोले -भाले जीव को यहाँ तबाह कर दिया
देखो बेटा सैकड़ों हैं ये तस्वीरें तभी की
भालू चीता बाघ लोमड़ी लंगूर सभी की
हमने इनकी खालों से अपना श्रंगार किया था
इन्हें मारा काटा इनका व्यापार किया था  

उनसे  कहना हमने गंगा को भी काला कर दिया
बड़ी बड़ी नदियों को भी हमने नाला कर दिया
बच्चे देखेंगे जो बहती हुई खून की नदी 
कैसे मानेंगे की बहती थी दूध की नदी
बकरी  भेड़ों सबको तबाह कर दिया 
उनकी बोटी बोटी कटी निर्यात कर दिया
उनसे कहना देखो बेटा गेंहू दाल के दाने 
बच्चों को शायद तुम्हारे लगे ये भी अनजाने 
इनके लिए यहाँ होने लगी कालाबाजारी
राशन दुकानों पे होने लगी मारामारी
अपने बच्चों को दिखाना तस्वीर गेहूं की
उनसे कहना कभी खाते थे हम रोटी इनकी

मैंने सोचा कुछ और ही सिखाऊंगा उन्हें
पैदा होते   AK47 थमाऊंगा  उन्हें
दूंगा उनको अब तालीम अब इसको चलाने की
इस माँ के लिए मिट जाने की मिटाने की
उनसे कह दूंगा अन्याय का प्रतिकार करना है
सह चुके आज तक नहीं और सहना है
माँ का आँचल कहें को कोई फाड़ रहा हो 
गहरी जडें इस देश की उखड रहा हो
हल्दी में मिला के बेंचे गर पीली हो मिटटी 
घी के नाम पे जो बेचे पशुओं की चर्बी
औरत की अस्मिता को कोई रौंद रहा हो
माँ का आँचल कहीं जो कोई खौंद रहा हो
बच्चों क़र्ज़ देश का सारा उतार देना तुम
इन जाहिलों को खुले आम मार देना तुम
अपने बच्चों को सुनाऊंगा मैं लोरियां यही
अपने बच्चों को सुनाऊंगा  कहानियां यही



 अपने कॉलेज जीवन के समय लिखी हुई कृति  (1989-1993)
डॉ  आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी 
बभनान, गोंडा,उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801


10 comments:

  1. aaderniya sangeeta ji...hardik dhnyawad..aapka protsahan meri racnadharmita me char chand laga dega..pranam ke sath

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  2. सुन्दर ||
    बधाई ||

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  3. वर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में....
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

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  4. सटीक लिखा है .....बहुत बढि़या।

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  5. भारत दुर्दशा का मार्मिक चित्रण के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम के व्याकुल भावों को सशक्त स्वर दे रही है आपकी सुन्दर रचना ....
    अति सुन्दर मिश्रा जी

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  6. aap sabhi ko hausla afjayee ke liye hardik dhnyawad

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  7. बहुत बढि़या।
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

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  8. ये एक सदाबहार रचना है आपकी. जितनी भी तारीफ की जाये कम है. देश की दुर्दशा को बयां करती पंक्तिया दिल को छु लेती हैं. बधाई

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