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दो बहनें:- धर्मनीति और राजनीति
यह अज्ञात है
अंडे से मुर्गी और मुर्गी से अंडे की ;
अपनी बहिन का उत्कर्ष
दो बहनें:- धर्मनीति और राजनीति
नीति कब जन्मी,
यह अज्ञात है
अंडे से मुर्गी और मुर्गी से अंडे की ;
उत्पत्ति की तरह ही
समय के साथ नीति की ;
तमाम बेटियों में से एक
राजाओं के दिल में उतर गयी
उम्र से पहले ख्यातिलब्ध हो
नृपों के गले का हार बनकर
आसमान पर चढ़ गयी
कभी उसकी अपनी बहन
धर्म-नीति से बनी, कभी ठनी
राजा बदलते रहे
धर्मनीति, राजनीती;
गले मिलते रहे बिखरते रहे
भूत के दृश्य भविष्य में निशानी हो गए
राजा और रानी कहानी हो गए
रोती रही राजनीती
राजा-रानियों के शवों से लिपटी...
राजा-रानियों के शवों से लिपटी...
व्यभिचार अत्याचार अनीति की
राक्षसी सो गयी
फिर अंधेरों में खो गयी
राजाओं के मिटते ही
आम जन ने
अपनी हुकूमत बनाई
संत हृदयों ने की अगुवाई
जन जन की रहनुमाई
धर्म-नीति उभर आयी
सबके दिलों पर छाई
बहिन नहीं पचा पाई
राजनीत को बिलकुल नहीं भाई
फिर राजनीती ने दी
अपने बैभव के दिनों की दुहाई
लायकों और मह्त्वाकान्च्छियों के;
दर की कुण्डी खटखटाई
जब हर जगह ठोकर खाई
तो गुस्से में आयी
अपना कहर बरपाया
कोने-कोने में संक्रमण फैलाया
नालायक महत्वाकान्च्छियों को
अपने चुंगल में फसाया
अपने बैभव का पुराना जलवा दिखाया
धीरे-धीरे अपना जहर फैलाया
अपने साम-दाम दंड- भेद का कुचक्र चलाया
अधर्मियों को रहनुमा बनाया
धर्मनीति अपनी राह पर चलती रही
राजनीती बढती रही ,
महामारी की तरह
मंत्री, संत्री,अफसर सबको गुलाम बनाया
अब अपनी बहन को भूले से भी;
गले नहीं लगाती है
आलीशान बंगलों, क्लबों, होटलों में बैठ
देश का भविष्य बनाती है
अपनी बहन को अंगूठा दिखाती है
लायक महत्वाकांक्षी सर मुंडाए खड़े हैं
नालायक अधर्मी ;
नेता और अफसर के रूप में
कुर्सियों पर चढ़े हैं
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र दो कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
होड़ मची है, लूट मची है।
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअथ आमंत्रण आपको, आकर दें आशीष |
ReplyDeleteअपनी प्रस्तुति पाइए, साथ और भी बीस ||
सोमवार
चर्चा-मंच 656
http://charchamanch.blogspot.com/
वर्तमान राजनीतिक दशा पर कटाक्ष करती सुन्दर रचना....
ReplyDeleteअर्थपूर्ण और सार्थक रचना ..
ReplyDeleteशुभकामनाएं||
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया ||
बधाई |
बहुत सुन्दर साहब! कया नीति है
ReplyDeleteधर्मनीति अपनी राह पर चलती रही
ReplyDeleteराजनीती बढती रही ,
महामारी की तरह
मंत्री, संत्री,अफसर सबको गुलाम बनाया
अब अपनी बहन को भूले से भी;
गले नहीं लगाती है
आज के राजनितीक विद्रूप पर करारा व्यंग्य .
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteदुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत सुन्दर विश्लेषण 'राजनीति और धर्मनीति' का ...
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति ...
पढ़ा। नीतियों की बातें…
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कथा रच दी आपने...
ReplyDeleteसार्थक विश्लेषण...
सादर...
धर्मनीति और राजनीति कि कथा बहुत सुंदर है. अच्छी प्रस्तुति. बधाई.
ReplyDeleteबिलकुल सही विवेचन किया है आपने.
ReplyDeleteडॉ आशुतोष मिश्र "आशु" जी अभिवादन और अभिनन्दन आप का पहली मुलाकात ..बहुत सुन्दर दो बहनों की कहानी ..इसी बात का तो रोना है हममे से ही पली बढ़ी पोषी गयी ये राजनीती हमारा ही गला घोंटने पर आमादा ..हम सब गूंगे ...एक दूसरे को मरते देखते मुह छिपाए बैठे ....न जाने हम सब कब एक होंगे ..और ये धर्मनीति अधमरी से जीवित होगी ...
ReplyDeleteबधाई आप को लाजबाब
धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
भ्रमर ५
आलीशान बंगलों, क्लबों, होटलों में बैठ
देश का भविष्य बनाती है
अपनी बहन को अंगूठा दिखाती है
लायक महत्वाकांक्षी सर मुंडाए खड़े हैं
नालायक अधर्मी ;
नेता और अफसर के रूप में
कुर्सियों पर चढ़े हैं