धमाके से मुंबई दहली
जनता हिली
नेताओं के दिल दीपक की बाती नहीं जली
ताज से लपटें उठीं
सबको खली
नेताओ के दिल की पाषाण प्रतिमा नहीं पिघली
जर्मन बेकारी में हुआ धमाका
जू नेताओं के तन पर खूब चली
नेताओं ने करवट पे करवट बदली;
पर नींद नहीं खुली
हर गांव शहर जला
उनींदे नेताओं ने कान में उंगली घुसाई
जू कान तक पहुंची पर रेंग नहीं पाई
संसद परिसर में गोलियां चलीं
नेताओं में मची खलबली
सिर्फ अफशोस के साथ बात टली
बिस्फोटों ने मुंबई को फिर हिलाया
सोते हुए नेताओं को जगाया
जागकर नेता ने फ़ोन उठाया
अपने रिश्तेदारों को लगाया
सबको सलामत पाकर
नींद को फिर गले लगाया
आम आदमी होता रहा त्रस्त
नेता रहा व्यस्त
रेलें उखड़ती रही
गाड़ियाँ भिड़ती रहीं
बाढ़ जन जीवन को निगल गयी
भूकंप से धरती हिल गयी
सुहाग उजड़ा, सिन्दूर बिखरा
बच्चे यतीम हुए, रोये
बूढी आँखें पथरा गयी
जवानी बुढ़ा गयी
देश के बुजुर्गों जवानों ने मिलकर
परिवर्तन की आंधी चलायी
अपने वतन में अपनों को
अपनों ने अपनी बात बताई
दिल का लावा बह गया
दरिया-ए-अश्क हर दास्ताँ कह गया
कर्णधार सो रहे हैं
लोग रो रहे हैं
अरे !
अब तो हो गया है संसद की नाक के नीचे धमाका
अब तो जाग जाओ मेरे आका
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा,उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०-9839167801
बहुत सुंदर सटीक और सशक्त रचना...
ReplyDeleteजागरूक करती अच्छी रचना
ReplyDeleteतब भी ये लोग अपनी जान बचा कर भाग जायेंगे किसी तरह ...
ReplyDeleteबुरा हाल है देश का इस समय ...
नहीं जागेंगें हम,कर लीजिये कुछ भी आप में जो भी हो दम.
ReplyDeleteवाह! वाह! आशुतोष जी आपके जगाने से तो शायद
कुम्भकरण भी जाग जाये.पर ये तो नहीं जागेंगें.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर कब आ रहे हैं आप?
अब शायद हमें ही जागना होगा ....
ReplyDeleteवाह मिश्राजी वाह !
ReplyDeleteगज़ब की झन्नाटेदार व्यंग्य रचना....
और अंत करुणा के साथ ....व्यंग की सार्थकता यही है |
इन नेताओं के कान पर जूं नहीं असर कर पाती, कुछ ऐसा किया जाए
अब इन के कानों पर कोई नागिन बिठा दिया जाए
देश एक सुखद भविष्य चाहता है।
ReplyDeleteडॉ मिश्र ,
ReplyDeleteसोते को तो जगाया जा सकता है लेकिन जो जागते हुए भी अनजान बने रहना चाहते हैं , उनकी आत्मा को कौन जगा सकता है भला। संवेदनहीन हो चुकी सरकार हमारी पुकार कैसे सुन सकती है । यदि वह सुनती ही होती तो ये धमाके न होते। बूढ़े न मरते और बच्चे न रोते। इनकी नाक के नीचे भी हो जाए धमाका तो भी ये न जाने कैसे सुरक्षित ही बच जाते हैं।
बहुत सही कहा आपने
ReplyDeletesunder ati sunder krit
ReplyDeleteजब तक आका के ऊपर ही धमाका नहीं होग तब तक नींद नहीं खुलने वाली ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteयदि नेताओं को प्रायोजित आतंकवाद से जरा भी भय होता तो अवश्य कुछ करते नज़र आते...
ReplyDeleteक्योंकि वे कुछ करते नज़र नहीं आते .. इसलिये मुझे शंका होती है ... जितने भी रेल हादसे होते हैं या फिर आतंकवादी वारदातें होती हैं या फिर अग्निकांड होते हैं वे ... शासन द्वारा ही प्रायोजित होते हैं...
जितना अधिक जनता खौफजादा रहेगी तो नेता मंत्रियों को जनता से खौफ नहीं रहेगा.. इसलिये जनता को दहशत में व्यस्त रखो...
जनता में कई तरह से खौफ भरना उनकी पॉलिसी है :
— आर्थिक खौफ : अनियंत्रित महँगाई और शिक्षा के बाद भी बेरोजगारी
— सामाजिक खौफ : बम-ब्लास्ट, रेल-हादसे, बलात्कार, चोरी-डकैती-हत्याएँ, रिश्वतखोरी.
— राजनीतिक खौफ : राजनीति को इतना गंदा बनाकर रखते हैं कि इसी साफ़-सुथरे चरित्र के व्यक्ति की हिम्मत ही नहीं होती कि वह उसमें दाखिला भी ले. इस खौफ के कारण ही हम ग़लत बात के खिलाफ आवाज़ बुलंद नहीं कर पाते...आम व्यक्ति को हर अधिकारी व्यक्ति अपनी पावर से डराता मिलेगा.
— धार्मिक खौफ : यदि आपने सामाजिक आचरण में धर्म की बात की तो मौलिक अधिकारों से हाथ धोना पड़ेगा... इसलिये 'धर्म' मतलब पूजा-पाठ, घंटी हिलाकर आरती गाना, प्रसाद चढ़ाना... बस इतना ही. इससे आगे बढ़ें तो खैर नहीं...
डॉ. आशुतोष मिश्र जी... आपकी रचना आंदोलित करती है. बधाई.
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
अका लोग तो डाका डालने में माहिर हैं।
ReplyDeleteडाका डाल कर बाकी समय सोते रहते हैं।
बहुत अच्छी व्यंग्य कविता।
मेरी घरेलु भाषा भोजपुरी है.. इच्छा हुई की भोजपुरी में प्रतिक्रिया दूँ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखले बनी.. आभार.. राउर प्रतिक्रिया के हमरो बा इंतिजार.. एक बेर जरूर आइब.. राउर स्वागत बा...
सुन्दर वर्णन समसामयिक ! नेता का उल्टा ताने होता है ! जितना भी ताने क्यों न दें दें - नेता के ऊपर कोई असर नहीं पड़ने वाला ! बधाई डाक्टर साहब !
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