तेरी आँखों में ज़माने ने जमाना देखा
रिंद भी देखे,मय देखी, मयखाना देखा
होश में खुद रही,रिन्दों को बेहोश किया
ए साकी मैंने तेरे हांथों में पैमाना देखा
तूने रिन्दों के दिलों से हटा दिए हर गम
पर तेरी आंखों में मैंने इक फ़साना देखा
आरजू थी की , हाल तेरा सुनूं मैं तुझसे
पर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा
चेहरा मासूम तेरा आज भी बच्चों की तरह
दिल में पर कोई जवाँ हमने दीवाना देखा
"आशु" मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है कहाँ
हमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल, 9839167801
रिंद भी देखे,मय देखी, मयखाना देखा
होश में खुद रही,रिन्दों को बेहोश किया
ए साकी मैंने तेरे हांथों में पैमाना देखा
तूने रिन्दों के दिलों से हटा दिए हर गम
पर तेरी आंखों में मैंने इक फ़साना देखा
आरजू थी की , हाल तेरा सुनूं मैं तुझसे
पर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा
चेहरा मासूम तेरा आज भी बच्चों की तरह
दिल में पर कोई जवाँ हमने दीवाना देखा
"आशु" मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है कहाँ
हमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल, 9839167801
A2/7
2122 21222122 212
तेरी आँखों में ज़माने ने जमाना देखा है
रिन्द मय मयखाना मंजर इक सुहाना देखा है
रिन्द देखे मय भी देखी और मयखाना देखा
रिंद भी देखे,मय देखी, मयखाना देखा
होश में खुद और लूटा होश सारे रिन्दों का
इस तरह साकी तेरा पीना पिलाना देखा है
होश में खुद रही,रिन्दों को बेहोश किया
ए साकी मैंने तेरे हांथों में पैमाना देखा
तूने रिंदों के दिलों से गम् हटाये सारे पर
तूने रिन्दों के दिलों से हटा दिए हर गम
मैंने आँखों मे तेरी कौई फ़साना देखा है
पर तेरी आंखों में मैंने इक फ़साना देखा
जुस्तजू दिल की थी मेरी हाल मैं तेरा सुनूँ
जुस्तजू दिल की थी तेरा हाल खुद तुझसे सुनूँ
आरजू थी की , हाल तेरा सुनूं मैं तुझसे
पर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा
तेरे ओंठों पे मगर मैने बहाना देखा है पर
तेरे ओंठो पे मैंने बस बहाना देखा है
तेरा चेहरा आज भी मासूम बच्चों की तरह
तेरे चेहरे पे है मासूमी है बच्चे जैसी
चेहरे पे रहती है मासूमी तेरे बच्चों सी चेहरा है
मासूम तेरा माना बच्चों की तरह दिल में
पर कोई जवाँ हमने दिवाना देखा है
ये तो रब जाने कि मंजिल है कहाँ
इन रिन्दों की "आशु" मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है
कहाँ हमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा
आशु ने साकी के पहलू में ठिकाना देखा है
आरजू थी की , हाल तेरा सुनूं मैं तुझसे
ReplyDeleteपर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा ...वाह
bahut umda ghazal.आरजू थी की , हाल तेरा सुनूं मैं तुझसे
ReplyDeleteपर आह भरते हुए, नजरों में बहाना देखा....ye ashaar to bahut hi achcha laga.
वाह ॥बहुत खूबसूरत गजल
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब
ReplyDeleteरात को पी सुबह को तौबा ,कर ली ,
ReplyDeleteरिंद के रिंद रहे हाथ से ,जन्नत न गई .
बहुत अच्छी ग़ज़ल है ज़नाब .
umdaa gazal.
ReplyDeleteबढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने!
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ||
बहुत खूबसूरत...
ReplyDelete
ReplyDelete♥
तेरी आँखों में ज़माने ने जमाना देखा
रिंद भी देखे,मय देखी, मयखाना देखा
आहा ! यहां तो खूबसूरत गज़लकार मौजूद है ...
क्या बात है ...
वाह वाह !
:)
खूबसूरत ग़ज़ल है
मुबारकबाद !
Rajendra jee....hausla afjayee ke liye hardik dhnyawad,,,aapko bhee nav sambat kee dher sari subhkamnaon ke sath
Deleteआशु मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है कहाँ
ReplyDeleteहमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा
बहुत खूब।
हर शेर दाद के काबिल।
बहुत ही बढ़िया ...
ReplyDeleteबेहतरीन गजल....
"आशु" मालूम नहीं रिन्दों के मंजिल है कहाँ
Deleteहमने तो साकी के पहलू में ठिकाना देखा
पीना हराम है ,न पिलाना हराम है ,
पीने के बाद होश में रहना हराम .
अच्छी ग़ज़ल है ज़नाब .
खूबसूरत ग़ज़ल ... बधाई स्वीकारें.
ReplyDelete