रंग-ओ-तस्वीरें अभी वही हैं,हैं वही बातें
अमन-ओ-चैन से कटती नहीं अभी रातें
दल बदल जाते उसूलात बदलते ही नहीं
कोई महफूज़ रहे कैसे, चारसू लगीं घातें
लहू जिसका बहा है स्वेद बन के खेतों में
मोती पैदा किये,अश्कों की मिलीं सौगातें
स्वेद से तर-बतर रहा है जो रात-ओ-दिन
उसके जेहन में भी बचपन की हसीं बरसातें
होती हैवानों, दरिंदों की ताजपोशी यहाँ
वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें
मिटेगा "आशु ",मिटेंगे उसके नक़्शे कदम
वतन की राह पे मुमकिन न हों मुलाकातें
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801
A2/16
2122 1122 1122 22,,112 कोई तस्वीर न बदली हैं न बदलीं बातें आज भी चैनो अमन से नहीं कटती रातें रंग-ओ-तस्वीरें अभी वही हैं,हैं वही बातें अमन-ओ-चैन से कटती नहीं अभी रातें दल बदल जाते उसूलात बदलते ही नहीं कोई महफूज नहीं चारों तरफ हैं घातें कोई महफूज़ रहे कैसे, चारसू लगीं घातें खून जिसका है पसीने सा बहा खेतों में मो ती पैदा करें अश्को की मिलें सौगातें लहू जिसका बहा है स्वेद बन के खेतों में मोती पैदा किये,अश्कों की मिलीं सौगातें रातों दिन जिसके बदन से है पसीना बहता याद आती उसे भी होंगी हसीं बरसातें स्वेद से तर-बतर रहा है जो रात-ओ-दिन उसके जेहन में भी बचपन की हसीं बरसातें ताजपोशी तो दरिंदो की यहाँ होती है होती हैवानों, दरिंदों की ताजपोशी यहाँ वतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें हर सिपाही जो है सच्चा को हवालातें हैं आशू के साथ मिटे नक़्शे कदम भी उसके राख बन बिखरा जहा चाहो मुलाकाते हैं मिटेगा "आशु ",मिटेंगे उसके नक़्शे कदम वतन की राह पे मुमकिन न हों मुलाकातें
स्वेद से तर-बतर रहा है जो रात-ओ-दिन
ReplyDeleteउसके जेहन में भी बचपन की हसीं बरसातें
जेहन तो बचपन की ओर ही भागता है
बहुत सुन्दर
aapke ye utsahvardhak shabd meri rachnatmak urja hain
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteaaderneey shastri jee..sadar pranaam..nirantar mere utsah vardhan aaur meri rachna ko charcha manch me shamil karne ke liye hardik dhnywad
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteसंतोष का पुरस्कार
बहुत सुंदर पोस्ट,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बहुत ही प्रभावी व अर्थभरी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहद उम्दा प्रस्तुति ... बधाइयाँ
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ की सलाह याद रखना या फिर यह ब्लॉग बुलेटिन पढ़ लेना
होती हैवानों, दरिंदों की ताजपोशी यहाँ
ReplyDeleteवतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें.... किसको खबर थी , यकीन था कि ऐसे भी दिन आयेंगे ! जीना भी मुश्किल होगा और मरने भी ना पाएंगे
Very nice post.....
ReplyDeleteAabhar!
होती हैवानों, दरिंदों की ताजपोशी यहाँ
ReplyDeleteवतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें
बहुत सही कहा आपने।
खूबसूरत गजल।
होती हैवानों, दरिंदों की ताजपोशी यहाँ
ReplyDeleteवतन के हर सच्चे सिपाही को हैं हवालातें
यही है आज की जिंदगी का सच । बेहद प्रभावी गज़ल ।
दल बदल जाते उसूलात बदलते ही नहीं
ReplyDeleteकोई महफूज़ रहे कैसे, चारसू लगीं घातें ...
waah ! Great creation Dr Mishra.
.
वाह...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
उम्दा भाव से लेकर शब्द संयोजन..बेहतरीन..
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