Thursday 10 May 2012

(BP 49) क्या करें तीर-ए-नजर छुप के चला देते है

अपनी पलकों को उठाकर  के गिरा देते हैं
बस घडी भर में  हमें अपना  बना लेते हैं


उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं  
और  वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं 


हसरत -ए-दिल ये हमारी जवां नहीं होती
क्या करें तीर-ए-नजर छुप के चला देते है  


छुप के लिखते हैं  मेरा नाम रेत पर तनहा 
हल्की आहट पे मेरी  रेत- रेत बना देते हैं


मुफलिसों की तरह हम उम्र भर तरसते रहे 
और एक  वो हैं जो  गुहर यूं ही लुटा देते हैं


बर्क जब- जब भी उसने खोले किताबों के हैं
सूखे गुल जो याद दिलाते, वो भुला देते हैं 


उनकी आँखों  के समंदर तो बड़े  कातिल हैं 

देखो 'आशु' ये  बजूद -ए-दरिया मिटा देते हैं






डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज  ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न०  9739167801

A2/18

2122 1122 1122 22 अपनी पलकों को उठाकर  के गिरा देते है करके ऐसा वो मेरे होश उड़ा देते हैं बस घडी भर में  हमें अपना  बना लेते हैं  जिनकी जुल्फों को कभी गुल से सजाया हमने खुद वो गुल हो के भी क्यूं हमको सजा देते हैं  उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं   और  वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं   दिल की हसरत वो जवां पर कभी नहीं लाते वो तो बस तीरे नजर छुप के चला देते है   हसरत -ए-दिल ये हमारी जवां नहीं होती क्या करें तीर-ए-नजर छुप के चला देते है     छुप के लिखते हैं  मेरा नाम रेत पर तनहा  हल्की आहट पे मेरी  रेत- रेत बना देते हैं   मुफलिसों की तरह हम उम्र भर तरसते रहे  और एक  वो हैं जो  गुहर यूं ही लुटा देते हैं   बर्क जब- जब भी उसने खोले किताबों के हैं सूखे गुल जो याद दिलातेवो भुला देते हैं    उनकी आँखों  के समंदर तो बड़े  कातिल हैं  देखो 'आशुये  बजूद -ए-दरिया मिटा देते हैं


२१२२ २१२२ २१२२ २१२
अंडर प्रोसेस तक्तीअ अभी करना है
अपनी पलकों को उठाकर के गिरा देते हैं वो
दो घड़ी में गैरों को अपना बना देते हैं वो

उनकी जुल्फों को गुलों से हम सजाना चाहते
और इक गुल हो के खुद हमको सजा देते हैं वो

हसरते दिल को जवाँ होने से रोका लाख था
क्या करें पर तीर नजरों के चला देते हैं वो

छुप वो लिखते नाम मेरा बालू पर तन्हाई में
सुन के आहट नाम बालू में मिला देते हैं वो

मुफलिसों जैसा ही जीवन हमने काटा है सदा
और आँखों से गुहर यूं ही लुटा देते हैं वो

बर्क उसने जब भी खोले हैं किताबों के यहाँ
याद सूखे गुल दिलाते पर भुला देते हैं वो

उनकी आँखों के समंदर तो बड़े कातिल हैं
हस्ती को दरिया सी पल भर में मिटा देते है वो

F47
















20 comments:

  1. मुफलिसों की तरह हम उम्र भर तरसते रहे
    और एक वो हैं जो गुहर यूं ही लुटा देते हैं

    वाह !!!!! बहुत खूब ,....आशुतोश जी ,..
    .
    MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

    ReplyDelete
  2. वाह...वाह..............


    बर्क जब- जब भी उसने खोले किताबों के हैं
    सूखे गुल जो याद दिलाते, वो भुला देते हैं
    बहुत सुंदर ...

    सादर.

    ReplyDelete
  3. तीर-ए-नजर छुप के चला देते है
    पूछो तो नजरे भी चुरा लेते है....लाजवाब..

    ReplyDelete
  4. उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं
    और वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं ...

    very appealing..

    .

    ReplyDelete
  5. वाह बहुत ही बढ़िया. शानदार.

    उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं
    और वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं

    क्या बात है....

    ReplyDelete
  6. बढि़या ग़ज़ल।
    आनंद आ गया।

    ReplyDelete
  7. बर्क जब- जब भी उसने खोले किताबों के हैं
    सूखे गुल जो याद दिलाते, वो भुला देते हैं
    waah, bahut khoob

    ReplyDelete
  8. बहुत ही बढ़िया

    ReplyDelete
  9. उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं
    और वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं
    बहुत खूब 'गुल' की सजा तो खतावार लगती है

    ReplyDelete
  10. जावां महसूस कर रहा हूँ

    ReplyDelete
  11. बहुत ही बढ़िया गजल
    एक -एक शेर बेहतरीन है...

    ReplyDelete
  12. Dr sahab, gajab likhte hain aap to....Badhaiii

    ReplyDelete
  13. उनकी जुल्फों को हम गुल से सजा देते हैं
    और वो हो के भी गुल हमको सजा देते हैं
    वाह ...बहुत सुंदर प्रस्तुति ...
    शब्दों का बेहतरीन उपयोग सुंदर भावों में ...
    शुभकामनायें ...!!

    ReplyDelete
  14. london olympic bicycle company
    Excellent Working Dear Friend Nice Information Share all over the world.God Bless You.
    Bicycle shops in north London
    cycle shops north in london

    ReplyDelete

लिखिए अपनी भाषा में