बड़ी बातें मियां छोड़ों
हमारा दिल न यूं तोड़ों
न हिन्दू है न वो मुस्लिम
वो हिंदी है उसे जोड़ो
छलकती हैं जहाँ आँखें
मुझे रिन्दों वहां छोड़ों
लगें दिलकश जो शाखों पे
हसीं गुल वो नहीं तोड़ों
मिलेगी वक़्त पर कुर्सी
नहीं सर बेबजह फोड़ो
नहीं सर बेबजह फोड़ो
लुटी कलियाँ चमन की हैं
दरिंदों को नहीं छोड़ों
बचा कुर्सी वतन बेंचा
शरारत ये जरा छोड़ों
जहर है अब हवाओं में
हवा का आज रुख मोड़ों
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान, गोंडा उ प्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान, गोंडा उ प्र
बहुत बढ़िया रचना |
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
dhnywaad raajeev jee ..meri rachna ko shamil karne ke liye
ReplyDeleteक्या बात है...उम्दा कहा है... वाह!
ReplyDeleteबहुत खूब डाक्टर साहब |
ReplyDeleteजहर है अब हवाओं में
ReplyDeleteहवा का आज रुख मोड़ों
उम्दा पोस्ट
ReplyDeleteलुटी कलियाँ चमन की हैं
ReplyDeleteदरिंदों को नहीं छोड़ों
छोटी बहर की बड़ी ,खूबसूरत गजल है अर्थ गर्भित अपने परिवेश का सार और व्यंग्य विडंबना लिए .
आदरणीय भाई साब हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया ...सादर
Deleteसमाज का सच कहती सामयिक रचना।
ReplyDeleteप्रवीण जी हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ..सादर
Deleteशुभदीपावली,गोवर्धन पूजन एवं यम व्दितीया श्री चित्रगुप्त जी की पूजन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें स्वीकार करें
ReplyDeleteबचा कुर्सी वतन बेंचा
ReplyDeleteशरारत ये जरा छोड़ों
जहर है अब हवाओं में
हवा का आज रुख मोड़ों
Very impressive !
.