Friday, 4 October 2013

(BP17) एक दिन मुझको रुलाओगे था मालूम मुझे

यूं मुझे भूल न पाओगे था मालूम मुझे
दिल में लोबान जलाओगे था मालूम मुझे
अपने अश्कों से भिगो बैठोगे मेरा दामन 
एक दिन मुझको रुलाओगे था मालूम मुझे

मैंने सीने से लगा रक्खा है तेरा हर ख़त
ख़त मगर मेरा जलाओगे था मालूम मुझे 

यूं तो वादा भी किया, तुमने कसम भी खाई.
गैर का घर ही बसाओगे था मालूम मुझे
सारे इलज़ाम ले बैठा तो हूँ मैं अपने सर
मिलने पर नजरें चुराओगे था मालूम मुझे 

डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेन्द्र देव कालेज आफ फार्मसी , बभनान, गोंडा उ प्र 

6 comments:

  1. सब मालूम था मगर फिर भी दिल माना नहीं.....

    सुन्दर!!

    अनु

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  2. वाह ! वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति.!

    RECENT POST : पाँच दोहे,

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  3. बहुत खूब ,बहुत उम्दा ग़ज़ल !
    नवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  4. सुन्दर प्रस्तुति
    शुभकामनायें आदरणीय ||
    नवरात्रि की शुभकामनायें-

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  5. बहुत उम्दा ग़ज़ल !
    शब्दों की मुस्कुराहट पर ....क्योंकि हम भी डरते है :)

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