रोज तुमसे मिलने की आदत अगर हो जायेगी
मौत के दीदार होते रूह भी रो जायेगी
आख़िरी पल में क़ज़ा होगी खड़ी जब सामने
जिंदगी इक दर्द के अहसास में खो जायेगी
मौत के दीदार होते रूह भी रो जायेगी
आख़िरी पल में क़ज़ा होगी खड़ी जब सामने
जिंदगी इक दर्द के अहसास में खो जायेगी
अब ग़ज़ल मेरी खड़ी है बन के साकी बज्म में
मशविरा रिंदों का पाकर अब निखर वो जायेगी
मशविरा रिंदों का पाकर अब निखर वो जायेगी
देख कर उल्फत दिलों की मौत होगी शर्मसार
जिंदगी को जिस घड़ी छीनेगी खुद रो जायेगी
जिंदगी को जिस घड़ी छीनेगी खुद रो जायेगी
बात गुल सी हो हसीं या कड़वी चाहे खार सी
चेतना का बीज नव दिल में गज़क वो जायेगी
देखकर दीवानगी मे री ग़ज़ल लिखने की यूं1
मौत की रात, रात खुद व खुद सो जायेगी
शायरों के कलाम की नदी होगी सागर
पर ग़ज़ल इसकी लाडली लहर हो जायेगी
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कालेज आफ फार्मेसी ..बभनान,गोंडा
सुन्दर गजल -
ReplyDeleteआभार डाक्टर साहब-
बहुत ही बढ़ियाँ गजल....
ReplyDeletehttp://mauryareena.blogspot.in/
:-)
वाह, बहुत सुन्दर।
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