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Thursday, 16 August 2012

(BP43) भारत की आजादी को साल कितने हो गए


 पर्व यूँ मनाते  रहे-बूँदी  बँटवाते रहे 
भाषण सुनाते रहे, झंडे फहराते रहे
संसद में बैठकर बिधान भी बनाते रहे
कागजों पे देश का , विकाश भी दिखाते रहे
ओढ़ तन खादी दोनों हाथ आज जोड़े हुए
चुपचाप देश का वो सारा माल खाते रहे
पर जलते हुए झोपड़ों से आती हुई चीख बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
रोते हुए लाडलों की तोतली जुवान बोले
भारत की आजादी के साल कितने हो गए
भीग के पसीने में खेतों से किसान बोले
भारत की आजादी.......
तुम बैठे मुस्कुराते रहे यूं ही समझाते रहे
भाषणों में आजादी का मतलब बताते रहे
कागजों पे पुल और बाँध भी बनाते रहे
पर बस्तियों में जलते हुए बुझते  मिट्टी के चिराग बोले
भारत की....
कामियों की बाहों में जकड़ी लाचार बोले
भारत की ......
जिन्दा जली बहू की वो लाश  बार बार बोले
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
फहरे हुए झंडे को यूं देख बृद्धा माँ ने कहा
मेरे लाडले बता दे कैसी ये आजादी है
घर में चिराग नहीं रोशनी के नाम पर
लाडले को घर से पुलिस साथ ले गयी
लाडली को झोंक दिया तन के व्यापार में
पति को भी खा गयी बंद कारावास में
तो कैसी ये आजादी है , सनी खून से क्यों खादी है
मेरे लाडले बता दे छोटी सी तू बात ये
आख से टपकते हुए माँ के आंशुओं ने कहा
भारत की.............................
बाप की गोदी में पड़ी बेटे की वो लाश बोले
भारत.............................
हम गीत यूं ही गाते रहे कविता सुनाते रहे
जाके राजघाट पे फूल भी चढाते रहे
तोपों की सलामी लेके यूं ही इतराते रहे
बापू, बाबू, चाचा की तस्वीर भी सजाते रहे
हाथ रखकर गीता पर कसमे भी खाते रहे
खुद को गरीबों का मसीहा भी बताते रहे
पर बृद्ध माँ के स्तनों से बहता हुआ दूध बोले
भारत................................
हाथों की वो मेंहदी, उजड़ी मांगों से सिन्दूर बोले
भारत..................................
नन्ही सी मासूम कली सीने से लिपट गयी
बोली भैया, बोलो भैया कुछ भी तो बोलो तुम
पल रहा है जेहन में मेरे भी एक सवाल एक
भारत की आजादी को साल कितने हो गए
तो दिल के सितार के टूटे तार तार बोले
बहना मेरी मुझको ये ठीक से मालूम नहीं
होंगे कब लोग इस देश के आजाद मगर
कागजों पे पूरे पैसठ साल आज हो गए 

डॉ आशुतोष मिश्र/आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी/बभनान, गोंडा.उ.प्र. मोबाइल नंबर 9839167801


Friday, 6 April 2012

(BP 54) चांदनी शब् गुजार दी यूं ही जलकर हमने

हमको दुनिया में ग़मों की ही सौगात मिली
ख्वाइश-ए-गुल थी, खारों की बरसात मिली


चांदनी शब् गुजार दी यूं  ही जलकर हमने
अब्र में चाँद छुपा , तारों की बारात मिली


अपने घर से  मैं बड़ी दूर निकल आया जब
उनके अश्कों से सजी हमको कायनात मिली


एक तमाशा है अभी भी ये सजा-ए- उल्फत
क़त्ल जिसका हुआ उसको ही हवालात मिली


"आशु" दिलदार तेरा यार ,तब यकीन हुआ 
जिक्र आते तेरा जब गुहरों की खैरात मिली  








डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801





Saturday, 31 March 2012

(BP 55) पलकें झुकाना आ गया, पलकें उठाना आ गया

पलकें झुकाना आ गया, पलकें उठाना आ गया
इस तरह अब आपको सबको मिटाना आ गया
दो कदम तनहा सफ़र वो तय नहीं कर पाए हैं
जिंदगी में उनकी जबसे  ये दीवाना आ गया

सोचकर निकले थे घर से आज मस्जिद जायेंगे
करते क्या रह-ए- हरम में मैकदा जब आ गया

खूबसूरत सी लगी है ये  जिंदगी जब- जब हमें
दरम्यां तब- तब कहीं से कोई  फ़साना आ गया

मीना है, मय-मयकदा है, शेख, साकी रिंद है 
ये जमी, जन्नत हुई , मौसम सुहाना आ गया

बज्म में उनकी जबसे जिक्रे-ए-आशु आ गया 
चारसू- चर्चा कहाँ से ये अब बेगाना आ गया 

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मास्य
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801


A2/5

२२१२ २२१२ २२१२ २२१२ MODIFIED

पलकें झुकाना  गयापलकें उठाना  गया
बस इस हुनर से अब उन्हें सबको मिटाना आ गया
 तनहा सफ़र दो भी कदम उनके लिये मुश्किल बड़ा
अब ज़िंदगी में उनकी भी मुझसा दिवाना आ गया
घर से निकलते वक़्त सोचा था कि मस्जिद जायेंगे
करते भी क्या साकी का जब रह में ठिकाना आ गया
जब जब हमें ये जिंदगानी खूबसूरत सी लगी
तब तब कही से जिन्दगी में इक फ़साना आ गया
मीना है मय है मैकदा है शेख साकी रिंद हैं
जन्नत लगे है मैकदा मौसम सुहाना आ गया
महफ़िल में उनकी आज चर्चा हो रहा आशू का है
हर सू में अब कहते बशर आशिक पुराना आ गया

सोचकर निकले थे घर से आज मस्जिद जायेंगे
करते क्या रह-हरम में मैकदा जब  गया
खूबसूरत सी लगी है ये  जिंदगी जबजब हमें
दरम्यां तबतब कहीं से कोई  फ़साना  गया
मीना हैमय-मयकदा हैशेखसाकी रिंद है 
ये जमीजन्नत हुई , मौसम सुहाना  गया
बज्म में उनकी जबसे जिक्रे--आशु  गया 
चारसूचर्चा कहाँ से ये अब बेगाना  गया 




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