Tuesday 5 July 2011

(BP65) दिव्या जी के ब्लॉग पे छिड़ा महा धर्मं संग्राम


दिव्या जी के ब्लॉग पे छिड़ा महा धर्मं-संग्राम
आदरणीया दिव्या जी
आपने अच्छा लिखा और लोगों से लिखवाया
सबको हंसाया, फंसाया  और उलझाया
समय के साथ ये मसला गहराया 
धार्मिक ढोंग की गुत्थी को अनायास सुलझाया
लेकिन उधो के ज्ञान को गोपिओं की भक्ति ने ही झुठलाया 
दो शब्द जान कर कुछ लोगों का मन भरमाया 
ईश्वर को हो झूठा ठहराया
कोई केचुए को काट रहा है 
कोई आत्मा को दो हिस्सों में बात रहा है 
कोई पुनर्जन्म को शैतानी रूह बता रहा है
एक दूसरे से बिबादों को गहरा रहा है 
एक मेट्रिक का बच्चा आठवीं  के बच्चे को धमका  रहा है
अपने शब्दों में उलझा रहा है

मैं आपके ब्लॉग पैर रोज आ रहा हूँ
एक प्यारी सी नयी कृति की उम्मीद लगा रहा हूँ
लेकिन भीड़ में फंसता  जा रहा हूँ
अब तो अपना  पुराना कमेन्ट भी नहीं ढूंढ  पा रहा हूँ

एक बेटा किसी को पिता कहता है
एक पिता किसी को बेटा कहता है
उनके दरमियाँ सिर्फ एक बिश्वास रहता है
बरना बिज्ञान तो खेल दिखायेगा 
जब तक DNA  रिपोर्ट नहीं आ जाती
बाप बेटे को गले नहीं लगाएगा
और लगा भी लिया तो दूसरा कमेन्ट कर जायेगा
क्लोन के बच्चे को गले लगा रहा है
 देखो कैसे मुस्कुरा रहा है
नास्तिक कहकर खुद को जो खुदा से ऊँचा दिखा रहा है
बही अपनी बीमार बिटिया के लिए
मंदिर की चौखटों पे सर झुका रहा है
डॉक्टर -  I TREAT HE  CURES   KA  बोर्ड लगा रहा है
सेटे  लाइट छोड़ने से पहले कोई नारियल चटका रहा है

कोई बृहस्पति को दाढ़ी नहीं बनाता
कोई मंगल को मीट नहीं खाता
मेरी समझ में एक कारण आता है 
नाइ   और कसाई को रेस्ट मिल जाता है
कोई बलात हठ न दिखाए इसे धर्म से जोड़ा जाता है
आदमी धर्म बनाता है
धर्म ईश्वर के नाम पे खुद को बचाता है
और जीवन का सफ़र प्यार से आगे बढ़ जाता है
ईश्वर गेहू बनाता है; हम रोटी बनाकर इतराते हैं
ईश्वर पानी बनाता है हम आइस का मजा उड़ाते हैं
उसके दिए  खिलोने से खेलकर उसी को  उंगली दिखाते हैं
उसके शब्द  मंत्र बन जाते हैं
बादलों को चीरकर बारिश लाते हैं
तुम्हारे शब्द कोलाहल मचाते हैं
मानसून आते आते थम जाते हैं
कुछ लोग तटस्थ    होके मजा ले रहे हैं
कुछ भीष्म की तरह मौन सब सब रहे हैं
मेरी तरह कुछ लोग सकते में आ रहे हैं
इतने  कमेन्ट देखकर दांतों तले उंगली दबा रहे हैं
 जिनहे लगता है धर्म झूठा, कर्म झूठा,  मरम   झूठा
वेद झूठा, ग्र न्थ झूठा, हर  उपनिशद  हर  मंत्र झूठा

ऐसे  बिज्ञान के महापंडितों, चितेरों और दीवानों  
तुम बिज्ञान के कितने भी गुण गा लो
हो हिम्मत तो मौत को झुठला लो 

दिल की एक बात मैं भी उठा रहा हूँ  
गौर फरमाइए
धर्म और बिज्ञान को जोड़कर
बैज्ञानिक धर्म बनाइये
लोगों में समता लाईये
प्यार और सदभाव बढाईये
ईश्वर के बिबिध रूपों  में एक रूप पाईये
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे कही भी जाईये
पर ईश्वर को मत झुठलाईये
शब्दों से ईश्वर की तस्वीर न बनाईये
तुम्हारी चेतना ही ईश्वर है
महसूस करिए और कराईये

मानो तो मैं गंगा माँ हूँ
न मानो तो बहता पानी
दिव्या जी के ब्लॉग पे आये महान  धर्माचार्यों
हम तो बस यही गुनगुनाते हैं दुहराते हैं, सुनाते हैं , समझाते है

drashumishra1970@gmail.com

18 comments:

  1. काफी अच्छा लिखा है आपने मिश्रा जी.

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  2. हहाहाहाहा... क्या बात है, बहुत बढिया।

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  3. आप मेरे ब्लॉग पर आये,इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.
    कुछ आध्यात्मिक ब्लोग्स के लिंक निम्न हैं.
    http://www.blogger.com/profile/04048005064130736717
    http://www.blogger.com/profile/11911265893162938566
    http://www.blogger.com/profile/08855726404095683355
    http://www.blogger.com/profile/13644251020362839761
    http://www.blogger.com/profile/03223817246093814
    433
    आपकी दिव्या जी के ब्लॉग पर की गई टिपण्णी को यहाँ पढकर अच्छा लगा.आपकी इस पोस्ट से बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है.

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  4. Pranam sir,
    kya baat hai sir ,vah vah vah vah

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  5. Wah sir wah kya likha hai, RELIGON, SCIENCE aur GOD me tulnatmak varnan

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  6. Vaah .. kitna kuch hai Divya ji ke blog mein ... aapki paini nazar ke kya kahne ...

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  7. सर मैंने आपकी यह रचना चर्चामंच पर लगा दी थी आपने दूसरा डाला ही नहीं का आप इस लिंक- http://charchamanch.blogspot.com/ पर आयें और अपने विचार से अवगत कराएं कि मेरे द्वारा दिये गये लिंक्स कैसे रहे

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  8. बधाई |

    जान बची --
    पहली टिप्पणी को ही जबरदस्ती चर्चा
    में घसीट लिया गया था |
    कुछ पोस्ट कर रहा हूँ ||
    (!)
    फेंक देती एक पत्थर
    शान्त से ठहरे जलधि में-
    और फिर चुप-चाप लहरों
    का मजा लेते रहें |
    मेंढक-मछलियाँ-जोंक-घोंघे
    आ गए ऊपर सतह पर-
    आस्था पर व्यर्थ ही
    व्यक्तव्य सब देते रहे ||

    केवल दिव्याजी के लिए |

    (!!)
    "आस्था"बहस का विषय नहीं है |

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  9. Divya ji's recent post has prompted you to write thereon and paste a post on your own blog.It can be inferred as an achievement of Divya ji's post.

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  10. Dr mishra ,
    आपकी कविता में बहुत कुछ समाहित है. कुछ लोग दोहरा चरित्र जी रहे हैं, उनका भी बखूबी वर्णन किया है आपने. . व्यंग भी है , और सुन्दर सन्देश भी.

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  11. वाह मिश्रा जी
    बहुत सुन्दर तरीके से आपने पूरा निचोड़ ही प्रस्तुत कर दिया
    महाभारत का सच ....सामने आ रहा है

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  12. real scientific outlook.DO not accept or deny unless prooved by experiments. BUT ..................GOD can not be prooved....HE can be realized!!!!!

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  13. क्या बात है सर!... बधाई

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  14. व्यंग....और सुन्दर सन्देश

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