आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं
लाल किले पे झंडा भी फहराने लगे हैं
बुलबुलों को पिंजरों से उड़ने लगे हैं
भूखे बच्चे पेटों को सहलाने लगे हैं
रोते हुए झुनझुने बजाने लगे हैं
आजादी के गीत .....................
नानी कहती थी यहाँ मणिधारी नाग हैं
हमने तो देखा है सत्ताधारी नाग हैं
कुर्सियों पर बैठे फन लहराने लगे हैं
जात पात का जहर अब फ़ैलाने लगे हैं
अब ये डामर यूरिया चबाने लगे हैं
दूध की जगह चारा पचाने लगे हैं
भूखे बच्चों को गिनती सिखाने लगे हैं
आजादी के गीत.........................
खूनी और दरिन्दे तो सरताज हो गए
भोली जनता चिडी, नेता बाज हो गए
घोटालों की लगी देश को यारों कैसी खाज
शांत सरीफों की बस्ती में अब गुंडों का राज
मानवता की होलियाँ जलाने लगे हैं
आदमी ही आदमी को खाने लगे हैं
लम्बे चौड़े बादों से लुभाने लगे हैं
आजादी के गीत ...........................
अब पतंग भी अपनी है अपनी ही डोरी यारों
अब कहार भी अपने हैं अपनी ही डोली यारों
सुरभि,कुसुम चमन, माली हैं बीज हमारे यारों
पर जयचंद हजारों रंग दिखने लगे हैं
शकुनी फिर से चौपडें बिछाने लगे हैं
दुर्योधन को भीम से लड़ने लगे हैं
आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं
कॉलेज जीवन की रचना
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801
लाल किले पे झंडा भी फहराने लगे हैं
बुलबुलों को पिंजरों से उड़ने लगे हैं
भूखे बच्चे पेटों को सहलाने लगे हैं
रोते हुए झुनझुने बजाने लगे हैं
आजादी के गीत .....................
नानी कहती थी यहाँ मणिधारी नाग हैं
हमने तो देखा है सत्ताधारी नाग हैं
कुर्सियों पर बैठे फन लहराने लगे हैं
जात पात का जहर अब फ़ैलाने लगे हैं
अब ये डामर यूरिया चबाने लगे हैं
दूध की जगह चारा पचाने लगे हैं
भूखे बच्चों को गिनती सिखाने लगे हैं
आजादी के गीत.........................
खूनी और दरिन्दे तो सरताज हो गए
भोली जनता चिडी, नेता बाज हो गए
घोटालों की लगी देश को यारों कैसी खाज
शांत सरीफों की बस्ती में अब गुंडों का राज
मानवता की होलियाँ जलाने लगे हैं
आदमी ही आदमी को खाने लगे हैं
लम्बे चौड़े बादों से लुभाने लगे हैं
आजादी के गीत ...........................
अब पतंग भी अपनी है अपनी ही डोरी यारों
अब कहार भी अपने हैं अपनी ही डोली यारों
सुरभि,कुसुम चमन, माली हैं बीज हमारे यारों
पर जयचंद हजारों रंग दिखने लगे हैं
शकुनी फिर से चौपडें बिछाने लगे हैं
दुर्योधन को भीम से लड़ने लगे हैं
आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं
कॉलेज जीवन की रचना
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801
वाह!!
ReplyDeleteयानि आपकी लेखनी तब से दमदार और परिपक्व है???
....बेहतरीन कटाक्ष.
सादर.
सुन्दर प्रस्तुति ।।
ReplyDeleteदमदार और सटीक..
ReplyDeleteआज़ाद भारत की दास्ताँ ... बहुत सुंदर ... भाई
Deleteडाक्टर साहब,
ReplyDeleteकालेज जीवन में रची होगी लेकिन ये हमारे देश के लिये सर्वकालिक है। लेखनी की धार बनी रहे, शुभकामनायें।
बहुत बढ़िया दमदार जबरदस्त सुंदर रचना,...
ReplyDeleteRESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
कुर्सियों पर बैठे फन लहराने लगे हैं
ReplyDeleteजात पात का जहर अब फ़ैलाने लगे हैं
अब ये डामर यूरिया चबाने लगे हैं
धारदार कटाक्ष है ॥सुंदर प्रस्तुति
अब पतंग भी अपनी है अपनी ही डोरी यारों
ReplyDeleteअब कहार भी अपने हैं अपनी ही डोली यारों
सुरभि,कुसुम चमन, माली हैं बीज हमारे यारों
पर जयचंद हजारों रंग दिखने लगे हैं
शकुनी फिर से चौपडें बिछाने लगे हैं
दुर्योधन को भीम से लड़ने लगे हैं ... सामयिक अभिव्यक्ति
प्रभावशाली है रचना.
ReplyDeleteपर जयचंद हजारों रंग दिखाने लगे हैं
ReplyDeleteशकुनी फिर से चैपडें बिछाने लगे हैं
दुर्योधन को भीम से लड़ाने लगे हैं
कालेज जीवन की रचनाएं हैं ये...
बहुत अच्छा लिखते थे आप।
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य. कुछ नहीं बदला है. बहुत ही प्रासंगिक रचना.
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