Tuesday, 13 March 2012

(BP 59) आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं

आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं
लाल किले पे झंडा भी फहराने लगे हैं
बुलबुलों को  पिंजरों से उड़ने लगे हैं
भूखे बच्चे पेटों को सहलाने लगे हैं
रोते हुए झुनझुने बजाने लगे हैं
आजादी के गीत .....................
नानी कहती थी यहाँ मणिधारी नाग हैं
हमने तो देखा है सत्ताधारी नाग हैं
कुर्सियों पर बैठे फन लहराने लगे हैं
जात पात का जहर अब फ़ैलाने लगे हैं
अब ये डामर यूरिया चबाने लगे हैं
दूध की जगह चारा पचाने लगे हैं
भूखे बच्चों को गिनती सिखाने लगे हैं
आजादी के गीत.........................
खूनी और दरिन्दे तो सरताज हो गए
भोली जनता चिडी, नेता बाज हो गए
घोटालों की लगी देश को यारों कैसी खाज
शांत सरीफों की बस्ती में अब गुंडों का राज
मानवता की होलियाँ जलाने लगे हैं
आदमी ही आदमी को खाने लगे हैं
लम्बे चौड़े बादों से लुभाने लगे हैं
आजादी के गीत ...........................
अब पतंग भी अपनी है अपनी ही डोरी यारों
अब कहार भी अपने हैं अपनी ही डोली यारों
सुरभि,कुसुम चमन, माली हैं बीज हमारे यारों
पर जयचंद हजारों रंग दिखने लगे हैं
शकुनी  फिर से चौपडें बिछाने लगे हैं
दुर्योधन को भीम से लड़ने लगे हैं
आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं



कॉलेज जीवन की रचना
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801





11 comments:

  1. वाह!!
    यानि आपकी लेखनी तब से दमदार और परिपक्व है???
    ....बेहतरीन कटाक्ष.
    सादर.

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  2. सुन्दर प्रस्तुति ।।

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  3. Replies
    1. आज़ाद भारत की दास्ताँ ... बहुत सुंदर ... भाई

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  4. डाक्टर साहब,
    कालेज जीवन में रची होगी लेकिन ये हमारे देश के लिये सर्वकालिक है। लेखनी की धार बनी रहे, शुभकामनायें।

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  5. कुर्सियों पर बैठे फन लहराने लगे हैं
    जात पात का जहर अब फ़ैलाने लगे हैं
    अब ये डामर यूरिया चबाने लगे हैं

    धारदार कटाक्ष है ॥सुंदर प्रस्तुति

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  6. अब पतंग भी अपनी है अपनी ही डोरी यारों
    अब कहार भी अपने हैं अपनी ही डोली यारों
    सुरभि,कुसुम चमन, माली हैं बीज हमारे यारों
    पर जयचंद हजारों रंग दिखने लगे हैं
    शकुनी फिर से चौपडें बिछाने लगे हैं
    दुर्योधन को भीम से लड़ने लगे हैं ... सामयिक अभिव्यक्ति

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  7. प्रभावशाली है रचना.

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  8. पर जयचंद हजारों रंग दिखाने लगे हैं
    शकुनी फिर से चैपडें बिछाने लगे हैं
    दुर्योधन को भीम से लड़ाने लगे हैं

    कालेज जीवन की रचनाएं हैं ये...
    बहुत अच्छा लिखते थे आप।

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  9. बहुत ही बढ़िया व्यंग्य. कुछ नहीं बदला है. बहुत ही प्रासंगिक रचना.

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