22 22 22 22 22 22
ज़िंदा है आदमी यहाँ उम्मीदों के सहारे
मझधार फंसी कश्ती भी लग जाती है किनारे
इस जिंदगी में मुझसे न देखे गए कभी हैं
यारों की आँखों बहते हुए अश्कों के ये धारे
पागल कोई कहे कोई कहता है दीवाना
जिसको लगूँ मैं जैसा मुझे बैसे पुकारे
नजरें टिकी भले हों जमानें की चाँद पर
गाफिल हूँ मुझे आज भी प्यारे लगें सितारे
इंसान शूल गर नहीं बोता जहान में तो
हालात ये न होते न होते ये नज़ारे
इंसान खुदा खुद को समझने लगा है जब
इंसानों को मुश्किल से भला कौन उबारे
आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कालेज आफ फार्मेसी बभनान गोंडा
9839167801
ज़िंदा है आदमी यहाँ उम्मीदों के सहारे
मझधार फंसी कश्ती भी लग जाती है किनारे
इस जिंदगी में मुझसे न देखे गए कभी हैं
यारों की आँखों बहते हुए अश्कों के ये धारे
पागल कोई कहे कोई कहता है दीवाना
जिसको लगूँ मैं जैसा मुझे बैसे पुकारे
नजरें टिकी भले हों जमानें की चाँद पर
गाफिल हूँ मुझे आज भी प्यारे लगें सितारे
इंसान शूल गर नहीं बोता जहान में तो
हालात ये न होते न होते ये नज़ारे
इंसान खुदा खुद को समझने लगा है जब
इंसानों को मुश्किल से भला कौन उबारे
आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कालेज आफ फार्मेसी बभनान गोंडा
9839167801
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