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Monday, 26 March 2012

(BP 56) गेसू चेहरे पर बिखर जाते तो अच्छा होता

पल दो पल आप ठहर जाते तो अच्छा होता
मेरे  जज्वात  उभर  जाते तो  अच्छा  होता 


चाँद  सी  आप की सूरत , कसम खुदा की है 
गेसू  चेहरे  पर  बिखर जाते तो अच्छा होता 


तेरे   आँखों  के  समंदर  में  उतरने की जिद 
दो घडी  अश्क  ठहर  जाते  तो अच्छा होता


हुश्न   तेरा  कमाल  का,   क़माल  के जलवे
बस  जरा  और  संवर  जाते तो अच्छा होता


अपनी  पलकें  बिछाये  बैठे  गली  में "आशु"
एक  दफा आप गुजर जाते तो अच्छा होता 




डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश,
मोबाइल नो 9839167801

A2/6
२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ मॉडिफाइड
पल दो पल आप ठहर जाते तो अच्छा होता
आँखों से दिल में उतर जाते तो अच्छा होता 
चाँद सी आपकी सूरत का बढाने जलवा 
गेसू भी रुख पे बिखर जाते तो अच्छा होता 
तेरी आँखों में उतरने की मेरी जिद के लिए
दो घड़ी अश्क़ ठहर जाते तो अच्छा होता
तेरे आँसू जो ठहर जाते तो अच्छा होता 
हुश्न तो आपका माना है क़यामत जैसा
थोडा पर और संवर जाते तो अच्छा होता 
अपनी पलकों को गली में हैं बिछाये आशू
इक दफा आप गुजर जाते तो अच्छा होता  
पल दो पल आप ठहर जाते तो अच्छा होता
मेरी आँखों में उतर जाते तो अच्छा होता
शेर लिखना था मुझे चाँद सी सूरत पे तेरी
रुख पे गर गेसू बिखर जाते तो अच्छा होता
जान लेने के लिए हुश्न हो जिसका काफी
उससे कहते हो संवर जाते तो अच्छा होता
दिल के जो राज झलकते हैं तेरी आखों में
वो लवों पे भी उभर जाते तो अच्छा होता
तेरी आँखों के समंदर से निकल कर आंसू
गर तेरे रुख पे ठहर जाते तो अच्छा होता
राह पे पलकें बिछाई हैं तुम्हारी  मैंने
इक दफा तुम जो गुजर जाते तो अच्छा होता



Tuesday, 13 March 2012

(BP 59) आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं

आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं
लाल किले पे झंडा भी फहराने लगे हैं
बुलबुलों को  पिंजरों से उड़ने लगे हैं
भूखे बच्चे पेटों को सहलाने लगे हैं
रोते हुए झुनझुने बजाने लगे हैं
आजादी के गीत .....................
नानी कहती थी यहाँ मणिधारी नाग हैं
हमने तो देखा है सत्ताधारी नाग हैं
कुर्सियों पर बैठे फन लहराने लगे हैं
जात पात का जहर अब फ़ैलाने लगे हैं
अब ये डामर यूरिया चबाने लगे हैं
दूध की जगह चारा पचाने लगे हैं
भूखे बच्चों को गिनती सिखाने लगे हैं
आजादी के गीत.........................
खूनी और दरिन्दे तो सरताज हो गए
भोली जनता चिडी, नेता बाज हो गए
घोटालों की लगी देश को यारों कैसी खाज
शांत सरीफों की बस्ती में अब गुंडों का राज
मानवता की होलियाँ जलाने लगे हैं
आदमी ही आदमी को खाने लगे हैं
लम्बे चौड़े बादों से लुभाने लगे हैं
आजादी के गीत ...........................
अब पतंग भी अपनी है अपनी ही डोरी यारों
अब कहार भी अपने हैं अपनी ही डोली यारों
सुरभि,कुसुम चमन, माली हैं बीज हमारे यारों
पर जयचंद हजारों रंग दिखने लगे हैं
शकुनी  फिर से चौपडें बिछाने लगे हैं
दुर्योधन को भीम से लड़ने लगे हैं
आजादी के गीत हम तो गाने लगे हैं



कॉलेज जीवन की रचना
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल नो 9839167801





Sunday, 8 January 2012

(A1/29) सबसे भ्रष्ट ही, हो गया है हमारा सरदार

चोरों के एक गाँव में
चोरों ने पंचायत बिठाई
एक नेता चुनने की बात उठाई
किसी ने दी सर्बाधिक चोरियों   की दुहाई  
किसी ने बड़ी चोरियां गिन्वायीं
हर  करतूत  के अंक  निर्धारित हुए
ही अव्वल थे वो नेता साबित हुए
बात जब ये चर्चा में आई
बेईमानो, डकैतों ,लुटेरों
बलात्कारियों  ,भ्रस्तों, घूसखोरों
अत्याचारियों और देशद्रोहियों ने
अपने-अपने ग्रामों में अलख जगाई
नेता बनाने की कवायद्  चलाई
चोरों की तरह
सबसे बड़ा अत्याचारी, भ्रस्ताचारी
बलात्कारी  और व्यभिचारी  
सिरमौर बनाये गए
बक्त के साथ हर  ग्राम  ने अपना  कारोबार  बढाया
परिणाम  स्वरुप
लुटेरा चोर के
और बलात्कारी  ब्याभिचारी के करीब आया
धीरे धीरे ये मसला गरमाया
हर आदमी ने सारे गुणों  को  अपनाया  
चोर   लुटेरे बलात्कारी व्याभिचारी
एक रंग में ढल गए
दिल से दिल, ग्राम से ग्राम मिल गए
बड़े बड़े शहर  और देश बन गए
फिर सबने मिलकर नेत्रित्व का मसला उठाया
न चोरी की चर्चा हुई
न भ्रस्टाचार का मसला चाय
जो सर्वश्रेष्ठ  आलराउंडर  था
उसने अपना दावा मजबूत बनाया
तबसे ये सिलसिला चला आ रहा है
हर चुनाव इसका परिणाम बता रहा है
फिर किसी रोज भीड़ में कोई फुसफुसाया
इस व्यवस्था को  गलत बताया
मैंने उसे समझाया
व्यवस्था को  गलत बता रहे हो 
बबूल पे आम का ख्वाब सजा रहे हो
हम ईमानदार   होते तो ईमानदार चुनते
देशभक्त होते तो देशभक्ति  पे मरते
नेत्रित्व के लिए तो सर्वश्रेष्ठ  के पास जायेंगे
चोरों का नेता चोरों को  ही बनायेंगे
क्या शिक्षक पढ़ा रहा है ?
क्या दुधिया दूध में जहर नहीं मिला रहा है ?
क्या हर शख्श  उपरी कमाई  का स्वप्न नहीं सजा रहा है?
क्या शोधकर्ता शोध के सही परिणाम ला रहा है?
क्या संगीतकार   धुन  नहीं चुरा  रहा है ?
क्या लेखक दूसरों की लेखनी के शब्द नहीं घुमा रहा है?
नकली दबाएँ कौन बना रहा है?
सड़कों का डामर कौन पचा रहा है?
पेड़ किसने काटे, कौन लगा रहा है ?
ऐसे अनगिनत प्रश्नों के जबाब में
हर आदमी उलझ जायेगा
दिल आंसुओ से भर जायेगा
पहले खुद बुरे संस्कार दिल से दिमाग से हटाओ
फिर परिवार को  समझाओ
क्रांति की अलख देश में जगाओ
सदियों का मैला तब तक नहीं हटेगा
जब तक हर इंसान नहीं जागेगा
पुलिश  और नेता पे तोहमत लगाने से
देश नहीं सुधर जायेगा
ये आसमान से नहीं टपके हैं
ये हमारे तुम्हारे घरो के बच्चे हैं
जब सबने मिलकर भ्रष्टता की कर दी है हद पार
तो सबसे भ्रष्ट ही हो गया है हमारा सरदार

वंशधर परंपरा के चहेतों
अपने दिल दिमाग से विकृतियों   को हटाओ
वर्ना पछताओगे
तुम्हारी  जिंदगी के  दिन तो जैसे तैसे कट  जायेंगे
पर तुम्हारे नौनिहाल पैदा   होते ही मर जायेंगे !!





डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801

Monday, 3 October 2011

(A1/46) आजा आके गले लगा जा

जख्म  सैंकड़ों  सीने  में  ले
गली-गली  में घूम रहा  हूँ 
दर-दर  पे  देता   हू  दस्तक 
सजल  नयन  है   
रूँधा  कंठ  है 
पथिक  थक  गया ,
पथ  अनंत   है
कदम-कदम  पे  चौराहे  हैं  
चक्कर  खाती  ये  राहें  हैं  
बियावान  से  कितने  जंगल  
पथ  गहरी सरिताओं वाले 
पर्वत की ऊँची छोटी है
गहरी खाई, गहरे नाले
ढूंढेंगे हम तुझे जहाँ पे  
ऐसा न कोई दिगंत है
पथिक थक गया पथ अनंत है
खुशियाँ कोसों दूर खड़ी हैं
रुग्ण हताश यहाँ जन-जन है
आँख मिचौनी बहुत हो चुकी
आजा आके गले लगा जा
जर्जर तन है
 टूटा मन है
तू न लौटी तो, निश्चित ही
मानव का आ गया अंत है
आजा, ढूंढ़ नहीं पाऊंगा
बांध सब्र का टूट रहा है
सांसों की गति मंद-मंद है
पथिक थक गया
पथ अनंत है


डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801


कॉलेज लाइफ पोएम (1989 -1995)

         
                                   





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