दो कोशिकाओं का युग्मन
फिर सतत बिखंडन
बिखेर रहा है
तमाम ज्ञात अज्ञात पीढ़ियों का अहशास
जिस्म के कतरे-कतरे में..
जीवन की आधार कोशिकाएं
बिखर रही हैं एक जिस्म से कई जिस्मों में
बृहत् से बृहत्तर कर रही हैं
जीवन के असीमित होने की चाह को..
कुछ कोशिकाओं का मिटना
सिर्फ आंशिक संकुचन है
बिस्तीर्ण जीवन का
किसी तन का चिर निद्रा लीन होना
कभी भी मौत नहीं हो सकता...
लाखों करोणों जिस्मों में चलती सांसें
उत्सव मना रही हैं उसी एक जीवन का...
लेकिन सतत अहशास के बाद भी
भुला बैठे हैं हम
अज्ञात क्या !
ज्ञात कोशिकाओं का अह्शान भी
कर्ज नहीं चुकाया जा सकता है
युग्मन में शरीक कोशिकाओं और
ज्ञात अज्ञात पीढ़ियों के अह्शाश का
कोशिकाओं के पुन्ज स्वरूप
किसी अंग के दान से भी......
पर कितने क्रितग्घन हो गए हैं हम
आत्मा की आवाज सुनना तो हम
सदियों पहिले छोड़ चुके थे
अब जिस्म की आवाज भी नहीं सुनते ........
डॉ आशुतोष मिश्र
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान,गोंडा,उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801