Thursday, 16 September 2021

AM 36 ये रात काली काली

 ये रात काली काली...ये रात काली काली

तारों  की फौज लेकर चंदा मचल रहा है

अम्बर पे चल रहा है

मस्ती भरे समा है दिल मेरा जल रहा है

आईये हुजूर.....आईये हुज़ूर

मुद्दत हुई है बिछड़े इक बार फिर मिले हम

महफ़िल सजा के कोई दिल खोल के हँसे हम

पल -पल ने ज़िन्दगी के नूतन गढी कहानी

कुछ तुमसे हमको सुननी कुछ है तुम्हे सुनानी

अम्बर पे रवि के जैसे यौवन ये ढल रहा है

आईये हुजूर     आईये हुज़ूर

बचपन की मीठी यादें यादोँ के वो ख़ज़ाने

ख्वाबों में साथ जिनके गुजरे कई जमाने

एक बार फिर हकीकत आओ इन्हें बनाएं

बगिया में चल के फिर से कुछ आम हम चुराएं

अब गिल्ली डंडे पर भी दो हाथ आजमाएं

हाथों में रस्सी लेकर लटटू कोई नचायें

मुट्ठी में रेत जैसे जीवन फिसल रहा है

आईये हुजूर।  आईये हुजूर

डॉ आशुतोष मिश्र

आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी बभनान



Monday, 24 May 2021

AM 35 कोरोना से संवाद

 

लॉक डाउन बारंबार टल रहा था
अपना कलेजा भी कफ़स के पंछी सरीखा जल रहा था
दिन भर चिड़ियों सा चुगना दाना
उनके परों सा पैरों को हिलाना
कभी उठ के बैठना कभी बैठ के उठना
सूनी आँखों से धरती अम्बर को तकना
कुत्ते इंसानों के जैसे सड़क पर खड़े थे
हम ज़ू के प्राणियों सा कमरे में पड़े थे।
आज फिर जैसे ही लॉक डाउन बढ़ने की खबर आयी
मेरी बेचैनी ने मेरी नींद फिर उड़ाई
बदलकर करवटों पर करवटें महज आधी रात थी विताई
तभी ऐसा लगा किसी ने दर की कुंडी खटखटायी
मन अनजाने खौफ से भर रहा था
पैर एक कदम बढ़ने से डर रहा था।
लॉक डाउन में किसी का आना
यूँ कुंडियां खटखटाना
जान साँसत में ला रहा था।
बी पी बढ़ा रहा था
मैं डरते डरते आगे बढ़ रहा था
पहुंचकर दर के पास मैं धीरे से बोला कौन?
लेकिन छाया रहा सघन मौन।
मैंने फिर हिम्मत जुटाई  और बोला
इतनी रात में कुंडी खटखटायी: कौन हो भाई?
प्रत्त्युत्तर में हल्की भूतिया सी आवाज आयी
इतना मत डर मैं कोरोना हूँ भाई
कोरोना! उड़ी बाबा
ये शब्द मेरे होश उड़ा रहा था
मुझे साक्षात् यमराज अपने भैंसे के साथ नजर आ रहा था।
मैंने दरवाजे पर एक और कुंडी चढ़ाई
कातर निगाहें चारों तरफ घुमाईं
हिम्मत जुताई और बात आगे बढ़ाई
आधी रात मेरे घर पे  आने का मकसद बताईये
क्यों ये कहर ढा रहे है
आदमी से दुश्मन की तरह पेश आ रहे है
तभी दरवाज़े को चीरती तेज आवाज आयी
कोरोना दुश्मन की तरह पेश आ रहा है
कभी सोचा आदमी क्या गुल खिला रहा है
जल थल पे तबाही मचा रहा है
सारे जीवों का जीवन दुश्वार किये जा रहा है
अपनी तरक्की का इतना गुमान
भूल गया प्रकृति का ही विधान
मैं प्रकृति दूत हूँ
करूंगा हर समस्या का समाधान
यह है मेरा विश्व विजय का अभियान
मेरे रस्ते मे जो आएगा मारा जाएगा
तू मुझे बेहद भाया
बंद होकर घर में मेरे सजदे में सर झुकाया
कभी मेरे रास्ते में नहीं आया
तू कवि है और नेट भी चलाता है
मेरे क़दमों से तेज अपने संदेश फैलाता है
अब तू मेरा सन्देश फैलायेगा
मैंने दबी आवाज में कहा
सन्देश तो बताईये
सन्देश बस यही है मेरा सन्देश
जब तक दिल से दिल न मिलें
हाथ न मिलाओ
अपने डॉक्टरों और बैज्ञानिको से कहो
ज्यादा होशियारी मत दिखाओ
सबको सोशल डिस्टेंन्सिंग का फार्मूला सिखाओ
मनुज से कहो न करे इतना गुमान
काम वही करे करे जो प्रकृति का कल्याण
प्रकृति के हर अंग का करें सम्मान
अगर लड़ने का ले संकल्प डॉक्टर बदलेंगे दवाओं के रूप
तो मैं भी बदल लूंगा अपना स्वरुप
अभी मैंने तय कर रखी है निज सीमाएं
बात मुझ तक है संभल जायेगी
मेरे नाती पोतों तक पहुंची तो बढ़ जायेगी
और सुन इन सयानों को समझा दे
जो मेरा खौफ नहीं खा रहे हैं
सड़को पर क्रिकेट खेल रहे है
पार्क में पिकनिक मना रहे है
कोई मंदिर मस्जिद इन्हें बचा नहीं पाएंगे
प्रकृति के मामले में
राम रहमान बीच में नहीं आएंगे
जिसने खुद बनायी हो नियति
वो नियति के प्रकोप में टांग नहीं  अड़ायेंगे
मेरे आगे समर्पण ही मुक्ति का  कारक होगा
अरे ! पगले प्रकृति इंसान सी पागल नहीं हो जायेगी
जो अपनी ही सर्वोत्तम कृति को मिटाएगी
एक सन्देश देकर मैं खुद व् खुद चला जाऊंगा
हाँ! मैं एक सबक जरूर सिखाऊंगा
मुझे मालूम है आदमी समझदार है
बात उसे भली-भांति समझ आयेगी
और अब भी यदि आदमी की मक्कारी नहीं जाएगी
तो और बड़ी कार्यवाही की जायेगी
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
9839167801

Wednesday, 12 May 2021

AM 34 कितने अपनों को खो दिया हमने

पिछले एक वर्ष से कोरोना के इस महाभयंकर दानव के क्रूर पंजो में छटपटाकर दम तोड़ते हुए न जाने कितने शुभचिंतक, परिजन, मित्र ,युवा साथी, असमय हमें छोड़कर चले गए। उनकी इस असमय विदाई हो जाना 

सत्ता के गलियारों की अदूरदर्शिता तो है ही साथ में हम सबकी लापरवाही 

को भी कटघरे में खड़ा करता है। आज दिल हताश है , निराश है अपनों का ध्यान रह रहकर उद्देलित कर रहा है। ईश्वर उन पवित्र आत्माओं को चिर शान्ति प्रदान करे। मेरी उन सभी को विनम्र श्रद्धांजलि


कितने अपनों को खो दिया हमने

लम्हा लम्हा यूं रो जिया हमने


ये हकीकत नहीं रहे तुम अब

घूंट कड़वा भी ये पिया हमने


उनको सत्ता की चाह थी ,वो मिली

खामियाजा भुगत लिया हमनें


जख्मों  से रिस रहा लहू अब तक

इक दफा पर न उफ किया हमने


शूल जिनसे लहू लुहान वदन

उनसे ही ज़ख्म हर सिया हमनें


आशू मस्ती में डूब कर खुद ही

अपना दामन जला लिया हमनें


डॉ आशुतोष मिश्रा

आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी बभनान

Thursday, 5 November 2020

🟩A1/5 राम का स्वागत करो

🟩🟩🟩🟩Tr KS4001 🟩🟩🟩🟩🟩🟩
A1/5
राम का स्वागत करो
अब गयी देखो दिवाली
अब सजा लो थाल पूजा के
अब सजा लो द्वार बन्दनवार से
अब जलाओ दीप कर दो रौशनी चारों तरफ
हो तिमिर का नाम निशान भी
ज्ञान के दीपक जलाओ
प्रेम हृदयों में जगाओ
टूटते मन  दूर नित हो हो रहे हैं
प्रेम का मरहम लगाकर जोड़ दो
राम का ......................
गीत बदलो -राग बदलो
वो पुराने ताल बदलो
रूढ़ियाँ जो दस रही हैं
आज काले नाग सी
बिच्क्षुओं   के डंक  वाले;
रीत और रिवाज बदलो
एक मालिक है सभी का
राम -अल्लाह एक हैं
मत लड़ो ले नाम इनका
खोखली बुनियाद वाले
अपने हर अंदाज बदलो
राम का ..............
झोपड़ों में जी रहा है जो
अश्क अपने पी   रहा है जो
बेदना  से त्रस्त  है
अपनों के भय से ग्रस्त है
चीथड़ों में ढंके उस इंसान की
 जिंदगी को एक नया  आयाम दे दो
लाश जिन्दा हैं-हुआ शोषण तुम्हारे हाथ जिनका
मांस के उन लोथड़ों को  
आज थोड़ी जान दे दो
आग में जलते रहे अपमान की
पैर की जूती ही बनकर रह गए हैं
उन सिसकते बचपनो को   
माँ का आँचल मिल सके
वरदान  दे दो
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश
9839167801
🟩🟩🟩🟩🟩🟩🟩👆🟩🟩🟩🟩🟩🟩




Monday, 2 November 2020

🏀AM33 बिटिया का सवाल

 फेस बुक और व्हॉट्स ऐप पर

जैसे ही किसी दोस्त से जुडी
पोस्ट आती 
प्रतिक्रिया में मेरी बधाई जरूर जाती
ऐसे ही किसी दिन मैं भेज रहा था बधाई
तभी मेरे पड़ोस की इक बिटिया आयी
मुस्कुराते हुए बोली
अंकल एक बात  बताएंगे
बुरा तो नहीं मान जाएंगे
मैंने आँख बंद करके जैसे ही मौन स्वीकृति दी
वो भी तपाक से बोली
देखती हूँ आप देते हो नियमित
सैंकड़ों उन लोगों को बधाई
जिन्हें शुक्रिया कहने की तहजीब तक नहीं आयी
क्यों इन्हें आप नहीं भुलाते है
क्यों इस सिलसिले पर विराम नहीं लगाते हैं
वो बिटिया जैसे ही साइलेंट मोड में आयी
किसी न किसी रूप में देते हुए उन सबसे
अपने संबंधों की दुहाई
मैंने बात आगे बढ़ाई
बेटा!वो सब मेरे लिए खास थे
मेरा सहारा थे, मेरा विश्वास थे।
खास थे...सहारा थे...विश्वास  थे
उस बिटिया ने मेरी ही बात दुहरायी
कौतूहल भरी प्रश्नवाचक मुद्रा में आयी
तो मैंने उसकी दुहरायी बात फिर दुहराई
एक गहरी सांस  छोड़ते हुए आगे बढ़ायी
बेटा! 
वक़्त के साथ वो आगे बढ़ गए
उनपे उपाधियों के तमगे जड़ गए
वो चकाचौंध में खो गए
और वक़्त की आंधी में उड़ी धूल में दबकर
रिश्ते दफ़न हो गए
और जब रिश्ते ही नहीं रहे 
तो वर्तमान के संदर्भ 
भूतकालिक हो गए।
मैं जैसे ही खामोश हुआ
बेटी ने फिर पुराने सवाल को छुआ
तो अब तो इन रिश्तों को भुलाईये
बधाई संदेशों पर विराम लगाइये
बिटिया बोले जा रही थी
अपने तर्कों की कसौटी पर मुझे तौले जा रही थी
उससे  नजर मिलाकर
उसे अच्छी तरह सुनने का अहसास दिलाकर
मैं सच में भीतर भीतर उलझ रहा था
और मेरा मौन उस बेटी से कह रहा था
इन्हें कैसे भुला दूँ 
कितना प्रेम है इनसे कैसे बता दूं
प्रेम गली अति साँकरी या में दो न समाही
मेरा मन तो यही दुहरायेगा।
बेशक ये सच है
शास्वत न तो दोस्त है न दोस्ती
क्योंकि जो बदल रहा है 
कैसे हो सकता है शाश्वत
दोस्त तो एक शरीर है
जो बदलता रहता है नित
और दोस्ती....
दोस्ती तो एक भाव है
जिसे बदल देते है शरीर के तत्व खुद
समय पर
शरीर को सिर्फ शरीर चाहिए
साथ बात करने के लिए
खेलने के लिए
सांत्वना पाने के लिए
और भी बहुत कुछ है
जहाँ बदले हुए भाव लिखते हैं
दोस्ती की नयी इबारत
कैसे बताऊँ उसे......
मैं स्वयं बदल गया हूँ
लेकिन छाया चित्र की तरह
अब भी पुराने मंजर 
वो तमाम पुरानी बाते चल रही है 
दिमाग के पटल पर
बिलकुल नहीं बदलता है यह दृश्य
बदलेगा भी कैसे....शास्वत जो है
और जी शास्वत है प्रेम है
तो कैसे भूल जाऊं उस प्रेम को
कैसे कह दूं बिटिया
जब भी कोई नाम या  तस्वीर नजर आती है
वो मुझे उस नाम से जुड़े वर्तमान में नहीं
अतीत में ले जाती है
और मैं तर्पण कर देता हूँ अपनी बधाई 
क्योंकि दोस्ती या भाव ख़त्म होते ही
दोस्त होते ही कहाँ है
और जो होते ही नहीं उनके जवाब 
आते भी कहाँ है
डॉ आशुतोष मिश्र 
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बभनान, गोंडा
उत्तरप्रदेश
9839167801

Friday, 27 March 2020

❤️Tr KS6/45 ks 6001collection(OB 124) बोतल में जब तलक थी मै महफ़िल सजी रही



Tr221 2121 1221 212 
 जब तक भरे थे जाम तो महफ़िल सजी रही
फूलों में रस था भँवरों की चाहत बनी रही

वो सूखा फूल फेंकते तो कैसे फेंकते
उसमे किसी की याद की खुशबू बसी रही

उस कोयले की खान में कपड़ें न बच सके
बस था सुकून इतना ही इज्जत बची रही

कुर्सी पे बैठ अम्न की करता था बात जो
उसकी हथेली खून से यारों सनी रही

दौलत बटोर जितनी भी लेकिन ये याद रख
ये बेबफा न साथ किसी के कभी रही

'आशू' फ़कीर बन तू फकीरीं में है मजा
सब छूटा कुछ बचा तो वो नेकी बदी रही

डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान गोंडा उत्तरप्रदेश 271313
9839167801
www.ashutoshmishrasagar.blogspot.in

Thursday, 26 March 2020

(OB 127) इक्कीस दिन की कैद में कैसे समय बिताय

अपने अपने घरों की जेल में कैद (नजरबन्द) सभी क्रांतिकारियों का नमन। 

पंख कटे पंछी हुए ,सीमित हुयी उड़ान
सर पे अम्बर था जहाँ, छत है गगन समान

सारी दुनिया सिमट कर कमरे में है कैद
घर के बाहर है पुलिस, खड़ी हुई मुश्तैद

जिनकी  शादी  ना हुयी , उनकी मानो खैर
और हुयी जिनकी न लें, घर वाली से बैर

घर के कामो में लगें, हर विपदा लें टाल
साँप छुछूंदर गति न हो, करफ्यू या भूचाल

भागवान से लड़ नहीं, बात ये मेरी मान
भागवान के केस में, चुप रहते भगवान

प्रथम दिवस आखिर कटा, साँसों में थे प्रान
मगर रात धरती लगी, जैसे हो श्मशान

लक्ष्मण रेखा खिंच गयी,घर में रखना पाँव
आस्तीन के सांप सा, कोरोना का दाँव

राशन लेने जब गये, मन मन ही घबराय
ना जाने किस भेष में, कोरोना मिल जाय

अस्ल गधे तो छिप गए, नकली करें धमाल
चौराहे पर अब जिन्हें, पुलिश कर रही लाल

हाथ जोड़ सेवक करे, सबसे ही फरियाद
लेकिन सारी योजना , चंद करें बरबाद

हँसी ठिठोली हो चुकी,सुनो काम की बात
उल्टी गिनती है शुरू, चूके समझो मात

हिन्दू मुस्लिम सोच है, सत्य महज इंसान
कोरोना ये ज्ञान दे, हर के सबके प्रान

खड़े दूर थे पंक्ति में, हिन्द वतन के लोग
अनुशासन का पाठ भी सिखा रहा ये रोग

"आशू" हल्के में न ले, बिपदा ये गंभीर
छूट गया जो चाप से, कब लौटा वो तीर

डॉ आशुतोष मिश्र "आशू"
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी।
बभनान, गोंडा, उत्तरप्रदेश
9839167801
www.ashutoshmishrasagar.blogspot.in



Saturday, 21 March 2020

(OB 126}) कोरोना का कोरोना (का रोना)



कोरोना का कोरोना(का रोना)
कोरोना का कुछ कोरोना (करो ना)

जितना हो सकता हो दूरियां बनाइये
मुख से न कहके बात नयन से जताइये

घबराइये न दिल को दिलासा दिलाइये
विपदा की घड़ी में भी बस  मुस्कुराइये

जीभर  के बात अपनी सबको सुनाइये
बस थोड़ा और अपने मुँह को घुमाइये

घर जो आये हाथ  सोप से धुलाइये
पी के नींबू नींद भी गहरी लगाइये

बस प्राणायाम योग  ध्यान आजमाइये
प्रतिरोध की जो क्षमता उसको बढाइये

जो होलिका है भीतर उसको जलाइये
गुटके की पीक यूँ न हवा में  उड़ाइये

हो घूमने का मन  तो जरा भांग खाइये
तन हो न  टस से मस दिमाग को घुमाइये

वो मौज मस्ती सैर सपाटा भुलाइये
बाहर के खाने को न हाथ भी लगाइये

सामान हाट से न थोक में मंगायिये
गोदाम भूलकर भी न घर को बनाइये

बातों में बस विरोध के सुर न उठाइये
अपने सिपाहियों का मनोबल बढाइये


स्वरचित
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी बभनान गोंडा
उत्तरप्रदेश 271313
www.ashutoshmishrasagar.blogspot.i.






Thursday, 19 March 2020

(OB 125) चीटी भी नन्ही हाथी की ले सकती जान है


चीटी भी नन्ही हाथी की ले सकती जान है
कोरोना ने कराया हमें इसका भान है।

हाथों को जोड़ कहता सफाई की बात वो
पर तुमको गंदगी में दिखी अपनी शान है।

बातें अगर गलत हों तो बाजिब विरोध है
सच का भी जो विरोध करे बदजुबान है।

नक़्शे कदम पे तेरे  क्यूँ सारा जहाँ चले
बातों में बस तुम्हारी ही क्या गीता ज्ञान है

कोरोना की ही शक्ल में नफरत है चीन की
जिसके लिए जमीन ही सारी जहान है

मालिक के दर पे सज्दा वजू करके ही करूं
संदेश कितना बढ़िया ये देती कुरआन है

मालिक के दर पे  आशू चलो मांग लें दुआ
जल्दी चलो हरम में शुरू फिर अजान है

डॉ  आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बभनान गोंडा
उत्तरप्रदेश 271313
9839167801
www.ashutoshmishrasagar.blog spot.in

Wednesday, 19 September 2018

🟧 (OB 121) सौदागर (लघुकथा)

🟧. TR KS 5001C

सौदागर
” प्रोफेसर सैन और प्रोफेसर देशपांडे सरकारी मुलाजिम हैं, तनख्वाह भी एकै जैसी मिलत है लेकिन ई दुइनो जब से निरीक्षक भइ गए हैं तब से प्रोफेसर सैन तो बड़ी बड़ी लग्जरी गाड़ियों में दौरा करत है और बड़े आलीशान होटलों में बसेरा करत हैं लेकिन ..लेकिन बेचारे देशपांडे कभी धर्मशाला में ठहरत हैं तो कभी सरकारी गेस्ट हाउसन में ...कभी ऑटो से चलत हैं तो कभी बस में ....जब सब सुख सुबिधा बरोबर है तब ई फरक काहे है ई बात तनिक हमरी समझ में नाहीं आवत है “ राहुल ने अपने मित्र सुजीत से बडी जिज्ञासा के साथ पूंछा
“ अरे ! ईमें कौन बात है , प्रोफेसर सैन के बाप दादा ने खूब पैसा कमाया होगा और उसी के दम पर वो शाही जिन्दगी जिया करत हैं “
“ अरे ! काहे का बाप दादा का पैसा , हम ई प्रोफेसर साहिब के बाप का भी इतिहास जानत हैं और बाबा का भी ...एक छोटी सी राशन की दुकान की दम पर दुई वक़्त की रोटी बड़ी मुश्किल से नसीब होती थी “
“ अरे ! तो हो सकता है सैन साहिब सौदागर हों “
“सौदागर, कईसन सौदागर ....बिन दूकान , बिन सौदा के ई कैसे सौदागर हुयी सकत है “ झुंझलाते हुए राहुल ने सुजीत से सवाल किया
“ अरे !सौदागर बने के खातिर ई कौन जरूरी है कि सौदा भी हो और दुकान भी – अरे सौदा जमीर का भी तो हुए सकत है “ सुजीत ने गंभीर होते हुए कहा
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान गोंडा उत्तर प्रदेश

लिखिए अपनी भाषा में