पलकें झुकाना आ गया, पलकें उठाना आ गया
इस तरह अब आपको सबको मिटाना आ गया
दो कदम तनहा सफ़र वो तय नहीं कर पाए हैं
जिंदगी में उनकी जबसे ये दीवाना आ गया
सोचकर निकले थे घर से आज मस्जिद जायेंगे
करते क्या रह-ए- हरम में मैकदा जब आ गया
खूबसूरत सी लगी है ये जिंदगी जब- जब हमें
दरम्यां तब- तब कहीं से कोई फ़साना आ गया
मीना है, मय-मयकदा है, शेख, साकी रिंद है
ये जमी, जन्नत हुई , मौसम सुहाना आ गया
बज्म में उनकी जबसे जिक्रे-ए-आशु आ गया
चारसू- चर्चा कहाँ से ये अब बेगाना आ गया
डॉ आशुतोष मिश्र
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मास्य
बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश
मोबाइल न० 9839167801
A2/5
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पलकें झुकाना आ गया, पलकें उठाना आ गया
बस इस हुनर से अब उन्हें सबको मिटाना आ गया
तनहा सफ़र दो भी कदम उनके लिये मुश्किल बड़ा
अब ज़िंदगी में उनकी भी मुझसा दिवाना आ गया
घर से निकलते वक़्त सोचा था कि मस्जिद जायेंगे
करते भी क्या साकी का जब रह में ठिकाना आ गया
जब जब हमें ये जिंदगानी खूबसूरत सी लगी
तब तब कही से जिन्दगी में इक फ़साना आ गया
मीना है मय है मैकदा है शेख साकी रिंद हैं
जन्नत लगे है मैकदा मौसम सुहाना आ गया
महफ़िल में उनकी आज चर्चा हो रहा आशू का है
हर सू में अब कहते बशर आशिक पुराना आ गया
सोचकर निकले थे घर से आज मस्जिद जायेंगे
करते क्या रह-ए- हरम में मैकदा जब आ गया
खूबसूरत सी लगी है ये जिंदगी जब- जब हमें
दरम्यां तब- तब कहीं से कोई फ़साना आ गया
मीना है, मय-मयकदा है, शेख, साकी रिंद है
ये जमी, जन्नत हुई , मौसम सुहाना आ गया
बज्म में उनकी जबसे जिक्रे-ए-आशु आ गया
चारसू- चर्चा कहाँ से ये अब बेगाना आ गया